मदारी बोला: एक रुपया, एक रुपया, एक रुपया

दोलत्ती
: तथाकथित अपमान, अवहेलना व अवमाननाजनक व्यवहार का दंड महज एक रुपया : गुजारिश सिर्फ कि सुप्रीम कोर्ट को अराजक और नंगा होने से रोक लीजिये :
कुमार सौवीर
बलिया : बचपन के दौर में एक घटना अक्सर सुन और दिख जाती थी।
“एक रुपया, एक रुपया, एक रुपया।
मेहरबान, कद्रदान, आस्थावान, पहलवान, नाबदान, इक्केवान, ठेलावान, रिक्शावान, भक्तवान।
मेहरबान। हमारी बातें सुनिये। फायदा आपको मिलेगा, हमको कुछ भी नहीं मिलेगा। हमको तो सिर्फ तसल्ली मिलेगी। दिल को खुशी मिलेगी।

दर्द दूर जाएगा, मजमा जमेगा, दुनिया आगे बढ़ जाएगी मेहरबान।

तो पहले तो अपना बाद अपने दिल को थामिए, दिल को समझाइए, उसे दुलराइये।
दिल की दिक्कत को दूर करने के लिए, दिक्कत को सुनने के लिए, दिक्कत को समझाने के लिए। और उसके बाद आपको उस दर्द की दवा तजबीज करने के लिए मेहरबान।
जी हां, मेहरबान कद्रदान।
एक रुपया, एक रुपया और सिर्फ एक रुपया।
दोस्तों, सिर्फ एक रुपया जुर्माना !!!
सिर्फ एक रुपया, एक रुपया, एक रुपया ???
आपके खिलाफ हुए तथाकथित अपमान और अवहेलना तथा अवमाननाजनक व्यवहार का दंड महज एक रुपया!!!!
क्या इसीलिए सारे खेल-खेला हुआ है? इतना प्रपंच हुआ ? इतनी छीछालेदर हुई? इतना समय नष्ट किया न्यायपालिका ने ?
जरा सोचा भी है आपने यूअर ऑनर, कि आपकी इस जबरन और सिर्फ हल्की ज़िद और हेठी तथा अहंकार, दम्भ और अहमन्यता भाव से पोषित आपकी इस कवायद ने कितना नुकसान कर डाला है ? न्यायपालिका का, संविधान का, दंड प्रक्रिया का, न्याय प्रक्रिया का, विवेचना परंपरा का?
और सबसे बड़ी बात तो यह है कि आपके ऐसे रवैये और आपके इस ताज़ा कदम के चलते आपके प्रति आम भारतीय जन-मानस में पिछले 70 बरस तक संजोई और मजबूत होती रही आस्था, विश्वास, सम्मान और विनयशीलता के कितने टुकड़े अकेले इसी मुकदमे में चकनाचूर हो गए, आपने कभी सोचने की जरूरत समझी ?
लीजिये, यह रहा मेरा एक रुपया वाला सिक्का, जो आप मुझे दंड स्वरूप फैसला सुनाएंगे। शपथपत्र दिया और लिया जाएगा। फिर एनकाउंटर एफिडेवेट का दौर चलेगा। डेट पर डेट लगेगी। तर्क नहीं, अहंकार भिड़ेंगे। फैसला न जाने क्या होगा, लेकिन उसके पहले आम जनता की नाक काट ली जायेगी। अदालत की भी। उसके बाद ही बहुत गहन विचार-विमर्श के बात आप फैसला देंगे कि इस मामले की कड़ी सजा दे देगी कि इस मामले में एक रुपया की सजा सुनाया जा रहा है।
जाहिर है कि आपकी ही तरह मैं भी चूंकि भारत माता का कारिंदा हूँ, इसलिए मैं पहले ही आपके आदेश का पालन कर दूंगा।
मैं अब आगे बहस की झंझट की गुंजाइश ही खत्म कर दूंगा। साफ कह दूंगा कि संभाल कर पकडियगा यह एक रुपया का सिक्का। वरना अगर आपके हाथ से छूट कर यह खुदा-न-खवास्ता फर्श पर गिर पड़ा, तो आप इस वयोवृद्ध को यह सिक्का उठाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। छनछनाहट का शोर अलग होगा।
बल्कि एक काम करता हूँ अभी। हो सकता है कि भविष्य में कुछ और गलतियां हमने कर डालें, ऐसी हालत में उनका जुर्माना भी मैं एडवान्स अभी अदा किये देता हूँ।
सो प्लीज़, टेक इट इज़ी, एण्ड टेक केयर इट फ़ॉर।
बस गुजारिश यही है कि यह सर्वोच्च न्यायपालिका है। इसे अराजक और नंगा होने से रोक लीजिये।

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