सुप्रीम कोर्ट: जज नहीं बन पायेंगे यूपी के दो वकील

बिटिया खबर
: यूपी हाईकोर्ट ने इन वकीलों को जज बनाने की सिफारिश की थी, सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने पत्‍ता काट दिया : जस्टिस सगीर अहमद के पुत्र हैं मोहम्‍मद मंसूर : सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को वापस की दो वकीलों को जज बनाने की सिफारिश :

कुमार सौवीर
लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को दो वकीलों को जज बनाने की सिफारिश वापस भेज दी है। वकील मोहम्मद मंसूर और बशारत अली खान के नाम 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने जज बनाने के लिये सरकार को भेजे थे। सरकार ने ये दोनों नाम सुप्रीम कोर्ट को ये कहते हुए वापस कर दिये थे की इन दोनों के खिलाफ शिकायतें हैं। सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतों को फर्जी बताते हुए पुन: इन दोनों नामों की सिफारिश साल 2016 में ही कर दी। जब सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम किसी नाम की सिफारिश दुबारा कर देता है तब सरकार के ऊपर उस नाम को जज बनाना बाध्यकारी हो जाता है। परंतू इस मामले में एसा नही हुआ।
जब सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों नामों कि सिफारिश दुबारा कर दी तब सरकार ने इन दोनों वकीलों की फाइल ही डेढ़ साल तक दबा ली और फिर चुपके से मई 2018 में फाइल फिर से सुप्रीम कोर्ट वापस भेज दी। एसी चर्चा आम थी की सुप्रीम कोर्ट इस गुस्ताखी को आड़े हाथों लेगा और सरकार पर दबाव बनाकर दोनों के नामों पर मोहर लगवा देगा। परंतु 1 अगस्त 2018 को हुई कोलेजियम की बैठक (जिसकी रिपोर्ट इस खबर के साथ लगी हुई है) में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की बात मानते हुए ये दोनों नाम इलाहाबाद हाईकोर्ट को वापस कर दिये।
सूत्रों की मानें तो सरकार के अंदर एक लॉबी इन दोनों वकीलों खासकर मोहम्मद मंसूर को किसी कीमत पर जज नही बनने देना चाहती थी। मोहम्मद मंसूर सुप्रीम कोर्ट जज रह चुके स्वर्गीय जस्टिस सगीर अहमद के बेटे हैं। ये वही सगीर अहमद हैं जिनको कौंग्रेस की यूपीए सरकार के द्वारा 2007 में कश्मीर के मुद्दे पर बनी पीस कमिटी का अध्यक्ष बनाया गया था। उस कमिटी की रिपोर्ट में जस्टिस सगीर अहमद ने कश्मीर में शांति के लिये कश्मीर को स्वायत्ता देने की वकालत करी थी। मोहम्मद मंसूर वर्ष 1970 की पैदाइश हैं और अगर इनको 2016 में हाईकोर्ट जज बना दिया जाता तो इसमें दो राय नही की वे सुप्रीम कोर्ट जज बनने की रेस में भी रहते।

 

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