आपको अपनी मां, बहन, बेटी वाली गन्‍दी-अश्‍लील गालियां सुननी हैं, तो थायरोकेयर सेंटर पर पधारिये न?

सैड सांग

: खून की जांच के बजाय खून पीने और अपमान की हद तक पहुंचा देंगे थायरोकेयर के लोग : एक मानसिक बीमार को इतना भयभीत किया कि वह अब बेड तक पहुंच गया : खुद को सर्वोत्‍तम ब्‍लड-इन्‍वेस्टिगेशन सेंटर होने का दावा करता है थायरोकेयर : साढ़े सोलह सौ रूपये अदा करने के बाद जब शिकायत की तो मुम्‍बई मुख्‍यालय से इस मरीज को फोन पर दी गयीं अश्‍लील-गन्‍दी गालियां :

कुमार सौवीर

लखनऊ : एक भयंकर मानसिक बीमारी है ओसीडी। इसमें बीमार हमेशा डरा हुआ, आशंका और दुखद, भयावह और अशुभ आशंकाओं का शिकंजा फंसता जाता है। हालत हार्ट-अटैक, ब्रेन-स्‍ट्रोक अथवा आत्‍महत्‍या की सीमा तक पहुंच जाता है। जिस शख्‍स को यह बीमारी हो जाए, उसकी जिन्‍दगी जहन्‍नुम हो जाती है। इसका इलाज केवल यही है कि डॉक्‍टर उसकी नियमित देखभाल करते रहें और उसे तनाव से दूर रखें। लेकिन खुद को मरीजों की खून-जांच की विश्‍वविख्‍यात और सबसे विश्‍वसनीय डायनोस्टिक सेंटर के तौर पर प्रचारित करने वाले थायरोकेयर ने लखनऊ के ओसीडी मरीज को मौत के करीब खड़ा कर दिया है।

लखनऊ में डालीगंज के रहने वाले इस शख्‍स का नाम है कृष्‍ण कुमार दीक्षित। पिछले करीब 20 बरसों से वे ओसीडी से बेहाल हैं, और मनोरोग विशेषज्ञ उनका लगातार इलाज कर रहे हैं। डॉक्‍टरों का कहना है कि तनाव से दूर रखना और खुद को प्रसन्‍न रखने के साथ ही उन्‍हें अशुभ आशंकाओं जुड़ी हरकतों से दूर रखना होगा। दीक्षित की उम्र है करीब 50 साल। लघु व्‍यवसायी हैं, घर में एक मां, पत्‍नी और एक बेटा है। डॉक्‍टरों के अनुसार दीक्षित का नियमित रक्‍त-परीक्षण भी इलाज का मुख्‍य पक्ष है, ताकि पता चल सके कि उनके शरीर पर क्‍या-क्‍या फर्क आ रहा है।

24 अगस्‍त-16 को अपने रक्‍त की नियमित जांच के लिए दीक्षित को उनके डॉक्‍टर ने बताया कि थायरोकेयर सेंटर इस समय काफी रियायत के साथ ब्‍लड-डायनोग्‍नोस्टिक की योजना चला रहा है। लखनऊ में थायरोकेयर ने अपनी फ्रेंचाइजी पार्क रोड स्थित डॉ नम्रता भारद्वाज को सौंप दे रखी है। इसके लिए थायरोकेयर ने नम्रता से भारी-भरकम रकम भी शुल्‍क के तौर पर वसूली है। इस फ्रेंचाइजी के तहत डॉक्‍टर नम्रता भारद्वाज ने शहर भर में कुकुरमुत्‍ते की तरह ब्‍लड-कलेक्‍शन सेंटर बना रखे हैं।

बहरहाल, दीक्षित को पता चला कि अलीगंज के पुरनिया बाजार में थायरोकेयर में उसका कोई फेंचाइजी है। दीक्षित सेंटर पहुंचे। यह सेंटर बिलकुल खुला ही था। पहले मरीज दीक्षित ही थे।  साढ़े सोलह सौ रूपयों की फीस अदा की। वहां मौजूद कर्मचारी ने खून निकालने के लिए दीक्षित की बांह में सुई लगा दी और खून खींच लिया। लेकिन इसी बीच अचानक ही दीक्षित को अहसास हुआ कि इस प्रक्रिया में उस व्‍यक्ति ने नई सिरींज का इस्‍तेमाल करने के बजाय, कोई पुरानी सिरींज लगा दी है।

जैसे ही यह आभास हुआ, दीक्षित भय से थरथरा उठे। इस पर उन्‍होंने उस कर्मचारी से शिकायत की, तो उसने दीक्षित के आरोपों को खारिज कर दिया। लेकिन भयभीत दीक्षित ने कर्मचारी के आसपास, टेबल और दीगर डस्‍टबिन्‍स पर देखा, तो एक भी रैपर नहीं मिल पाया जो साबित करता कि दीक्षित को नया सिरिंज से खून निकाला गया है। भुगतान की रसीद भी नहीं दी गयी। ऐतराज पर उस कर्मचारी ने दीक्षित से अभद्रता की। तो दीक्षित ने सीधे मुम्‍बई के थायरोकेयर को फोन करके अपनी शिकायत दर्ज करनी चाही। लेकिन वहां मौजूद

एग्जिक्‍यूटिव ने बताया कि इस सेंटर में हमेशा ऐसे लोग फोन करते रहते हैं, लेकिन हर शिकायत की सुनवाई कर पाना मुमकिन नहीं है। उसने सलाह दी कि दीक्षित उसी सेंटर पर अपनी शिकायत दर्ज करायें, मुम्‍बई आफिस इस मामले में कोई हस्‍तक्षेप नहीं करेगा।

अब तक दीक्षित की मानसिक स्थिति खराब हो चुकी थी, उन्‍होंने तमक कर कहा कि वे मानसिक रूप से बुरी तरह डरे हुए हैं, आपकी गलती का खामियाजा मुझे अपनी जान से जाने की नौबत आ सकती है। दीक्षित ने कहा कि इस मामले की शिकायत बड़े पैमाने पर करेंगे, आप मुझे अपने वरिष्‍ठ अधिकारी से बात कराइये, वरना मैं इस मामले को कोर्ट और इस मसले को मैं मीडिया तक ले जाऊंगा।

इतना सुनते ही थायरोकेयर के उस एग्‍जीक्‍यूटिव ने दीक्षित को मां, बहन और बेटी तक की गालियां देना शुरू कर दिया। भयभीत दीक्षित ने डर कर फोन कर दिया, लेकिन उसके बाद लगातार ही उसी नम्‍बर और दूसरे नम्‍बरों से भी दीक्षित के पास अभद्र, अश्‍लील और धमकी देने वाले फोन आने शुरू हो गये। जाहिर है,  इस हादसे से दीक्षित अलीगंज चौराहे पर सड़क पर ही बेहोश हो गये। बाद में वहां से गुजरते लोगों ने दीक्षित उन्‍हें अस्‍पताल पहुंचाया।

उधर इस कृष्‍ण कुमार दीक्षित के साथ हुई इस घटना पर ने थायरोकेयर के मुम्‍बई मुख्‍यालय को ई-मेल से उनका पक्ष जानने की कोशिश की, लेकिन थायरोकेयर ने इस संगीन प्रकरण पर बेहद संदिग्‍ध चुप्‍पी साध रखी है।

खून की जांच के नाम पर चल रहे घिनौने धंधे ने न जाने कितने मरीजों को मौत के घाट उतार दिया होगा, कोई हिसाब तक नहीं है। लेकिन कभी-कभी ऐसी घटनाएं हो ही जाती हैं, जिनसे ऐसे गंदे धंधों का खुलासा हो जाता है। थायरोकेयर खुद को दुनिया की सबसे बड़ी रक्‍त-जांच डायनोस्टिक टायकून घोषित करती है, जिसने देश के करीब हर गली-मोहल्‍ले-शहर में गिरोहबंदी की शैली में अपना गंदा धंधा का जाल फैला दिया है। मेरी बिटिया डॉट कॉम ऐसी साजिशों-खेलों का खुलासा करने जा रही है। यह लेख-श्रंखला है। इसकी अगली कडि़यों को देखने-समझने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:- थायरोकेयर, यानी खून का कातिल धंधा

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