मामू ने भांजों को जिद की चम्‍मच से कोरोना चटाया

दोलत्ती

: अखबार का मेडिकल कालेज, अखबार के पत्रकार, अस्‍पताल में भर्ती अखबार के पत्रकार, अखबार में हंगामा : अमृत-विचार संपादक खौखियाते रहे, नाक कटी अखबार की :

कुमार सौवीर

लखनऊ : कोरोना को लेकर एक गजब झंझट खड़ा हो गया है बरेली में। अब हालत यह है कि यहां के एक अखबार के पत्रकारों ने ही नहीं, बल्कि यहां के संपादक तक ने भी अखबार के प्रबंधन को भी झुमका-सुरमा से सजा कर उन्‍हें बाकायदा तमाशा बना डाला है। बात यहीं तक होती तो भी गनीमत थी, अब तो यह अखबार ही अराजक पागलखाने को मात करने लगा है। हंगामा इतना भड़क गया है कि अब तक प्रशासन की सदाशयता हासिल इस अखबार से जिला प्रशासन कुछ इस कदर झुंझला पड़ा, कि उसने इसके मुख्‍यालय को ही सील कर दिया। उधर इस अखबार के पत्रकार भी इस मामले में खुलेआम बगावत पर आमादा हैं।
अखबार का नाम है अमृत-विचार। वैसे नाम में क्‍या रखा है। नाम तो दृष्टिबाधित लोगों का नयनसुख भी रखा जा सकता है, और दमड़ी-धेला भर को तरसते भिखारी लोग भी अपना नाम किरोड़ीलाल रख सकते हैं। यही हालत है अमृत-विचार का। अखबार का अधिकांश स्‍टाफ या तो बगावत कर चुका है, या फिर सम्‍पादक के फैसलों के चलते कोरोना से संक्रमित हो चुका है। जो रिपोर्टर था, वह कोविड-अस्‍पताल में भर्ती होने के बावजूद अस्‍पताल में दारू छान कर मुर्गा चांप कर हंगामा करता पकड़ा गया है। अब अंट-शंट आरोप-प्रत्‍यारोपों पर आमादा है। उधर जिला प्रशासन इस अखबार से सम्‍पादक और उसके पत्रकारों की करतूतों से आजिज आ चुका है। कोविड-अस्‍पताल में भर्ती यहां के कर्मचारियों-पत्रकारों के अमृत-मयी विचारों से ओतप्रोत क्रिया-कलापों से तंग कर अखबार के मालिक के निजी मेडिकल कालेज में जबरन भेज चुका है जिला प्रशासन। यानी टोटल मनोरंजन। जिन्‍हें खबर लेने, समझने, लिखने और छापने का जिम्‍मा था, वह अब खुद ही एक सनसनीखेज खबर बन चुके हैं। चंद दिनों में ही ऐसे अमृतमयी विचारों का स्‍खलन देख कर बरेली के पागलखाने के पागल भी पगलाये जा रहे हैं।
दोलत्‍ती के सूत्र बताते हैं कि हालत तो यह है कि यह अखबार खुद ही अपने आप में एक अनुप्रास अलंकार बन कर रह गया है। चाचा ने चाची को चांदी की चम्‍मच से चटनी चटाई। लेकिन सबसे शर्मनाक हालत तो यह है कि इस अखबार के संपादक का संपादक और उनके फैसले तथा व्‍यवहार ने ही इस अखबार का तियां-पांचा बिखेर दिया है। यहां जो भी हो रहा है, वह एक अक्षर से ही शुरू हो रहा है। वह है सम्‍पादक शम्‍भूदयाल बाजपेई। कोरोना की धमक साफ तौर पर सुनने और महसूस करने के बावजूद संपादक ने अपने कर्मचारियों और पत्रकारों को बचाने से कोई भी कोशिश नहीं की। दोलत्‍ती संवाददाता को इस अखबार के कई कर्मचारियों ने बताया कि न तो यहां सेनेटाइजर की व्‍यवस्‍था की गयी और न ही किसी अन्‍य सतर्कता की। इतना ही नहीं, संपादक ने तो खुलेआम यह ऐलान करके कर्मचारियों को कोरोना के मुंह में धकेल दिया कि मेहतनकश लोगों को कोराना नहीं होता है, कोरोना अगर होता है तो केवल काहिलों को ही। यह कह कर शम्‍भूदयाल बाजपेई ने अपने कर्मचारियों को लिटमस पेपर बना डाला और साथ ही यह चेतावनी भी दे दी कि वे नियमित रूप से दफ्तर आयें। सूत्र बताते हैं कि संपादक खुद भी मास्‍क जैसी कोई सतर्कता पर विश्‍वास नहीं करते।
जिला प्रशासन के एक वरिष्‍ठ अधिकारी ने दोलत्‍ती संवाददाता को बताया कि कोरोना से पीडि़त हो चुके पत्रकारों की खबर अखबार के मालिक को नहीं दी। इतना ही नही, अखबार के पत्रकारों द्वारा कोविड-अस्‍पताल में शराब पीकर हंगामा की खबर संपादक को भेजी और आग्रह किया कि वे अपने अखबार के मालिक से कह कर मालिक के निजी मेडिकल कालेज में उन पत्रकारों को भर्ती कराने का आग्रह कर लें, इस पर भी संपादक के कानों पर जूं नहीं रेंगी। नतीजा यह हुआ कि कोविड को सम्‍भालने में जुटे प्रशासन को इस अखबार के पत्रकारों की करतूतों के चलते गम्‍भीर संकटों का सामना करना पड़ा। हैरत की तो यह रही कि जब प्रशासन ने खुद ही इस मामले पर शिकायत अखबार के मालिक डॉ केशव अग्रवाल से की, तो उन्‍होंने खुद ही यह बताया कि उनके संपादक ने उनको यह खबर अब तक नहीं दी थी।

1 thought on “मामू ने भांजों को जिद की चम्‍मच से कोरोना चटाया

  1. एक कहावत है खिसियाई बिल्ली खम्बा नोचे । पता नही चल रहा कि आप अपनी पर्सनल खुन्नस निकाल रहे है या पत्रकारिता कर रहे है । अखबार की बुराई कर रहे है या अखबार को मार्किट में हाई लाइट कर रहे । बदनाम करके भी अखबार की हिट्स बढ़ा रहे है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *