बहुत बातें करती हैं कस्बे की लड़कियां

मेरा कोना

अंतत: रह जाती हैं अकेली….उम्र भर के लिए

: छुपकर बतियाती हैं मोबाइल पर : मायामृग का संवेदनशील मन और……: होता अगर वे भी जा पाती कॉलेज :

वंदना त्रिपाठी

बहुत बातें करती हैं कस्बे  की लड़कियां

कस्बे की लड़कियों के पास बहुत सी बातें हैं

सूट के रंग पर घंटा भर खुश होती हैं

और दो घंटे तक समझा सकती हैं

अपनी सहेलियों को

कि क्यों सूट करता है उसे परपल कलर का सूट

और पीको की हुई चुन्नी क्यों  अच्छी है

बजाय किनारी लगवाने के…

कस्बे की लड़कियां छुपकर बतियाती हैं मोबाइल पर

मिलाए गए हर नंबर पर नजर है सबकी

जानती हैं पर कभी कभी कर ही जाती हैं

गलती, अपनी पसंद का नंबर मिलाने की

उसके बाद झेलती हैं सजा, फोन छीन लिए जाने की

मिन्नतों और गुजारिशों के बाद

मां की गारंटी पर ही खुलते हैं तब संवाद के रास्ते….

कस्बे की लड़कियों के लिए अब भी सिलाई-कढ़ाई सीखना

इकलौता बहाना है घर से बाहर निकलने का

रेहड़ी-ठेले पर खड़े होकर गोलगप्पे खाना सपने जैसा सुन्दर सपना

वे काढ़ती हैं एक छोटा सा लाल फूल

रुमाल के किनारे पर

कि जिसमें छिपा रहता है किसी नाम का पहला अक्षर

दूसरा अक्षर नहीं लिख पाएंगी वे जानती हैं

भले ही जानती हैं सारे हिज्जे उस नाम के…..

कस्बे की लड़कियां स्कूल के दिनों पर बतियाती हैं

और बतियाती हैं कि कैसा होता अगर वे भी जा पाती कॉलेज

शहर की लड़कियों को कहती हैं बेशर्म

और सोचती हैं कि काश ये बेशर्मी उनके भी हिस्से आई होती

जब जिसे जी चाहे बुला लेती उसके नाम से

अत्याधुनिक संबोधनों के साथ,

जिन्‍हें केवल वर्जित उपन्यासों में पढ़ा है उन्होंने

कस्बे की लड़कियां अब भी छेड़ती हैं एक दूसरे को

उनके विवाह के जिक्र पर,

नीचे के होंठ का कोना दबाकर….

कस्बे की लड़कियां समूह में चलती हैं

समूह में गाती हैं,

समूह में सोचती हैं

समूह में हंसती हैं

समूह में जीती हैं….और

अंतत: रह जाती हैं अकेली….उम्र भर के लिए

( वंदना त्रिपाठी की फेसबुक वाल से )

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