: चमचई के भार से दबे मातहतों के समूह से दबी आवाज उभरी, “जी सर” : जहां तुम्हारे जैसे-जैसे महान “बुरे कैट (ब्यूरोक्रेट)” साहब लोग भरे हों वहां मैं खुद ही नहीं जानता कितने दिन टिकूंगा” :
प्रेम कुमार
बेेगू सराय : देवरिया में अपनी पहली पोस्टिंग की ज्वाइनिंग करने गये एक युवा की व्यथा, जिसने तीन बरस में ही सरकारी नौकरी को लात मार दिया :
पुराने जमाने की बात है। सन- 2001, जब अक्टूबर में मैं देवरिया जिले में अपनी सरकारी अधिकारियत की पहली तैनाती पर पंहुचा था।
चूंकि तहसील स्तर का अधिकारी था सो जिले के बड़े साहब के पास ज्वाइनिंग देना था। नियत समय पर बड़े साहब के चैंबर में अपनी फाइल लिए आज्ञा प्राप्त कर बैठा। साहब के चैंबर में तहसील-ब्लाक स्तर के अधिकारियों की मीटिंग भी चल रही थी, साहब ने मुझे भी शामिल कर लिया।
मीटिंग के दौरान साहब के कार्यालय की एक कनिष्ठ लिपिक ( बीस-बाईस की लड़की) जरुरी कागजात लिए आई, उसके जाने के बाद साहब ने लीचड़ई-मिश्रित-गौरवान्वित निगाह सामने मारी और केंचूए की तरह लिजलिजी भय-मिश्रित मुस्कान ओढ़े मातहतों में किसी को संबोधित किया, “का हो शुक्ला जी ठीक थी”
चमचई के भार से दबे मातहतों के समूह से दबी आवाज उभरी, “जी सर”
साहब ने अगला वाक्य उछाला “फिर से देखोगे का”
केंचुए सरीखे मातहतों की भीड़ में लिजलिजी हंसी दौड़ गई।
अचानक साहब ने मेरी ओर देखते हुए व्यंग्योक्ति मारी,”क्या नए साहब आपको मजा नहीं आया”
मैंने कहा सर वो भी बस अपनी नौकरी बजा रही है अब इसमें “मजा” ढूंढने वाला मैं कौन होता हूं।
केंचुए सरीखे मातहतों की भीड़ को जैसे काठ मार गया, किसी ने मेरी तरफदारी करते हुए धीमे से कहा,”साहब धीरे-धीरे सीख जाएंगे”
बड़े साहब की गुरु गंभीर आवाज गूंजी, “ऐसे तो नौकरी नहीं कर पाएंगे आप”
तभी मेरे मन के किसी कोने में खचड़ई भरी आवाज गूंजी, “चू…. जहां तुम्हारे जैसे-जैसे महान “बुरे कैट (ब्यूरोक्रेट)” साहब लोग भरे हों वहां मैं खुद ही नहीं जानता कितने दिन टिकूंगा”.
सौभाग्य देखिए मेरी खचड़ई ने 2004 में मुझसे त्यागपत्र दिलवा ही दिया।
“महिलाओं को लेकर ऐसा ही पावन नजरिया है हमारे महान समाज का,सो स्त्री में अपराध न ढूंढिए उसे बस ‘लंगटिया देना(नंगा कर देना)’ हमारा-आपका जन्मसिद्ध अधिकार है। जब भी मौका मिले हाथ बढ़ा कर अपना अधिकार हासिल कीजिए, पुरखों द्वारा इतनी मेहनत से यहां तक लाई गई इस पुरातन संस्कृति को आगे ले जाने का महती भार हमारे-आपके कांधे पर ही है। मत चूकना चौहान “