: पुलिस की यह क्षेत्र-रक्षण रणनीति चैनल की दलाली करना ही तो है : पुलिस और एसटीएफ की खाल बचाने में पूरा दम लगाये है इंडिया-टुडे वाला आजतक चैनल :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अब पुलिस की दलाली पर आमादा है आजतक। अरे वही इंडिया टुडे वाला आजतक चैनल, जिसमें बड़ी-बड़ी एंकर लोग छोटी-छोटी सी बात पर भी सफेद झूट बोलने पर गुरेज नहीं करती हैं। लेकिन अब इसी चैनल ने सरकार और पुलिस की गर्दन में पड़े फंदों को आहिस्ता से निकाल देने की मुहिम छेड़ दी है। ताजा खबर है कि कानपुर के विकास दुबे के खजांची रहे जय बाजपेई की गिरफ्तारी के मामले में पुलिस और एसटीएफ तक को प्रमाणपत्र जारी कर दिया है। ऐलान कर दिया है कि जय बाजपेई की गिरफ्तारी 19 जुलाई को हुई थी, न कि तीन जुलाई को।
आजतक की इस खबर को बांचने की कोशिश कीजिए। इस चैनल ने अपना सीना ठोंक कर साफ लिख दिया है कि जय बाजपेई की गिरफ्तारी 19 जुलाई को हुई थी। इस बारे में अपनी खबर का लिंक इस चैनल ने ट्विटर समेत सारी सोशल मीडिया पर भी वायरल कर दिया है। यह खबर 28 तारीख की सुबह नौ बजे आजतक ने ट्विटर पर लगायी है। हालांकि यह समझ में नहीं आ रहा है कि इस चैनल ने अपना यह कचरा-ऐलान इतने विलम्ब से क्यों किया। जाहिर है कि कोई न कोई खास बात जरूर है, जिसके चलते यह ऐलान की जरूरत इस चैनल को महसूस हुई। इस खुलासे की वजह अगर आप खोजने की कोशिश कीजिए, तो पूरा मामला ही बेपर्द हो जाएगा।
इस मामले पर सिलसिलेवार समझने की जरूरत है। कहने की जरूरत नहीं कि विकास दुबे के मामले में सबसे ज्यादा संकट में आ चुकी है पुलिस और एसटीएफ। विकास के इनकाउंटर पर तो आयोग बैठ ही चुका है, लेकिन जय बाजपेई का मामला फंस सकता है। सबसे बड़ी बात तो यह जय को तीन तारीख को ही पुलिस-एसटीएफ ने उठा लिया था। लेकिन उसके बाद से ही वह लगातार पुलिस की कस्टडी में रहा। लेकिन न तो पुलिस की औकात हो पायी, और न ही एसटीएफ की, कि वह जय को अदालत में पेश कर पाती। लेकिन इसके बावजूद जय को पुलिस ने अपनी कस्टडी में ही रखा। पूरी तरह अवैध रूप से यह हिरासत थी। इस पर दोलत्ती ने भी कई खबरें लगायी थीं। जाहिर है कि इससे पुलिस और एसटीएफ काफी संकट में आ गयी थी। यही वजह थी कि 19 तारीख को पुलिस ने जय को छोड़ दिया और जय को उसके परिवार के हवाले कर दिया था पुलिस ने।
लेकिन इस पर भी बवंडर खड़ा हो गया। नतीजा यह हुआ पुलिस ने चंद घंटों बाद ही जय को दोबारा पकड़ा और उसे कई धाराओं में चालान कर ही डाला है। उस पर हत्या और षडयंत्र रचने की धाराएं भी दर्ज की गयी हैं। जय के साथ ही साथ विकास दूबे के साथी प्रशांत शुक्ला का भी चालान किया गया। कानपुर के नजीराबाद थाने की पुलिस ने जय पर करीब पौन दर्जन धाराओं में लपेटा है। लेकिन इस मुकदमे को लेकर अब खासा विवाद खड़ा हो गया है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि इसके पहले 15 दिन तक पुलिस ने जय बाजपेई को अदालत में पेश क्यों नहीं किया। इस पूरे 15 दिनों के दौरान जय बाजपेई लगातार पुलिस और एसटीएफ के कब्जे में ही रहा था। उधर पुलिस का अभी तक कोई पक्ष मीडिया तक नहीं पहुंचा है। इसके चलते इस मामले में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
सभी जानते हैं कि जय बाजपेई का असली धंधा दुर्दान्त अपराधी रहे विकास दुबे का खजाना सम्भालना ही था। अपने इसी काले धंधे में जय बाजपेई अरबों का मालिक बन गया। इतना ही नहीं, सरकार और पुलिस और शासन तक में आला हैसियत रखे लोगों के गिरहबान तक भी पहुंच गया था जय बाजपेई। दरअसल जय बाजपेई का मूल धंधा तो विकास दुबे के लिए राजनीतिक, शासन-प्रशासन और पुलिस के साथ ही साथ सामाजिक क्षेत्र में भी तगड़ी लाइजिंग करना ही था।
बिकरू गांव में पुलिस के आठ कर्मचारियों की नृशंस हत्याकांड के बाद विकास दुबे भाग चुका था। लेकिन उसके दो दिन बाद ही जय बाजपेई को पुलिस ने दबोच लिया था। इस पकड़ के बाद पुलिस लगातार जय बाजपेई के साथ कड़ी पूछताछ कर रही थी। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि हिरासत में लेने के 15 दिन बाद 19 जुलाई को पुलिस ने जय बाजपेई को रिहा कर दिया था। तब बताया जाता है कि पुलिस का दावा था कि उसके पास हिरासत में रखने का कोई आधार नहीं है। यह भी पता चला था कि पुलिस ने जय को अपनी हिरासत से छोड़ कर उसे आयकर विभाग के अधिकारियों के हवाले कर दिया था।
लेकिन फिर सवाल तो तब उठता ही है कि आखिर किसके पास था 15 दिन तक जय बाजपेई। इस सवाल का जवाब देने के बजाय अब आजतक चैनल पुलिस की खाल बचाने की साजिश कर रहा है।
सूत्र बताते हैं कि पुलिस की यह क्षेत्र-रक्षण की रणनीति साफ-साफ इस इंडिया टुडे वाले आजतक चैनल की दलाली से तनिक भी इधर-उधर नहीं कही जा सकती है।