: परिवार और मित्रों को उपकृत करने के लिए सूचना आयोग में ठूंस लिया कूड़ा-करकट : अक्सर तो भरी सुनवाई कक्ष में अपमानित करते दिख जाते हैं सरकार के मुंहलगे सूचना आयुक्त : कुछ ही दिन पहले एक कार्यकर्ता को आयुक्त ने पीट कर पुलिस के हवाले कर दिया :
कुमार सौवीर
लखनऊ : समझ में कुछ भी नहीं आ रहा है, तो बहुत परेशान होने की जरूरत नहीं है। आपको यह जानने की भी तनिक भी जरूरत नहीं कि उप्र जन सूचना आयोग के मुख्यालय में क्या रहा है और क्या हो सकता है। केवल इतना ध्यान रखिये कि जरा इस मुख्यालय से दूरी बनाये रखिये। सूचनाएं तो आपको शायद नहीं ही मिल पायेंगी, हां आपको सरेआम पिटाई और बेइज्जती का सामना जरूर करना पड़ेगा।
दरअसल, यूपी का राज्य सूचना आयोग अब अपने दायित्वों और लक्ष्य से पूरी तरह दरकिनार हो चुका है। सरकारी कामकाज में धांधागर्दी से निजात दिलाने के लिए सन-2005 में जन सूचना अधिकार अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था। लेकिन हैरत की बात है कि किस नियम और कायदों के तहत से इसे बनाया गया, और अब यहाँ क्या चल रहा है, कुछ समझ में ही नहीं आता। आम आदमी को सूचना दिलाने के लिए बने इस आयोग के आयुक्त लोग अब आम आदमी कोकाटने-नकोटने-गुर्राने पर आमादा हैं।
यहाँ के सूचना आयुक्त लोग अपने दफ्तरों को न्याय-कक्ष कहलाते हैं। यानी कोर्ट रूम। जबकि इन्हें धेला भर अदालतों का दर्ज़ा नहीं है। पूरा आयोग इनकी निजी बपौती और जागीर के तौर पर तब्दील हो चुका है। लेकिन दबंगई है, तो भैया है। इतना ही नहीं, इन आयुक्तों ने खुद के नाम के आगे को माननीय का ठप्पा लगाना भी शुरू कर दिया है। और अब जब कोर्ट रूम है तो वहां सुप्रीम कोर्ट टाइप के जस्टिस का रुतबा लादे आयुक्त ही तो बैठेगा ही, जो यह अधिकांश आयुक्त गण कर रहे हैं।
सूचना मांगने की अर्जी लगाने वाले पर खौखियाना तो इनकी आदत में शामिल होता जा रहा है। किंग जार्ज मेडिकल कालेज में भर्ती एक मरीज से जुड़ी जानकारियों को दिलाने के नाम पर तो कई महीनों तक सूचना आयुक्तों ने सूचना मांगने वाले शख्स ने दौड़ाया। लेकिन जब उसने कई तारीखें देने पर ऐतराज किया तो अरविंद सिंह बिष्ट ने उल्टा ऐतराज कर दिया कि तुम्हें इसी जानकारी क्यों चाहिए। जब कई लोगों ने अरविंद बिष्ट के इस रवैये पर सख्त ऐतराज किया तो बिष्ट बगलें झांकने लगे। आपको बता दें कि अरविंद बिष्ट सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के दूसरे पुत्र प्रतीक के ससुर हैं।
ऐसे में अपनी धमक दिखने के लिए यह अफसर वादी को खूब बे-इज्जत करते हैं। कोई जरा सी भी जिरह करना चाहे तो उस पर खौखिया पड़ेंगे। कभी झड़पेंगे, तो कभी डपट देंगे। मुंह बिचका कर फाइल नीचे फेंक देंगे कि सबसे बाद में सुनाओ जाएगा यह मामला। बात-बात पर गुर्रायेंगे। दांत दिखाएँगे, मानो कि फ़ौरन काट खाएंगे। सरकारी अफसरों के सामने। बोलेंगे:-अर्ज़ी लिखने की तमीज नहीं है तुम गंवारों को। और यहाँ इन जाहिलों को सूचना चाहिए।
अब इसके बावजूद, अगर आपने एक शब्द भी निकालने का साहस दिखाया तो तमक कर चिल्लायेंगे:- खामोश बेअदब बदतमीज। अभी मजा चिखाता हूँ तुझे। जेल में सडा न दिया तो मेरा नाम नहीं।
फिर घंटी बजा कर अपने सुरक्षाकर्मी सिपाही को हुक्म देंगे कि:- पकड़ इसे। दिन भर दबोचे रहना इसे। शाम इसे पुलिस को सौंपूंगा।
तनवीर अहमद सिद्दीकी को तो अरविंद बिष्ट ने न केवल पीट दिया था, बल्कि उसे पुलिस बुला कर हजरतगंज थाने में बंद करा दिया था। यह मामला अभी तक अदालत में चल रहा है। लेकिन सूचना आयोग के आयुक्तों की अभद्रता पर कोई अंकुश नहीं।
इतना ही नहीं, इसके पहले यूपी के सूचना आयुक्तों की कार्यशैली पर विरोध जताने पर आरटीआई कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा और तनवीर अहमद सिद्दीकी को पुलिस गिरफ्तार भी कर चुकी है।