: हर सरकारीकर्मी को ईएल पर नकदी मिलती है, पुलिसवाले को ठेंगा : हर विभाग कर्मचारी को 109 अवकाश मिलता है, पुलिसवालों को कए भी नहीं : आप मजाक कर रहे हैं, पुलिस में कहीं मानवाधिकार की बात होती है क्या : आप लाख नाराज हों, लेकिन हकीकत यह है कि पुलिसवाले की नौकरी किसी जानवर से कम नहीं होती है : अंक-चार
पुलिसवाला
लखनऊ : (गतांक से आगे) यह तो हुई उन खर्चों की बात जिनके लिए पैसा ही नहीं मिलता. लेकिन जो पैसा पुलिसकर्मियों को अपनी सेवाओं के लिए मिलता है उसकी भी तुलना दूसरे क्षेत्रों से करने पर साफ नजर आ जाता है कि स्थिति कितनी गंभीर है. न्यूज पोर्टल www.meribitiya.com से बातचीत के दौरान एक दारोगा बजरंग सिंह पाल कहते हैं, ‘तीसरे वेतन आयोग में प्राइमरी स्कूल के अध्यापक का वेतनमान 365 रु तथा कांस्टेबल का 364 रु था. दोनों के वेतन में मात्र एक रुपए का अंतर था. चौथे वेतन आयोग में यह अंतर 200 तथा पांचवें वेतनमान में 1450 रु का हो गया. छठे वेतनमान में पुलिस विभाग का सिपाही प्राइमरी स्कूल के अध्यापक से 4100 रु पीछे रह गया.’
और यह हाल तब है जब पुलिस विभाग का सिपाही हमेशा ड्यूटी पर माना जाता है और अध्यापक महज 10 से चार बजे तक ही स्कूल में रहते हैं. पुलिस कर्मचारियों को किसी त्योहार या अन्य मौकों पर भी ड्यूटी करनी पड़ती है. जबकि अन्य विभाग के कर्मचारियों को साल में 109 छुट्टियां मिलती हैं. पुलिस कर्मचारियों को 109 सरकारी छुट्टियों का नगद भुगतान भी नहीं होता. थाने में तैनात सिपाही व दरोगा की ड्यूटी कम से कम 12 घंटे की हो जाती है. चौकी प्रभारी, एसओ व इंस्पेक्टर की ड्यूटी 24 घंटे की होती है. इसके बावजूद कर्मचारियों को ओवर टाइम की कोई सुविधा नहीं है. जबकि मानवाधिकार आयोग व सुप्रीम कोर्ट भी आठ घंटे की ड्यूटी की बात कहते हैं.
काम ज्यादा, वेतन कम और ऊपर से छुट्टियों का टोटा. ऐसे में कर्मचारियों में तनाव व कुंठा आना स्वाभाविक है. लेकिन उनकी शिकायतों की कहीं सुनवाई नहीं. पाल कहते हैं, ‘. थाने की जीप को महीने में मात्र 150 लीटर डीजल मिलता है जबकि जरूरत 350 लीटर डीजल की होती है. ऐसे में यदि कोई थानेदार एसपी के पास जाकर अतिरिक्त डीजल की मांग कर बैठता है तो यही जवाब मिलता है कि थाना चलाना है तो अपने पास से मैनेज करना सीखो.’(क्रमश:)
पुलिसवाला। यह शब्द ही हमारे समाज के अधिकांश ही नहीं, बल्कि 99 फीसदी जनता की जुबान पर किसी गाली से कम नहीं होता है। लेकिन इस गाली के भीतर घुसे उस इंसान के दिल में कितनी पीड़ा के टांके दर्ज हैं। पुलिसवाला कि नर्क या दोजख का बाशिंदा नहीं होता है। परिग्रही भी नहीं होता। वह भी इंसान होता है। जैसे हम और आप। लेकिन हालात किसी को भी कितना तोड़-मरोड़ सकते हैं, इसे समझने के लिए आइये, यह दास्तान पढि़ये। यह पीड़ा है, जो खबर की तर्ज पर है। एक संवेदनशील पुलिसवाले ने इस रिपोर्ताज नुमा इस लेख श्रंखला को मेरी बिटिया डॉट कॉम को भेजा है। यह हम इसे चार टुकड़ों में प्रकाशित करने जा रहे हैं। इसकी अन्य कडि़यों को देखने-पढने के लिए कृपया निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:- दारोगा जी ! सूजी है ?