कृषि-प्रधान नहीं, बिचौलिया-प्रधान बन जाएगा भारत

दोलत्ती

: किसानों की हालत मुल्‍क का खून जमा देने के लिए पर्याप्‍त : अगली साजिश न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली खत्म करने की होगी : अशक्‍त किसान में न समझने की क्षमता, न विरोध की ताकत :

कुमार सौवीर

लखनऊ : हमारे देश में अगर कोई व्‍यक्ति ऐसे फर्क का मूल्‍यांकन करना चाहे, तो उसे किसान की हालत को परखना पड़ेगा। सपनों में अट्टालिकाएं और जमीन पर खड़ी हकीकत में इतना ही फर्क होता है, जितना जमीन और आसमान में। जमीन के विपरीत सिर्फ झूठे सपने ही होते हैं। और सच तो यही है कि भारत सरकार इस झूठ और धोखे को सच के कपड़े पहना कर उसे सजाने-संवारने की जी-तोड़ कोशिश कर रही है। आज अचानक जिस तरह केंद्र सरकार ने कृषि पर ताबड़तोड़ तीन अध्‍यादेश जारी किये हैं, उसको लेकर भाजपा सरकार की मंशा ही बेपर्द और निर्मम हो चुकी है। यह हालत तब है, जब मुल्‍क की आबादी में 85 फीसदी का हिस्‍सा किसानों का है। कुछ भी हो, जिस तरह की शैली में सरकारी फैसले लिये जा रहे हैं, उससे यह आशंका पुख्‍ता होने लगी है कि इन अध्यादेशों में बहुत खामियां हैं, जिसका फायदा कॉरपोरेट जगत और बिचौलियों को होगा जबकि किसान लुट-पिट जाएगा। आशंका तो यह भी है कि आने वाले वक्‍त में सरकार जल्‍द ही कृषि उपज पर न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली खत्म कर सकती है।
खेत-बाड़ी पर तीन अध्‍यादेश, किसान की उपज पर सरकारी फैसला, उपज पर बनियों का एकाधिकार जैसी आशंकाओं का आकाशचुम्‍बी पहाड़ और उन पर आम किसान की डरावनी खामोशी। यह हालत मुल्‍क के किसानों का खून जमा देने के लिए पर्याप्‍त है। लेकिन उसके खिलाफ आवाज अगर कहीं उठ रही है, तो वह है सिर्फ हरियाणा। केवल चंद घंटे ही बीते हैं देश के किसानों की उपज को लेकर, जब भारत सरकार ने अचानक ऐसे तीन अध्‍यादेश जारी कर दिये। लेकिन हैरत बात है कि ऐसे आदेशों को जारी करने के पहले केंद्र सरकार ने कोई भी चर्चा नहीं छेड़ी थी। डेढ़ महीने पहले इसका इशारा तो किया था सरकार ने, लेकिन उस पर लोकसभा में चर्चा कराने के बजाय सरकार ने सीधे अध्‍यादेश जारी करके साबित कर दिया कि दाल में काला ही नहीं, पूरी की पूरी दाल ही काली है। इतना ही नहीं, यह तक स्‍पष्‍ट करने की जरूरत नहीं समझी थी केंद्र सरकार ने, कि आखिर ऐसे आदेशों का औचित्‍य क्‍या था। इस मामले में असल चिंताजनक बात तो सिर्फ यही है। लेकिन इससे भी ज्‍यादा डरावनी बात यह है कि देश के किसान के पास इतना साहस या क्षमता नहीं है कि वह अपने बारे में लिए गये सरकारी फैसले पर अपने दिमाग से कोई फैसला कर पाये।
आपको बता दें कि केंद्र सरकार की अधिसूचना के मुताबिक कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश के तहत किसानों को राज्य के भीतर या राज्य के बाहर कहीं भी अपनी पसंद के बाजार, संग्रह केंद्र, गोदाम, कोल्ड स्टोरेज, कारखाने को अपनी उपज बेचने की छूट मिल गई है। किसानों पर अब सरकार की तरफ से सरकारी नियंत्रण वाली मंडियों में ही अपनी उपज बेचने की बाध्‍यता नहीं होगी। इन फैसलों से किसान अपनी मर्जी के दामों पर अपनी फसल पूरे देश में कहीं भी बेच सकेंगे।
गौरतलब बात है कि सरकार के कृषि संबंधी इन तीनों अध्यादेश को किसान विरोधी बताकर अन्नदाता किसान यूनियन और अनाज मंडी एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने सोमवार को हरियाणा के लघु सचिवालय के सामने धरना-प्रदर्शन किया और किसान व आढ़ती एसोसिएशन ने कल काले झंडों के साथ ट्रैक्टरों पर सड़कों पर प्रदर्शन किया। अन्नदाता किसान यूनियन के मुताबिक सरकार ने निजी कंपनियों को अनाज मंडी से बाहर किसानों की फसल खरीदने की छूट देकर मंडीकरण ढांचा टूटने का संकट खड़ा कर दिया है। इससे लाखों लोगों की रोजी-रोटी का संकट और फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने की गारंटी समाप्त होगी। आलू, प्याज, दलहल और तिलहन के भंडारण सीमा की छूट से जरूरी वस्तुओं की कालाबाजारी बढ़ेगी, जबकि कांट्रैक्ट फार्मिंग से किसान अपनी ही जमीन पर कंपनियों का मजदूर बन जाएगा। लेकिन पूरे देश की कृषि उपज उगाने वाले देश के 85 फीसदी किसानों की किस्‍मत का फैसला करने वाले इन अध्‍यादेशों पर हरियाणा के बजाय किसी भी राज्‍य के किसान संगठन ने कोई ठोस आवाज नहीं उठायी है।
कांग्रेस की हरियाणा इकाई की अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने सोमवार को दावा किया कि कृषि क्षेत्र से संबंधित तीन हालिया अध्यादेश छोटे एवं वंचित किसानों को बाजार की ताकतों की दया पर छोड़ देंगे और उनका शोषण होगा। सरकार पर किसानों के हितों को संरक्षित करने की अपनी जिम्मेदारी से भागने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस की वरिष्ठ नेता ने कहा कि उन्हे डर है कि अगला कदम न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली को खत्म करने का हो सकता है।

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