अब कौन लिखेगा बिटविन द लाइंस, कुलदीप नैयर का अवसान

सैड सांग
: पुण्‍यप्रसून बाजपेई फेम वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल के खिलाफ उनके रवैये की तारीफ की : 95 बरस की उम्र थी नैयर की, दिल्‍ली में आज ही होगा अंतिम संस्कार : 14 भाषाओं में छपते थे नैयर के लेख :

दोलत्‍ती संवाददाता
नई दिल्ली : वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर का निधन दिल्ली के अस्पताल में बुधवार देर रात को हो गया। आखिरी वक्त वह लेखन और पत्रकारिता से जुड़े रहे। भारतीय पत्रकारिता जगत के अहम चेहरा रहे कुलदीप नैयर का 95 साल की उम्र में आज निधन हो गया। वे बीते तीन दिनों से दिल्ली के एक अस्पताल के आईसीयू में भर्ती थे और काफी समय में से उनकी सेहत बहुत खराब थी। बुधवार की रात करीब साढ़े बारह बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। आज दोपहर एक बजे लोधी रोड पर स्थित घाट में अंतिम संस्कार होगा।
पुण्‍यप्रसून बाजपेई फेम वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वरिष्ठ पत्रकार तथा राजनयिक कुलदीप नैयर के देहावसान पर संवेदना व्यक्त करते हुए कहा है कि इमरजेंसी के खिलाफ उनका कड़ा रुख, जनसेवा तथा बेहतर भारत के लिए उनकी प्रतिबद्धता को हमेशा याद रखा जाएगा। कुलदीप नैयर के निधन पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीलाल ने दुख जताया और ट्वीट किया- वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर के निधन की बुरी खबर मिली. वह प्रेस की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए लड़ाई के लिए याद किये जाएंगे. उनके निधन से राष्ट्र को बड़ी हानि हुई है.
आपातकाल के दौरान नैयर को सरकार के खिलाफ लेख लिखने के कारण जेल भी जाना पड़ा था। नैयर 1996 में संयुक्त राष्ट्र के लिए भारत के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य थे। 1990 में उन्हें ग्रेट ब्रिटेन में उच्चायुक्त नियुक्त किया गया था। पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के कारण 1997 में उन्हें राज्यसभा के लिए भी मनोनीत किया गया था। नैयर ने देश-विदेश के मशहूर अखबारों के लिए संपादकीय और लेख लिखे।
नैयर ने कई किताबें भी लिखीं और उनकी आत्मकथा भी काफी चर्चित रही थी। उनकी आत्मकथा ‘बियांड द लाइंस’ अंग्रेजी में छपी थी। बाद में उसका हिंदी में अनुवाद, एक जिंदगी काफी नहीं नाम से प्रकाशित हुआ। उन्होंने इसके अतिरिक्त कई किताबें ‘बिटवीन द लाइं,’, ‘डिस्टेंट नेवर : ए टेल ऑफ द सब कान्टिनेंट’, ‘इंडिया आफ्टर नेहरू’, ‘वाल एट वाघा, इण्डिया पाकिस्तान रिलेशनशिप’, ‘इण्डिया हाउस’ जैसी कई किताबें भी लिखीं।
टिप्पणियां बता दें कि कुलदीप नैयर कई किताबें लिख चुके हैं. कुलदीप भारत सरकार के प्रेस सूचना अधिकारी के पद पर कई वर्षों तक कार्य करने के बाद वे यू.एन.आई, पी.आई.बी., ‘द स्टैट्समैन’, ‘इण्डियन एक्सप्रेस’ के साथ लम्बे समय तक जुड़े रहे थे. वे पच्चीस वर्षों तक ‘द टाइम्स’ लन्दन के संवाददाता भी रहे हैं.
गौरतलब है कि पत्रकारिता की दुनिया में कुलदीप नैयर पत्रकारिता अवार्ड भी दिया जाता है. 23 नवम्बर, 2015 को वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक कुलदीप नैयर को पत्रकारिता में आजीवन उपलब्धि के लिए रामनाथ गोयनका स्मृ़ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें यह पुरस्कार दिल्ली में आयोजित पुरस्कार वितरण समारोह में केद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने प्रदान किया था. कुलदीप नैयर अगस्त, 1997 में राज्यसभा के मनोनीत सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए.
शुरुआती दिनों में कुलदीप नैय्यर एक उर्दू प्रेस रिपोर्टर थे. वह दिल्ली के समाचार पत्र द स्टेट्समैन के संपादक थे और उन्हें भारतीय आपातकाल (1 975-77) के अंत में गिरफ्तार किया गया था. वह एक मानवीय अधिकार कार्यकर्ता और शांति कार्यकर्ता भी रहे हैं. वह 1996 में संयुक्त राष्ट्र के लिए भारत के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य थे. 1990 में उन्हें ग्रेट ब्रिटेन में उच्चायुक्त नियुक्त किया गया था, अगस्त 1997 में राज्यसभा में नामांकित किया गया था. वह डेक्कन हेराल्ड (बेंगलुरु), द डेली स्टार, द संडे गार्जियन, द न्यूज, द स्टेट्समैन, द एक्सप्रेस ट्रिब्यून पाकिस्तान, डॉन पाकिस्तान, सहित 80 से अधिक समाचार पत्रों के लिए 14 भाषाओं में कॉलम और ऐप-एड लिखते रहे.
आपातकाल में नैयर- उन्हें 1975 से 77 में लगी इमरजेंसी को लेकर भी जाना जाता है. इस दौरान प्रशासन की ज्यादतियों के खिलाफ उन्होंने विरोध प्रदर्शन कर रहे समूह का नेतृत्व किया. आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (मीसा) के तहत वे जेल भी गए. उन दिनों, आपातकाल के समय वे उर्दू प्रेस रिपोर्टर थे.
पत्रकारिता क्षेत्र में काम करने के साथ वे 1996 में संयुक्त राष्ट्र के लिए भारत के प्रतउन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं, जिसमें बिटवीन द लाइन्स, डिस्टेंट नेवर: ए टेल ऑफ द सब कॉन्टीनेंट, वॉल एट वाघा, इंडिया पाकिस्तान रिलेशनशिप आदि शामिल है. साथ ही 80 से अधिक समाचार पत्रों के लिए 14 भाषाओं में कॉलम और ओप-एड लिखते रहे.
उन्हें नॉर्थवेस्ट यूनिवर्सिटी की ओर से ‘एल्यूमिनी मेरिट अवार्ड’ (1999), रामनाथ गोयनका लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, सिविक पत्रकारिता के लिए प्रकाश कार्डले मेमोरियल अवार्ड (2014), सिविक पत्रकारिता के लिए प्रकाश कार्डले मेमोरियल अवार्ड (2013) से भी सम्मानित किया गया था.
उन्हें अनुभवी भारतीय पत्रकार, सिंडिकेटेड स्तंभकार, मानव अधिकार कार्यकर्ता और लेखक, राजनीतिक कमेंटेटर के रूप में उनके लंबे कैरियर में उल्लेखनीय योगदान के लिए याद किया जाएगा.

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