: कैसे सहमत हुआ जा सकता है कि “विज्ञान सत्य के निकट है लेकिन जीवन से दूर है।” : कोई भी खोज हो, दोनों समुदाय के पण्डित कहने लगते हैं कि यह तो हमारे यहां पहले ही कहा गया है :
सूर्य प्रसाद
गोंडा : कल 21 जून को स्वतंत्र भारत अखबार के संपादकीय पृष्ठ पर ” वेद जीवन अनुभूति हैं ” शीर्षक से उत्तर प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष श्री ह्रदय नारायण दीक्षित जी का लेख प्रकाशित हुआ है । वह विद्वान लेखक हैं, भारतीय दर्शन के अच्छे ज्ञाता हैं । वह आदरणीय हैं । उन्होंने अपने इस लेख में वेदों के ज्ञान को विज्ञान से श्रेष्ठ बताया है । वह लिखते हैं कि ” सत्य को जानना विज्ञान है। विज्ञान ने भौतिक विश्व के अनेक रहस्यों का अनावरण किया है।
लेकिन जगत के सभी गोचर प्रपंचों के कार्यकारण शृंखला की खोज अभी शेष है। शिखर व्रह्माण्ड विज्ञानी स्टीफेंस हॉकिंग ने ….. सभी कार्यों के कारण जानने का कार्य भविष्य की वैज्ञानिक पीढ़ी पर छोड़ा है । ” वह आगे लिखते हैं कि -” विज्ञान सत्य के निकट है लेकिन जीवन से दूर है । वेद का सम्बंध सत्य में आनन्दित होने से है । आगे वे अथर्वेद को उद्धरित करते हुए कहते हैं कि अथर्वेद के रचनाकारों में सर्वत्र मधु दृष्टि है। घर मे रहना मधु है, घर से बाहर जाना मधु है । सोम के स्वाद में मधु है आदि -आदि।
वह अंत मे निष्कर्ष देते हैं कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण को वैदिक मधुमयता से आपूर्ति किये जाने की आवश्यकता है ।” उधर मुण्डक उपनिषद के ऋषि अंगिरा ने वेदों के ज्ञान को अपरा (निम्नतर ) विद्या कहा है । कथा यह है कि गृहस्थ शौनक (प्रख्यात ऋषि) एक बार अंगिरा ऋषि के पास आये और पूछा–” भगवन वह क्या है जिसे जानने पर सब कुछ ज्ञात हो जाता है?” ऋषि अंगिरा ने उत्तर दिया–” व्रह्म को जानने वाले बताते हैं कि दो तरह की विद्याएं हैं–एक परा (उच्चतर) और दूसरी अपरा ( निम्नतर)। इनमें ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, सामवेद, निरुक्त, व्याकरण,कल्प (कर्मकाण्ड विधान), छंद शास्त्र और ज्योतिष आते हैं । ऋषि अंगिरा ने व्रह्म ज्ञान को परा ( उच्चतर) विद्या माना है ।
मैं यहाँ स्थानाभाव के कारण किस वेद में क्या है, इस पर चर्चा नहीं कर सकता । लेकिन विद्वान लेखक दीक्षित जी के इस विचार से सहमत नहीं हुआ जा सकता कि “विज्ञान सत्य के निकट है लेकिन जीवन से दूर है।”
यह विज्ञान ही है जिसने जीवन को मधुमय(आनन्दपूर्ण) बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण शोध कर नए आयाम दिए हैं। बहुत कुछ दिया है विज्ञान ने । एक बात और वह यह कि वैज्ञानिक जो नहीं जानता, वह साफ साफ ईमानदारी से कह देता है। जैसा व्रह्माण्ड विज्ञानी स्टीफेंस हॉकिंग ने कहा कि कार्यों के कारण जानने का कार्य भविष्य की पीढ़ी पर छोड़ा जाय।
हमारे कुछ विद्वान यही साबित करने में लगे रहते हैं कि वेदों में सब कुछ है या कुरान में सब कुछ है। कोई भी खोज हो, दोनों समुदाय के पण्डित कहने लगते हैं कि यह तो हमारे यहां पहले ही कहा गया है। वास्तव में वेदों में मधु की कामना की गई है, देवता से मधु की प्रार्थना की गई है । इसलिए हमें शुद्ध वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाना होगा । इसमें किसी प्रकार की अतिरिक्त आपूर्ति की आवश्यकता नहीं है ।
यही आनन्द का वास्तविक मार्ग है ।
( विभिन्न जन-आंदोलनों और समाचार पत्रों में अपना पूरा जीवन खपा चुके हैं सूर्य प्रसाद। प्रखर शिक्षक भी रह चुके हैं। संप्रति गोंडा)