सुप्रीम कोर्ट हो तो क्‍या ? अपना काम करो, हमारे में टांग मत अड़ाओ

दोलत्ती

: कोरोना-मरीजों को राहत दिलाने वाली याचिका पर दो-टूक शब्‍दों में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को चेताया : सवाल यह कि सुप्रीम कोर्ट पर यह टिप्‍पणी करने की हैसियत कैसे जुटी केंद्र सरकार में :

कुमार सौवीर

लखनऊ : केंद्र सरकार ने आज दो-टूक जवाब दे दिया है कि “सुप्रीम कोर्ट अपने काम से काम रक्खे, वैक्सीन के मामले में न पड़े।”
हालांकि यह जवाब निहायत बदतमीजी से भरा पड़ा हुआ है, जो साफ बताता है कि सुप्रीम कोर्ट जैसी सांवैधानिक संस्‍था को भी केंद्र सरकार अपनी जूती के नोंक पर रखती है। कहने की जरूरत नहीं है कि केंद्र सरकार का यह लहजा साबित करता है कि सरकार ने शालीनता को ताक पर रख दिया है।

लेकिन इसके मूल कारणों को समझने के लिए हमें केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के रिश्‍तों की छानबीन करनी होगी। दरअसल, पिछले पांच-सात बरसों में सरकार की हर स्‍याह-साह हरकत नुमा फैसलों पर जिस तरह सबसे बड़ी की अदालत के मुखिया रहे लोगों ने रवैया अपनाया, उससे साफ होता जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की सुरक्षा और निगरानी के बजाय राजसत्‍ता के सामने घुटने टेकना शुरू कर दिया है। चाहे वह नरेंद्र मोदी के शैक्षिक प्रमाणपत्रों का मामला हो, या फिर पीएम-केयर्स फण्‍ड को नरेंद्र मोदी की बपौती मान लिये जाने पर अंतिम मोहर लगाना रहा हो, सुप्रीम कोर्ट के रवैयों ने यही प्रमाणित किया कि वे रिटायरमेंट के बाद कहीं ठीक-ठाक सेटलमेंट के मूड हैं, और ऐसा तब ही हो पायेगा जब वे संविधान के पहरुआ नहीं, बल्कि केंद्र सरकार के पिट्ठू बनने की योग्‍यता साबित कर देंगे।

ऐसे बेहिसाब मामले हैं, जिसमें पिछले बरसों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ सरकार को ही राहत दी है।सर्वोच्‍च न्‍यायाधीश रहे रंजन गोगोई की ऐसी ही स्‍वामिभक्ति के चलते उन्‍हें सरकार का चरणोदक यानी पंचामृत मिल गया। गोगोई ने अपनी ही महिला सचिव से यौन-दुराचार के मामले से उन्‍हें मुक्ति मिल गयी। इतना ही नहीं, उनकी स्‍वामिभक्ति से केंद्र सरकार इतनी खुश हुई कि उन्‍हें रिटायरमेंट के अगले ही दिन सांसद की कुर्सी थमा दी गयी।

पिछले चीफ जस्टिस बोवड़े भी गोगाई की ही तरह मोदी-राग अलापते रहे। हालांकि अपनी आखिरी दिन की नौकरी के दिन उन्‍होंने केंद्र सरकार को हौंक दिया था। लेकिन चर्चाएं तो यहां तक चल रही हैं कि केंद्र सरकार उनकी सेवाओं से खुश नहीं थी। ऐसी हालत में जब बोवड़े को लगा कि लाख कोशिशों के बावजूद रिटायरमेंट के बाद वाला उनका पत्‍ता कट चुका है, तो उन्‍होंने आखिरी दिन केंद्र सरकार को आड़ेहाथों ले लिया।तो, अब कहने की जरूरत नहीं है कि केंद्र सरकार की जुबान में न्‍यायपालिका का खूनका चस्‍का लग चुका है। वरना ऐसी कोई वजह नहीं है, जिसके चलते केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पर इतनी कड़ी तल्‍खी के साथ दो-टूक जवाब दे पाये।

कुछ भी हो, अब सुप्रीम कोर्ट का रवैया ही तय करेगी कि ऐसी हालत में उसके पास कौन सा कानूनी दांव है, जिससे वह आम आदमी, निरीह कोरोना-मरीज की प्राण-रक्षा के साथ ही साथ खुद अपनी ही इज्‍जत को बचा पाये। लेकिन इतना तो तय ही है कि ऑक्‍सीजन सिलेंडर के मामले में जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन पहले जिस तरह सरकार को आड़े हाथों लेते हुए ऐसा सारा आपदा-प्रबंध एक नयी टीम के हाथों में सौंप दिया था, उससे केंद्र सरकार तिलमिला तो गयी ही है।

1 thought on “सुप्रीम कोर्ट हो तो क्‍या ? अपना काम करो, हमारे में टांग मत अड़ाओ

  1. दोलत्ती के बदले लीद करने की आदत हो गई लगाती है ?
    अगर सभी काम कोर्ट ने ही करने हैं तो फिर कार्यपालिका, जनता द्वारा चुनी विधायिका, और अपने विषयों के विशेषज्ञ क्या भाड़ झोंकने के लिए हैं ?
    वैक्सीन पर अगर केंद्र गलत है तो विद्वान जजों के पास इस बारे में क्या विशेष अहर्ता है जो वे संविधान में सर्वोच्च जनता के प्रतिनिधियों से इस तरह पेश आते हैं ?
    कोलेजियम सिस्टम किस संविधान में हैं ?
    कुछ भी लिखने से पहले बुद्धि का सम्यक प्रयोग नहीं करेंगे तो ऐसे ही दुलत्ती की जगह लीद करेंगे.

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