सावन शुरू: शिव, कजरी और मैं नंगा अवधूत

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: कड़कती बिजली आनंदोत्‍वस में जुटी : भीगने का आनंद उठाना लोग भूल चुके : पु‍ल और सड़क सन्‍नाटे में हैं : बारिश ने तबाह गोमती नदी को नया यौवन दे दिया : नदी, मोहब्‍बत और विचारधारा एक सी, रोक दोगे तो मर जाएगी :

कुमार सौवीर

लखनऊ : कई दिनों बाद सायकिल की याद आयी। भोर में आसमान साफ दिखा, तो निकल पड़ा सड़क पर। 8 किलोमीटर दूर ही निकला था, कि काली घटाओं ने फिर से रात का नजारा पसरा दिया। हार्डिंग्‍स ब्रिज यानी पक्‍का लाल पुल के पहले ही अचानक झमाझम शुरू हो गयी। हालांकि पुल की छतरी तक पहुंचते-पहुंचते मैं पूरी तरह भीग गया था, फिर भी मोबाइल को बचाने की जुगत में रूक गया।

अगले एक घंटे तक जब झकाझोरी बारिश के थपेड़े नहीं रूके, तो मैंने एक भिखारी से एक पॉलीथीन-पैक मांगा, शायद पहली बार इस भिखारी को किसी बड़े भिखारी से साबका पड़ा होगा। इसलिए उसने लपक कर अपनी पोटली को खंगाला और एक नकोर पॉली-पैक थमा दे दिया। बदले में मैंने उसे दस रूपये उसकी हथेली पर रख कर उसकी मुट्ठी कस कर बंद कर दिया। उसका नाम है शाकिर। साठ के लपेटे में हैं, आंख से बहुत कम दिखता है, लेकिन इतना तो खूब याद है कि यह पानी की बारिश नहीं, सोने की बारिश है। उसे यह भी पता है कि आज से ही सावन के महीने का पहला दिन है।

यह सच बात ही तो है। खेती-किसानी से जुड़े लोगों का जी इस बारिश से जुड़ा गया होगा। अब धरती सोना ही बरसेगी। सारे क्‍लेश बह जाएंगे। किसान इस महीने को शुभ ही मानते हैं, चाहे हिन्‍दू हो या मुसलमान। महीने का नाम भले अलग-अलग हो, लेकिन बारिश के यह चार सोमवार कमाल के होते हैं। पहले दिन बारिश की बोहनी हो जाए, तो पुरखे और वंशज तक तर जाएंगे। हिन्‍दू समाज में इस महीने का खास अर्थ होता है। धार्मिक भी और आध्‍यात्मिक भी।

पिछली सपा-सरकार में अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह जैसों की करतूतों के चलते लगभग तबाह हो चुकी गोमती नदी को इन अविरल बूंदों ने मानो नया यौवन का वरदान दे दिया। पिछले बरस से अपनी कोख में केवल गंदगी और सड़ांध ही ढोती जा रही इस नदी के प्रवाह ने अब उस कलंक को आगे सरकाना शुरू कर दिया है। पानी का काला पानी अब पीली रंगत बदलता दिख रहा है। हालांकि प्रवाह में शोर की रवानी कत्‍तई नहीं है। इतनी ठोकरें और तबाहियों का असर और कराहटें आज भी कायम हैं। कमजर्फ-मूर्खों को यह तक पता नहीं कि नदी, मोहब्‍बत और विचारधारा एक जैसी ही होती है। रोकना चाहोगे तो मर जाएगी, और निर्विघ्‍न कर दोगे तो पूरी सृष्टि को समृद्ध कर देगी।

भीगने का प्राकृतिक आनंद उठाना शायद लखनऊ वाले पूरी तरह भूल चुके हैं। पु‍ल और सड़क सन्‍नाटे में हैं। आसमान में घटाओं की कालिमा प्रकृति को उल्‍लास बनाती जा रही है। बगल का पुल अब बूंदों के परदों के चलते लुप्‍त होता दिख रहा है। बादलों की गड़गड़ाहट और सर्पिल कड़कती बिजली अपना आनंदोत्‍वस मनाने में जुटी है। साक्षात शिव विराजमान हो जाते हैं प्रकृति पर। कहने की जरूरत नहीं कि यह गजब मौसम है, मिर्जापुर समेत सारे पूर्वांचल में कजरी की धूम मच जाती है।

आसमान अविवाहित युवतियां इस महीने के चारों सोमवार व्रत करती हैं, शिवाराधन करत हैं। ख्‍वाहिश यह कि उन्‍हें शिव सरीखा पति मिल जाए। जो विवाहित हैं, वे अपने पति में शिव खोजती हैं।

लेकिन सबसे बड़ी दिक्‍कत तो मेरे साथ है। मैं तो साक्षात शिव-शंकर महादेव हूं। भोलेनाथ भी मैं ही हूं। लेकिन समस्‍या यह है कि लोग शिव-शंकर महादेव को तो खूब पूजते हैं, लेकिन किसी अघोरी को नहीं। यह जानते हुए भी कि अघोरी ही बम-बम भोला है।

और सच यह भी है कि मैं हूं पक्‍का अघोरी। बिलकुल नंगा अवधूत।

तो अब मुझे प्रणाम करो, और फिर अपना रास्‍ता नापो

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