सरोज तिवारी की तो नियति है हाथ, पांव, थोबड़ा तुड़वाना

बिटिया खबर

: लखनऊ विश्‍वविद्यालय छात्रसंघ के अभूतपूर्व अध्‍यक्ष रहे हैं सरोज : चुनाव में पुलिस की बेशुमार लाठियां और समर्थकों का जी-जान लगाा सरोज को बेमिसाल बना गया : मैं टाइम्‍स ऑफ इंडिया समूह के सांध्‍य समाचार सेवा में संविदा रिपोर्टर था : सरोज तिवारी के नाम पर पूरे एलयू के छात्र साष्‍टांग :

कुमार सौवीर

लखनऊ : खासकर लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ की राजनीति को लेकर इस्‍तेमाल किया गया अ-राजनैतिक या गैर-राजनीतिक शब्द किसी भी पढ़े-लिखे और तनिक भी समझदार व्यक्ति को बिदका सकता है, लेकिन अपने इसी सद्यस्तनपायी शिगूफे जैसे नारे ने सरोज तिवारी को न केवल एक जबरदस्त पहचान दे दी, बल्कि छात्रसंघ अध्यक्ष पद पर उसे विजयश्री भी दिला दी थी। उस चुनाव में सरोज तिवारी की जीत बाकायदा ऐतिहासिक थी। सरोज तिवारी के नाम पर पूरे लखनऊ विश्‍वविद्यालय के सारे छात्र एक-सुर में साष्‍टांग हो गये थे। लगा, सारे प्रत्याशियों के यहां पहुंच कर उनके सारे वोट बटोर कर सुनामी ने सरोज तिवारी के बैलेट बॉक्स में ठूंस दिया हो।
उन दौरान मैं टाइम्‍स ऑफ इंडिया समूह के अखबार सांध्‍य समाचार सेवा में रिपोर्टर के तौर पर मजदूर हुआ था। संपादक घनश्‍याम पंकज ने मुझे लखनऊ विश्‍वविद्यालय और उसके सम्‍बद्ध कालेजों की गतिविधियों की रिपोर्टिंग करने का जिम्‍मा दे दिया था। मेरे लिए यह गर्व की बात है कि यह पहला मौका था, जब किसी अखबार ने उच्‍च शिक्षा और छात्र गतिविधियों की नब्‍ज पकड़ने का अभियान छेड़ा था। सरोज और उसके समर्थक ही नहीं, बल्कि उसके गॉड-फॉदर्स का व्‍यवहार ही ऐसा चुम्‍बकीय हुआ करता था कि मैं बसबस सरोज तिवारी से जुड़ता ही गया। इतना ही नहीं, सरोज तिवारी के लिए मैंने एक मेधावी-चिंतक छात्र अरुण तिवारी के साथ सरोज के चुनाव प्रचास का जिम्‍मा संभाला। कहने की जरूरत नहीं है कि सरोज तिवारी के इस चुनाव अभियान का प्रतिदिन श्रीगणेश एक दिग्‍गज छात्र विनय तिवारी द्वारा ही किया जाता है, और देर रात तक ही इस अभियान में विनय तिवारी चुनावी रणनीति में जुटा रहता था।
बहरहाल, सरोज तिवारी के मेकअप के लिए तैयार की गयी प्रचार सामग्रियों में से तो एक अद्भुत पोस्‍टर हमने तैयार किया था, जो पहले ही दिन इतना सुपर-हिट निकला कि सरोज तिवारी का टैम्‍पो ही हाई हो गया। पोस्‍टर का शीर्षक दिया गया था:- जुल्‍मों की कहानी, अखबारों की जुबानी। हम इन दोनों ने सरोज तिवारी के लिए दिन-रात एक कर दिया था। यह बात करीब 38 बरस पुरानी है।
सरोज कोई शातिर राजनीतिक नहीं, बल्कि बेहद सरल, जमीनी और आत्मीयता से लबरेज तब भी था, और आज भी उसमें इन सारे गुणों का समंदर हिलोरें मारा करता है। और यह भी कि सरोज तिवारी की चांडाल-चौकड़ी में ऐसे ही सरल और निष्पाप अघोरी-अवधूत लोगों की भरमार अब भी जुटी हुई है, जिनका बेशर्त और निर्विवाद नेता साक्षात भोलेनाथ सरोज तिवारी बम-शंकर है।
अभी हाल ही सरोज तिवारी ने छात्रसंघ के पूर्व छात्रसंघों के पदाधिकारियों की एक बैठक बुलायी थी। इसमें बड़े-बड़े दिग्‍गज लोग वहां जुटे। मुझे देर से मिली खबर, तो मैंने बाद में सरोज से भेंट कर ऐतराज किया। उसने माफी मांगी, तो मैंने साफ कह दिया कि जब तक तुम लखनऊ विश्‍वविद्यालय में पुलिस हुई पिटाई का सिलसिलेदार किस्‍सा नहीं सुनाओगे, तब तक मैं तुम्‍हें माफ नहीं करूंगा।

दरअसल सरोज तिवारी का हाथ, पैर, पीठ, ही नहीं, बल्कि चेहरा भी हमेशा चोटिल हुआ करता है। इसमें एलयू में हुई पिटाई के साथ ही हाल ही सरोज की आंख में हुआ एक बड़ा ऑपरेशन भी शामिल है। जब भी किसी आत्‍मीय को इस तरह के कष्‍ट में देखता हूं, तो रुलाई तो आ ही जाती है। 
बहरहाल, तो, तय हो गया है कि जल्‍द ही मैं सरोज तिवारी से वीडियो पर एक इंटरव्‍यू लूंगा।

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