: रोजाना चार हजार लाशें निकल रही हैं, लेकिन गली, मोहल्लों और गांवों में मातम के बजाय अंधभक्तों की हुंकारें : करुण-क्रंदन और हताशा-अवसाद का माहौल रोकने के बजाय भगवान का भजन-कीर्तन में जुटे अंधभक्त : संघी की राजनीति देश-हित नहीं, बल्कि सर्वनाश कर देने करने वाली करतूत :
कुमार सौवीर
लखनऊ : करीब दो बरस पहले शेषनारायण सिंह जी ने एक बातचीत के दौरान कह दिया था कि संघी-भाजपा की राजनीति देश-हित नहीं, बल्कि सर्वनाश कर देने करने वाली करतूतों का नाम है। उनका कहना था कि आम आदमी को व्यक्ति के तौर पर देखने का नेहरू वाले नजरिये के ठीक प्रतिकूल कट्टर साम्प्रदायिक समुदाय, आज इस देश की उस सर्वांग समृद्ध सांस्कृतिक धरोहरों को छिन्न-भिन्न और बर्बाद कर रहा है, जिसे गांधी, नेहरू, अम्बेडकर, पटेल और आदी-इत्यादि नेताओं ने बनाया और संजोया था।
शेषनारायण सिंह का कहना था कि जल्दी ही समाज में संवेदनहीनता और आक्रामक व्यवहारों का दावानल भड़केगा, जिसकी लपटों में सारा विश्वास, सहृदयता, आपसी समझ और मानवीय भावनाएँ भस्मीभूत होने लगेंगी। हमारे सामने हमारे ही अपनों की लाशें पड़ी होंगी, लेकिन हमारे लोग उस पर विलाप कर उसके कारणों को समझने के बजाय एक-दूसरे के खेमे में अधिक से अधिक लाशें बटोरने-फेंकने की लालच में पूरे देश को लाशों में तब्दील करने के अभियान में जुटे होंगे।
यह शेष नारायण सिंह की भविष्यवाणी नहीं, बल्कि इतिहास से मिले तथ्यों को वर्तमान की प्रयोगशाला में परख कर भविष्य के रुख को परखने की सूक्ष्म नज़र का निष्कर्ष था, जो आज साक्षात सच दिख रहा है।
आज रोजाना चार हजार लाशें निकल रही हैं, लेकिन उन गली, मोहल्लों और गांवों में मातम के बजाय अंधभक्तों की हुंकारें ही सुनाई पड़ रही हैं। भाजपा की कोशिश मरीजों को ऑक्सिजन मुहैया कराने और इलाज कराने में रुचि नहीं, बल्कि बंगाल में विषवमन करने में व्यस्त है। केंद्र और राज्य सरकारें अक्षम है, कोरोना संक्रमित लोगों से लूटपाट, गरीबों का करुण-क्रंदन और भयावह हताशा-अवसाद का माहौल रोकने के बजाय अपने भगवान का भजन-कीर्तन में जुटे हैं अंधभक्त और संघ-नेतृत्व।
लेकिन दो बरस पहले भविष्य के भारत को लेकर जो सच शेषनारायण सिंह ने मेरे साथ फोन पर बताया था, उसे अपने प्राण की आहुति देकर उन्होंने आज एक बार फिर और आखिरी बार भी सच साबित कर डाला।
वे आज उन लाखों लाशों में शामिल हो गए, जिसे “सिस्टम” ने अपने “सिस्टम” की “सिस्टमेटिक “साजिशों के चलते मौत के घाट उतार डाला। वही “सिस्टम” जो आज भी रोजाना हजारों निरीह नागरिकों को मौत का निवाला बनाने में जुटा है, लेकिन अंधभक्तों की भीड़ देश में हत्याओं को आपदा में अवसर खोजने में जुटी है, जबकि भगवान बांसुरी बजाते हुए अपने भक्तों का लगातार हौसला बढ़ा रहा है।
लेकिन इसके बावजूद शेष जी सच बोल कर आज मर गए, लेकिन इस मौत से मैं समेत अनगिनत लोग खामोश नहीं रह सकेंगे। शेषनारायण सिंह जी हमेशा मेरे लिए एक ऐसे बड़े भाई रहे, जिनसे मैं मित्र-भाव भी महसूस करता था। मैंने हर मुलाकात में शेषनारायण सिंह का चरण-स्पर्श किया, उनके गले लगा हूँ और उनके गालों को चूमा है। लेकिन आज पहली और आखिरी न तो उनका पैर छू पाऊंगा, न उनके गले लग पाऊंगा और न ही उनको चूम सकूंगा। लेकिन यकीन मानिए कि शेषनारायण सिंह की यह मौत मेरा हौसला नहीं तोड़ पाएगी, बल्कि मैं तो अब अपनी आवाज में शेषनारायण सिंह की आवाज मिला कर अपनी आवाज़ को और भी तेज कर डालूंगा।
यही तो शेषनारायण सिंह के प्रति मेरी श्रद्धाजलियाँ हैं।