यूपी के अखबार तो सिर्फ भयावह नशीला स्‍वप्‍न-दोष थे, लखनऊ के हॉकरों ने यह नशा छुड़ा दिया

मेरा कोना

: शुरूआती दौर के दो-तीन दिनों तक पाठक खूब कांखे-पादे, अब सब सामान्‍य हो चुका है : पहले अखबार में मेहतन और चिन्‍तन होता था, अब दल्‍लागिरी और वेस्‍टज ऑफ टाइम : सच बताइये, अखबार न आने से पाठक पर क्‍या फर्क पड़ा : झूठी खबरें प्‍लांट की, विज्ञापन के लिए आबरू तक बेची आपने : ज्‍यादातर अखबारों के अधिकांश रिपोर्टर तो फर्जी खबरों से कागज काला करते हैं : दो दिन में ही सैकड़ों गुना हिट्स मिल गयीं www.meribitiya.com को :

कुमार सौवीर

लखनऊ : राजधानी के सारे न्‍यूजपेपर हॉकर्स पिछले दस दिनों से हड़ताल पर हैं। सुबह-सुबह साढ़े तीन बजे से लेकर छह बजे तक सभी पेपर-सेंटरों पर पर जबर्दस्‍त हलचल होती है, अब वहां श्‍मशानी सन्‍नाटा पसरा हुआ है। हॉकर तय कर चुके हैं कि जब तक उन्‍हें डेढ़ रूपया प्रति अखबार कमीशन नहीं मिलेगा, अखबार नहीं उठाया जाएगा। लेकिन अखबार मालिकों ने उम्‍मीद नहीं छोड़ी है। हर रोज रिपोर्टर इधर-उधर चिल्‍ल-पों करते हैं, अफसरों और नेताओं को तेल लगाते दिख जाते हैं, रात को अत्‍याधुनिक दैत्‍याकार मशीनें लगातार गड़गड़ाती रहती हैं और लाखों की तादात में बदस्‍तूर अखबार छाप कर सेंटरों पर भेजे जा रहे हैं। इसी उम्‍मीद में कि शायद किसी हॉकर का दिल पसीज जाए।

हॉकर भी मानते हैं और सम्‍पादक भी हलकान हैं, कि हालात बहुत खराब हैं। उनका मानना है कि अगर इसका समाधान तत्‍काल नहीं निकाला जाएगा, तो या तो आसमान फट जाएगा या फिर धरती धंस जाएगी। और अगर ऐसा न भी हुआ तो कोई न कोई परमाणु बम नुमा ताकत सब कुछ सर्वनाश कर ही देगा। इसका कारण है कि हॉकर को कमीशन चाहिए और सम्‍पादक को अपने मालिक के लिए चाहिए राजनीतिक प्रश्रय और नियमित भारी-भरकम उगाही।

लेकिन सच बोलिये, क्‍या वाकई इस हड़ताल या इस भयंकर संकट से आम पाठक को कोई दिक्‍कत है? बिलकुल नहीं साहब, कत्‍तई नहीं। न हॉकर को कोई फर्क पड़ा है और न आम पाठक को।

गजब का कमाल है साहब। हॉकर अपनी मजदूरी बढ़ाने की मांग कर रहा है। किससे सम्‍पादक या अखबार मालिक से। वह चाहता है कि गर्मी, सर्दी और बारिश के थपेड़ों में अनथक मेहनत का उसे मेहनताना दिया जाए। हॉकर यह कीमत पाठक की जेब से नहीं मांग रहा है। वह अपनी मेहनत का हिस्‍सा अखबार मालिकों से मांग रहा है। वह सम्‍पादकों से कह रहा है कि जब तुम दल्‍लागिरी पर आमादा हो, झूठी खबर लिखते हो, पाठकों को मूर्ख बनाते हो, सरकार से लेकर अफसर तक से धंधागिरी करते हो, सारी सुविधाएं अपने हिस्‍से में बटोरना चाहते हो, तो फिर हॉकर को उसका समुचित मुआवजा क्‍यों नहीं देते हो। अब दो।

अखबार मालिक से सवाल कर रहा है हॉकर, कि तुम अपने सैकड़ों धंधों की बैसाखी के लिए अखबार का सहारा लेते हो, अपनी करतूतों पर पर्दा डालने के लिए अखबारों के सहारे सरकार और अफसरों पर दबाव डालते हो, अपने घृणित ब्‍यौपार के लिए अखबार जैसी पवित्र संस्‍थाओं को गंदला कर उन्‍हें तबाह करने में तनिक भी संकोच नहीं करते हो, तो फिर हॉकरों को उनका समुचित हक क्‍यों नहीं देते हो। हॉकर पूछ रहे हैं कि जब तुम बेहिसाब कमाई कर रहे हो, तो फिर अखबारों की हालत क्‍यों दयनीय बनाने पर आमादा हो।

जनाब, हकीकत यही है कि अखबार मालिकों ने अपने क्रीत-दास सम्‍पादकों और उनके चिंटू-पिंटुओं के बल पर अखबार संस्‍था को पूरी तरह कलंकित कर रखा है।

अब आइये और पाठकों की राय देखिये। आप किसी भी अखबार के पन्‍ने पलट दीजिए। कोई न कोई बड़ी खबर किसी न किसी अखबार में छूटी जरूर होगी। वजह जानते हैं कि क्‍यों। क्‍योंकि उस पर डील हो जाती है, तो सम्‍पादक उसे दबा देता है। नजीर के तौर पर हिन्‍दुस्‍तान की एक खबर देखिये न। आपका एक प्रमुख संवाददाता बिलकुल झूठी खबर प्‍लांट कर देता है कि अहमामऊ के जंगल में शिकारियों का आतंक है और वन विभाग के अफसर उसे प्रश्रय दे रहे हैं। यह फर्जी खबर थी, लेकिन तुमने छापा। इतना ही नहीं। डीएम राजशेखर को इस साजिश में शामिल किया और एक ट्रेनी आईएएस की अध्‍यक्षता में जांच समिति बनवा डाली। जब मेरी बिटिया डॉट कॉम (www.meribitiya.com) ने उस साजिश का खुलासा किया तो डीएम से लेकर वह संवादाता तक ने सन्‍नाटा खींच लिया। दरअसल यह फर्जी टोली एक महिला यादव डीएफओ के खिलाफ मोर्चा खोले थे।

फर्जी खबरें तुम लिखते हो, मंत्री-संतरी तक से तुम डील करते हो। और हमें षडयंत्रकारी खबरें पढ़वाते हो। न वर्तनी-हिज्‍जे की तमीज है तुममें और न खबर सूंघने की कुत्‍ता जैसी नाक। सारी पत्रकारी मर्दानगी गरीबों पर छांटते हो, दमदारों के चरण चांपते हो।

जरा बताओ कि तुमने पिछले एक-दो साल में कौन-कौन बड़ी उल्‍लेखनीय खबरें ब्रेक की हैं। दो साल पहले मोहनलालगंज में नंगी पायी गयी युवती की लाश की छानबीन तक तुम ने नहीं की। नहीं देखा तुमने कि केवल एक व्‍यक्ति कैसे इतना जघन्‍य अपराध कर सकता है। मैं पूछता हूं तुमसे कि इंदिरा भवन में चकबंदी आयुक्‍त के दफ्तर में हुए हंगामे में तुमने केवल पुलिस और अफसरों का वर्जन ही तो छापा था। उस चकबंदी अफसर और उसके बेटा का पक्ष क्‍यों नहीं छापा। तुमने यह तक समझने की जरूरत नहीं समझी कि गुर्दे प्रत्‍यारोपण की गम्‍भीर बीमारी से ग्रसित व्‍यक्ति किसी गबरू आयुक्‍त पर हमला करने का साहस कर सकता है।

तुम अब केवल मसाज पार्लरों के लिए युवतियों की जरूरत वाले विज्ञापन छापते हो, लिंगवर्द्धक यंत्र का एड छापते हो। तुम्‍हें जापानी तेल ही नहीं, उसमें भी एम और एफ लेबल वाली शीशी बेचने में रूचि है।

ऐसे में पाठक तुम्‍हें क्‍यों पढ़े। हां, यह सच है कि तुम्‍हारा अखबार आम पाठक के ड्राइंग-रूम की शोभा है, लेकिन जरा किसी भी पाठक से पूछिये तो तनिक, कि क्‍या तुम्‍हारा अखबार वाकई किसी पाठक की जरूरत रह गया है?

बहरहाल, आप सब को एक बड़ी खुशखबरी सुना दूं, वह यह कि अखबारों की इस हड़ताल का सबसे बड़ा सकारात्‍मक असर www.meribitiya.com के पक्ष में आया है। इन दो दिनों के दौरान www.meribitiya.com की हिट्स में शानदार गुना ज्‍यादा का इजाफा हुआ है।

तो जियो, अखबारों के मालिकों, सम्‍पादकों, रिपोर्टरों और हड़ताली हॉकरों। www.meribitiya.com तुम्‍हारा दिल से शुक्रिया करती है।

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