यूपी में क्‍या वाकई बज रहा है टी-सीरीज़ का कैसेट !

सैड सांग

: आइला रे, जे त कम्‍माल हो गया रे टोपीवाले बलमू : चाहे वो मुख्यमंत्री हों या डीजीपी, कलेक्टर से लेकर इंजीनियर, हर मलाईदार पद पर तैनात हो रहे टी-सीरीज़ : बाकी जाति वाले खासकर ब्राह्मण योगी सरकार को दे रहे पानी पी-पी कर गाली :

मेरी बिटिया संवाददाता

लखनऊ : जब से उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार ने योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में काम संभाला है तब से एक चर्चा सरेआम है की उत्तर प्रदेश में ठाकुरवाद अपने चरम पर है। चाहें वो सरकार संभालते ही 10 जिलों में ठाकुर डीएम-एसपी तैनात करने की बात रही हो या फिर सुल्खान सिंह को डीजीपी बनाने की बात, ठाकुरवाद के आरोप से ये सरकार बच नही पा रही है। कुछ एक ब्राह्मण अधिकारीयों को उम्मीद थी की सुल्खान सिंह के जाने के बाद उनका नंबर आयेगा पर यहां तो दांव उल्टा पड़ गया। एक ठाकुर गया तो उधर दूसरा ठाकुर दूध-जलेबी खाकर डीजीपी बनने को तैय्यार खड़ा था वो भी पूरे तीन साल के लिये। जी हां ! प्रदेश के नये डीजीपी ओम प्रकाश सिंह पूरे तीन साल तक प्रदेश की डीजीपी रह सकते हैं क्यूंकि उनका रिटायर्मेंट तीन साल बाद यानि  2020 में है।

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ऐसे में एक ब्राह्मण पुलिस अधिकारी का सपना सपना ही रह गया जो डीजीपी बनना चाह रहे थे। अब यह दीगर बात यह है कि इन पंडीजी को सुलखान सिंह के जमाने से ही खूब पता चल गया था कि उनके दिन अब लद चुके हैं। इसलिए उन्‍होंने अपना सारा वक्‍त फेसबुक पर अर्द्धनग्‍न महिलाओं की डीपी लगाये लोगों से दिल लगाने में खर्च कर दिया। लेकिन उनके इसी चोटहिल दिल पर तब जोरदार हमला पड़ गया, जब प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम ने उनकी ऐसी दिल-जमाई की खबरों को उछालना शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि इन पंडीजी ने उन सभी लोगों को अपने फेसबुक से विदा कर दिया जो उस अर्द्धनग्‍न डीपी को लेकर जले-भुने बैठे थे।

पहली बार एक संकल्‍प लिया पुलिस ने, वह भी बेहद फूहड़

बहरहाल, यूपी में ताजा सुर्खियों के चक्‍कर में फंसे ठाकुरवाद से इतर लोग नये डीजीपी के चयन पर भी सवाल उठा रहे हैं। चर्चा खूब चल रही है कि ओपी सिंह वो अफसर हैं जो 1995 के एस्टेट गेस्ट हाउस कांड के लिये मशहूर हैं। जिस समय यह कांड हुआ था, तब ये लखनऊ के एसएसपी हुआ करते थे। और ऐसा बताया जाता है कि जब अंदर मारपीट और लेत्‍तेरीकी-धेत्‍तेरीकी चल रही थी, तब ये बाहर खड़े हुए सिग्रेट पी रहे थे। पर गेस्ट हाउस के अंदर नही गये।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ऐसे विवादित पुलिस अफसर को सिर्फ जाति के आधार पर डीजीपी बनाना उचित है? ये सवाल हम आप पर छोड़ते हैं।

( एक दिलजले द्वारा लिखे-भेजे गये पत्र के अनुसार)

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