सवाल पुलिस मुखिया की क्षमता व विश्‍वसनीयता पर

दोलत्ती

: सारे धंधेबाजी में माहिर हैं डीजीपी ओपी सिंह के चेला-चपाटी और चिलाण्‍डलू : पांच बड़े दारोगाओं के पिछवाड़े पर दर्ज हुए टैटू हकीकत बताते हैं : डीजीपी ओपी सिंह-एक
कुमार सौवीर
लखनऊ : जियो रजा डीजीपी !कमाल की टीम है तुम्‍हारी। बेशर्मों की नायाब टोली।
तुम्हारे नोएडा के एसएसपी की करतूत और नयी-नवेली ताजा करतूतों को अंजाम करने वाले तुम्‍हारे अफसरों ने साबित कर दिया है कि यूपी पुलिस के बड़े-बड़े दरोगा लोग वाकई दर-कमीने हैं। कोई लंगोट का ढीला है, तो कोई सौ नम्‍बरी लुच्चा, और कोई तो घटिया किस्‍म का षडयंत्र-कारी। जिलों में पुलिस प्रमुख की कमान थामे ऐसे बड़े-बड़े दारोगाओं की घूसखोरी और रंगदारी वसूलने के लिए टोपीक्रेटों के साथ कदमताल करने वाले पत्रकारों के साथ सारे धंधेबाजी में माहिर हैं डीजीपी ओपी सिंह के चेला-चपाटी और चिलाण्‍डलू। सबसे बड़ी बात तो यह है कि ताजा विवाद ने यूपी पुलिस के प्रमुख की सांगठनिक क्षमता और उनकी विश्‍वसनीयता पर भी गंभीर सवाल जड़ना शुरू कर दिया है।
यूपी की पुलिस की करतूत सिर्फ योगी सरकार के कार्यकाल में ही उचकी है, ऐसा नहीं है। सच बात तो यह है कि पिछले डेढ़ दशक के दौरान पुलिस अपने सबसे घटिया पायदान तक बुरी तरह मुंह के बल गिरी है। ताजा नजीर है गौतम बुद्ध नगर के एसएसपी वैभव कृष्ण का शर्मनाक वीडियो। ऐसे तीन वीडियो जारी हुए हैं जिसमें वैभव कृष्ण अपनी यौन-करतूतों का घटिया प्रदर्शन करते दिखाई रहा है। और अब तो इस पूरे मामले से जुड़े कई अन्य वीडियो चैट भी जारी हो गए हैं।
लेकिन असल ताजा भंडाफोड़ तो तब हुआ है कि जब अपनी लंगोट खोल चुके वैभव कृष्ण अपनी जांघिया का नाड़ा बांधने के साथ ही यूपी पुलिस के पांच बड़े दारोगाओं की चड्डी खोलकर उनके पिछवाड़े पर दर्ज टैटू को सरेआम कर दिया। इनमें एक है अजय पाल शर्मा जो इस समय रामपुर जिले का एसएसपी है। दूसरा है गाजियाबाद का एसएसपी सुधीर सिंह। तीसरा है बांदा का एसएसपी गणेश साहा। और चौथा है सुल्तानपुर का पुलिस अधीक्षक हिमांशु। इसके अलावा एक और बकलोल आईपीएस अफसर भी इसमें शामिल बताया जाता है, जिसका नाम है राजीव नारायण मिश्रा। सच तो यही है कि अपने इस हमले में वैभव कृष्ण ने यूपी पुलिस के कई अन्‍य बड़े और आला दारोगाओं पर कई सनसनीखेज आरोप लगाए हैं।
सबसे ज्यादा शर्मनाक बात तो यह है कि इस पूरे मामले में डीजीपी ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया है कि वैभव कृष्‍ण से एक गोपनीय पत्र को लीक क्‍यों किया। हालांकि इस बारे में न तो डीजीपी ने कोई स्‍पष्‍टीकरण दिया और न ही उस प्रेस कांफ्रेंस में किसी पत्रकार ने ही यह सवाल उठाया कि यह कैसे साबित हो सकता है कि यह गोपनीय पत्र को वैभव कृष्‍ण ने ही लीक किया था। इतना ही नहीं, मामले में ओपी सिंह ने इस पर कोई भी बात नहीं कि जिन लोगों के बारे में वैभव कृष्ण ने आरोप लगाया है उनकी असलियत क्या है। वह उतने ही बेईमान हैं या नहीं। और तो और, अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में डीजीपी ओपी सिंह ने उपरोक्त गोपनीय पत्र के लीक होने पर एसएसपी वैभव कृष्ण से जवाब-तलब तो कर लिया, लेकिन उन्‍हें इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी इसकी कोई भी जानकारी डीजीपी ने नहीं दी। यानी यह कि डीजीपी इस पूरे मामले को केवल अनुशासनिक कार्यवाही तक ही सीमित रखना चाहते हैं। लेकिन दोलत्‍ती-सवाल तो फिर यह है कि यह सारा कुछ प्रशासनिक स्तर पर ही निपटाया जाना है तो फिर डीजीपी को यह प्रेसकांफ्रेंस की क्या आवश्यकता पड़ी। (क्रमश:)

2 thoughts on “सवाल पुलिस मुखिया की क्षमता व विश्‍वसनीयता पर

  1. पत्रकारिता का सबसे घटिया स्वरूप।
    मन तो कर रहा है आपको भी एक दो गालिया दे दु, लेकिन वो क्या है ना, मैं एक छोटे शहर का कम पढ़ा लिखा इंसान हूँ और मैं असली शिक्षा भाषा के स्तर को मानता हूँ और माता पिता के दिये हुए संस्कार को ।

    1. हर मूर्खतापूर्ण टिप्‍पणी का जवाब दिया जाना न तो जरूरी होता है और न ही औचित्‍यपूर्ण। आप कितने पढ़े-लिखे हैं, आपकी भाषा और व्‍याकरण से प्रमाणित हो रहा है। न सोचने की क्षमता है आप में, और न ही लिखने की तमीज।
      मुझ पर गालियां फेंकने-उलीचने के बजाय अगर आप वर्तनी और व्‍याकरण पर ध्‍यान देते, तो आज किसी काबिल जगह पर होते।
      लेकिन कोई बात नहीं। इस दुनिया में आप जैसे लोग भी मौजूद हैं, इसका विश्‍वास दिलाने के लिए आपका धन्‍यवाद।
      कुमार सौवीर

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