: तुम तो पत्रकारिता के कैबिनेट सेक्रेट्री हो, फिर ऐसी मूर्खता : केवल तेल-मालिश, वरना केंद्रीय मंत्री रविशंकर सिंह के इंटरव्यू में मूर्खताओं को एडिट कर सकते थे तुम : शशिशेखर और निर्मल पाठक ने जो किया है, पत्रकारिता की पीढि़यां कोसेंगी : वाकई बदल रहा है हिन्दुस्तान अखबार का चरित्र-दो :
कुमार सौवीर
लखनऊ : जब मैं किसी पत्रकार या पत्रकार बिरादरी के बारे में बातचीत करना शुरू करता हूं, तो सबसे पहली कोशिश तो यही करता हूं कि उसके साथ अधिकतम सम्मान और श्रेष्ठतापूर्ण माहौल बनाया जा सके। ताकि पत्रकारिता और पत्रकार के प्रति समाज में उसका उचित स्थान मिल सके। इसीलिए दुख की बात यह है कि हमारे चिरकुट और धंधेबाज अपनी करतूतों से बाज नहीं आते। और शर्म तो तब लगने लगती है, जब देश के हमारे कद्दावर सम्पादक ऐसी करतूतें कर बैठते हैं।
तो सबसे पहले मैं यह बता दूं कि किसी भी अखबार या समाचार-संस्थान का मालिक पहले तो अपनी सल्तनत का बेताज बादशाह होता है। और उसका सबसे बड़ा महामंत्री होता है वहां का सम्पादक, जिसकी हैसियत किसी केंद्रीय सरकार के कैबिनेट सेक्रेट्री के समान होती है। कम से कम 36 साल की कठोर आईएएसगिरी के बाद कोई बिरला आईएएस अफसर देश का कैबिनेट सेक्रेट्री की कुर्सी तक पहुंच पाता है। वह भी संविधान के प्रति पूरी निष्ठा और निर्विवाद ईमानदारी के साथ। इस पद तक पहुंचने के बाद उसका सर्वोच्च दायित्व होता है कि वह इस पद पर त्रुटि-हीन सेवा देगा। यानी जीरो-मिस्टेक।
लेकिन शशि शेखर ने पत्रकारिता जगत में कुल 40 साल तक खपाया है, और इस देश के सबसे महान और अति-सम्मानित अखबारों में से एक हिन्दुस्तान में पिछले पांच बरसों से समूह सम्पादक अर्थात शीर्षस्थ पद पर आसीन हैं। फिर इतने वरिष्ठतम और अति संवेदनशील पद पर बैठने के बावजूद शशि शेखर ने यह मूर्खता क्यों कर दी, कि उनकी आखिरी पारी में उन पर सवालों की बारिश होना शुरू हो चुका है। उनका जिम्मा तो त्रुटिहीन माहौल बनाना था न
हमारे न्यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम ने 26 सितम्बर-16 को हिन्दुस्तान दैनिक के सम्पादकीय पेज पर उस इंटरव्यू की समीक्षा की थी, जिसे हिन्दुस्तान के समूह सम्पादक शशि शेखर और उनके राजनीतिक सम्पादक निर्मल पाठक ने केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद का लिया था। लगभग एक पृष्ठ पर छापे गये इस साक्षात्कार में शशि शेखर और निर्मल ने 16 प्रश्न उछाले और उसके जवाब छापे हैं। लेकिन हैरत की बात यह रही कि सबसे पहले के नौ प्रश्न इन सम्पादकों ने उन विषयों पर पूछे, जिनका कोई भी लेना-देना रविशंकर सिंह के विभाग से नहीं था।
यानी सच बात तो यह रही कि अपना यह इंटरव्यू लेने के पहले शशि शेखर और निर्मल पाठक ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि वे जिस मंत्री का इंटरव्यू कर रहे हैं, वह वाकई उस सवालों से सम्बन्धित विभाग का दारोमदार रखता भी है या नहीं। आपको बता दें कि रविशंकर देश के कानून और सूचना तकनॉलॉजी विभागों के मुखिया हैं, विदेश विभाग, गृह विभाग, रक्षा विभाग आदि मामलों के मंत्री नहीं।
अब जरा उन मूर्खतापूर्ण सवालों पर एक नजर डालिये न, जिसे www.meribitiya.com ने खोज लिया है।
पहला सवाल:- उरी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई का जबर्दस्त दबाव है। सरकार के पास क्या विकल्प है।
दूसरा सवाल:- आपको नहीं लगता है कि हमारी पाकिस्तान नीति फेल हो गयी है। क्या रिश्ते सुधारने के लिए मोदी सरकार ने जल्दबाजी में पाकिस्तान पर ज्यादा भरोसा किया
तीसरा सवाल:- तो क्या यह माना जाए कि प्रानमंत्री सार्क सम्मेलन में भाग लेने इस्लामाबाद जाएंगे।
चौथा सवाल:- द्विपक्षीय बातचीत का क्या भविष्य है
पांचवां सवाल:- क्या बलूच नेताओं को भारत में राजनीतिक शरण दी जाएगी।
छठा सवाल:- कश्मीर पर राजनीतिक समाधान की बात हो रही है, लेकिन भाजपा इसे राजनीतिक समस्या नहीं मानती
जाहिर है कि इन सवालों पर रविशंकर प्रसाद झुंझला ही उठे होंगे। तभी तो तीसरे सवाल पर ही उनकी भृकुटी टेढ़ी हो गयी और वे बोल पड़े कि:- अब यह तो प्रधानमंत्री को ही तय करना है। (क्रमश:)
लेकिन असली सवाल अभी बाकी है। उसे पढ़ने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:- दैनिक हिन्दुस्तान जी! राम नाम सत्त है