: अपनी पीड़ा देर से ही बयान करने वाली स्त्री की ट्रोलिंग सही नहीं कही जा सकती : गुनगुन को सही नहीं मान रहे, तो नागार्जुन पर लगे आरोपों को भी गलत न मानें :
देवेंद्र आर्य
गोरखपुर : महान और जनकवि नागार्जुन पर एक युवती द्वारा दुष्कर्म करने के मामले में आज एक बड़े जनवादी कवि भी सामने आ गये हैं। गोरखपुर के रहने वाले देवेंद्र आर्य ने गुनगुन थानवी का पक्ष खुलेआम ले लिया है। उनका कहना है कि किसी कवि का बड़ा होना अलग बात होती है, लेकिन उसके बड़े कवि होने से पीडि़त युवती की पीड़ा को कमतर नहीं समझा जा सकता है।
गुनगुन द्वारा सात वर्ष की उम्र में नागार्जुन द्वारा उसके साथ किये गये दुष्कर्म के बाद उठायी आवाज के बाद भड़के विवाद में एक नया मोड़ दे दिया है देवेंद्र आर्य ने। देवेंद्र ने साफ कह दिया है कि यह कोई तर्क नहीं बनता कि सौ लोगों का अनुभव दूसरा है तो किसी एक का अनुभव गलत ही है। आज के सामाजिक यथार्थ को ध्यान में रखें तो कोई भी स्त्री अपने विरुद्ध हुए अत्याचार और वह भी यौन अत्याचार के खिलाफ मुंह खोलने का साहस नहीं कर पाती । किसी ने किया तो हम उसे इसलिए लोलिया लें कि तभी क्यों नहीं कहा, अब क्यों कह रही है, यह कोई तर्क नहीं।
कवि की महानता उसके व्यक्ति की महानता का प्रमाणपत्र नहीं होती। रही बात यह कि चर्चा में आने के लिए यह आरोप लगाया गया है तो नागार्जुन इतने भी महान नहीं कि उन पर यौन शोषण का आरोप लगा कर महान बन लिया जाए और वह भी एक साहित्य में एक अज्ञात स्त्री द्वारा , उम्र के इस पड़ाव पर जब उसका अपना दाम्पत्य जीवन सकुशल हो।
मेरा सीधे सीधे मानना है कि हम यदि गुनगुन को सही नहीं मान रहे हैं तो तपाक से नागार्जुन पर लगे आरोप को भी गलत न मानें । आरोपी है नहीं इससे आरोप की तीव्रता कम नहीं हो जाती न ही उसे इसलिए उसे पाक साफ़ माना जा सकता कि वह महान कवि था । उसके इतने चाहने वाले हैं । कार्ल मार्क्स से महान कौन हुआ , मगर….। आरोप लगाने वाली स्त्री के विरुद्ध इसलिए नहीं खड़ा हुआ जा सकता कि उसकी औक़ात साहित्य में कुछ नहीं है ।बेहतर है कि हम तुरंत निर्णय न सुनाएं और प्राथमिक रूप से स्त्री के अपमान (तथाकथित ही सही) के साथ खड़े हों । आरोप सही होने भर से नागार्जुन का हिंदी कविता में ऐतिहासिक योगदान कम नहीं हो जाता । वे बड़े कवि थे , रहेंगे। मगर अपनी पीड़ा देर से ही बयान करने वाली स्त्री की ट्रोलिंग सही नहीं कही जा सकती ।