हैप्पी बाप-डे: मचा कोहराम, पूरा देश स्तब्ध

बिटिया खबर


: अचानक ताबड़तोड़ तीन इंजेक्शन और एक टीका उनके हाथों पर और उनके पीछे दोनों ड्राइंग-रूम में लगा दिया गया : इंजेक्शन लगाने वाले को चीनी एजेंट करार दे दिया गया :
कुमार सौवीर
लखनऊ : इस दिव्य अवसर पर एक सवाल बूझिये।
“बप्पा के दो आगे बप्पा,
बप्पा के दो पीछे बप्पा।
आगे बप्पा, पीछे बप्पा।
बोलो कितने बप्पा?”
जवाब एकसाथ आएगा, कि तीन-तीन पिता।
अगल भी बाप, और बगल भी बाप। बीच में भी बाप। अंदाज़ भी एक-समान। परस्पर पिता-तुल्य।
समीकरण कुछ यूं बना कि कल दोपहर च्यवनप्राश यानी मेरे पिता जी को मीजल्स का टीका लगना था। कहने की जरूरत नहीं, कि च्यवनप्राश जी आजकल माशाअल्लाह जांबाज़, फुर्तीले और बांका-जवान ही नहीं, बल्कि बाकायदा रण-बाँकुरे भी बनते जा रहे हैं। आखिर साढ़े ग्यारह महीने की उम्र तक लपक चुके हैं। लेकिन नौ महीने पर लगने वाले टीका की याद ही उनको नहीं आयी। उनका डाइपर जल-प्लावित हो चुका था। आनन-फानन हम सब लोग भागे सिविल अस्पताल। पूरा स्टाफ उनकी अगवानी में हाथ जोड़े खड़ा था। क्या डॉक्टर और क्या नर्स, बस दिक्कत सिर्फ कक्का हरदोई उर्फ इंदुबाला वर्मा नामक मैट्रन की कमी थी। वे रिटायर हो चुकी हैं न, इसलिए। सुनील यादव जी मारे खुशी के रास्ता ही भूल गए थे। जाना था नम्बर एक, चले गए दो नम्बर। सरकारी नौकर जब नेतागिरी करना शुरू कर देता है, तो यही हालत होती है। दरअसल, दस नम्बरी लोगों के लिए नम्बर वैसे ही बेवजह टाइमपास ही होता है। सिर्फ मौजमस्ती।
बहरहाल, इंजेक्शन के पहले तक हमारे च्यवनप्राश जी सन-2014 के दौरान देश की जनता की तरह भोलेभाले हंस-खेल रहे थे। पाकिस्तान में घुस कर हुए सर्जिकल स्ट्राइक की तरह। हंसी-खुशी का माहौल था। सभी मौजूद लोग उनको हाथोंहाथ लिए थे।
अचानक ताबड़तोड़ तीन इंजेक्शन और एक टीका उनके हाथों पर और उनके पीछे दोनों ड्राइंग-रूम में लगा दिया गया। मचा कोहराम। पूरा देश स्तब्ध। विपक्ष हमलावर हुआ, और सरकार यानी सत्ता पक्ष के हाथों से तोते उड़ गए। सभी लोग सर्वदलीय बैठक में मामला सुलझाने में लग गए। इंजेक्शन लगाने वाले को चीनी एजेंट करार दे दिया गया।
काफी मशक्कत के बाद च्यवनप्राश जी ढोल-ताशे के साथ घर लौटे, जैसे रामनवमी में राम जी अयोध्या बिराजे हों। उनकी पादुकाएँ उतार कर सिंहासन पर उन्हें बिठाया गया।
पीड़ा काफी थी ही, उसे भूलने में लिये उन्होंने कृष्ण के बालरूप ले लिया, और एक उंगली अपने मुंह में मोहक रूप बना डाला। नतीजा हम लोग भी मोदी-सरकार के अमित शाह और राजनाथ सिंह जैसे मंत्रियों की तरह खिसियाना मुंह बनाने लगे। च्यवनप्राश जी की ही शैली में ही मुंह में अपनी-अपनी उंगली घुसेड़ लिया। नौटंकी के तीन तिलंगा बन गए। गलवां घाटी का मामला ही भूल गए।
खैर, अब बात हो जाये फादर्स डे की। तो सच बात तो यह है कि हम तीनों ही किसी न किसी के बाप हैं। मतलब च्यवनप्राश जी के पिता हैं प्रवीण जी, और प्रवीण जी मुझे पिता बनते-बनाते हैं, जबकि मेरे असली पिताश्री तो स्वयं नाम-सिद्ध च्यवनप्राश जी महाराज उर्फ नंगू-पंगू सरस्वती जी महाराज हैं। यानी तीनों ही परस्पर पिता भी हैं, और परस्पर पुत्र भी।
समीकरण काफी कठिन है, लेकिन समझदारों को काफी समय बाद इसका जवाब मिल पायेगा। फिर भी अगर जवाब न मिले तो चूल्हा-भाड़ का इस्तेमाल करते हुए अपने जीवन को पूर्णता प्रदान करने की कृपा करते रहिएगा।
गुड नाइट।
हैप्पी बाप डे।

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