सावन की घटाएं: काशी के कपड़े फट सकते हैं, अन्तर्मन नहीं

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: सावन का मेघ बरसने लगा मोक्ष-नगर काशी में : मुतनी के, बुजरौ के, चश्ममुतनी। दिखी कोई अश्‍लीलता ? : सच कहूं तो विलक्षण है बनारस, गालियां अदभुत : अजब जगह, गजब लोग। नायाब लहजा, बेमिसाल अंदाज :

कुमार सौवीर

वाराणसी : चाहे वह सन-77 और सन-89 का दंगा रहा हो, मराठी समुदाय का गणेश-विसर्जन बवाल हो, या फिर किसी दीगर अनजाने झोंके की तरह आये नये सांस्कृतिक हड़कम्प, सतह पर लगता है कि मानो भूचाल ही आ जाएगा। लेकिन हकीकत यह होती है कि ऐसा कुछ भी नहीं होता। वजह यह कि सतह के भीतर का निर्णायक प्रवाह-करंट ऐसी मूर्खताओं से निस्पृह रहता है। यही तो है काशी की असलियत और उसका सनातन जागृत भाव जिसने आज तक को काशी को काशी ही बनाये रखा है।

आज फिर से लौटा हूं। पांच दिन खूब सोचा, घाटों को निहारा, गंगा के समग्र विलक्षणता में खोया हूं, बकवादी बनारसियों से जूझा हूं, निपटा हूं। एक पान पर पूरा दिन बिता चुका हूं और जमकर मस्ती की है। हमेशा की ही तरह मेरी राय उसी तरह रही है कि बनारस न कभी बदला है और न कभी बदलेगा। बावजूद इसके कि कई बार काशी के आवरण कई बार विदीर्ण हो चुके हैं, चीथड़े उड़ चुके हैं काशी के कपड़ों के। थोपे जाने वाले मेकअप कई बार बदरंग हो चुके है, कई बार कालिख पोती जा चुकी है, कई बार लाली-लिपिस्टिक गहरे की जा चुकी है। लेकिन इनका कोई भी फर्क काशी के अन्तर्मन पर कभी नहीं पड़ा।

सच कहूं, तो विलक्षण है काशी।

अगर आप बनारसियों को पैंट-शर्ट वालों की भीड़ में खोज रहे हैं, जो माथे पर शिवलिंग का चिन्ह लगाये घूम रहा है, तो क्षमा कीजिएगा कि आप भूल कर रहे हैं। बनारसियों के शैली में आप किसी कलंक जैसे निशान को गालियो की बौछार देख कर उनमें असली बनारसी की छवि देख रहे हैं, तो यह आपका भ्रम है। अगर आप इधर-उधर पान की पीक को पिच्च–पिच्च थूकते लोगों को बनारसी समझ रहे हैं तो फिर आप दिग्भ्रम का शिकार हैं।

जैसा मैंने समझा है काशी को। काशी को समझने के लिए पहले तो आपको काशी के असल चिन्हो को पहचान पड़ेगा। बनारस का आदमी पान खाकर जगह-जगह थूकने की बेहूदगी का सख्त विरोध करता है। वह पान भले ही दो-तीन बार खाये, लेकिन मुंह में घंटों घोलता है। चुभलाता भी नहीं है। बस मुंह में रखेगा, बहुत हुआ तो दस-पांच मिनट बाद अपनी जीभ से उसे सहला देगा। बहुत कम बोलेगा, लेकिन अगर बोलने की जरूरत पड़ी, तो अपना मुंह आसमान की ओर उठा कर आपके सवाल का जवाब देगा। आपकी समझ में न आये, तो कोई बात नहीं। बाकी बात, उसके पास खड़ा दूसरा बनारसी भी उसी तरह मुंह उठा कर जवाब दे देगा। लखनवी लोगों के कुर्तों पर पान की पीक की छींटें खूब दर्ज होती हैं, लेकिन बनारसी के कपड़ों में हर्गिज नहीं।

तमीज सीखना हो तो बनारसियों से सीखियेगा। बनारसी का शगल पान नहीं होता है, उसका जीवन और आध्यात्मब होता है पान। चाहे कोई बड़ा अमीरजादा हो या फिर रिश्क्शावाला। दोनों ही पान खायेंगे। और अपना काम करते रहेंगे, मन्थन करते रहेंगे। पान खाना उनके लिए पद्मासन लगाने जैसी प्राथमिक और अनिवार्य सीढ़ी होती है। मन सोचता है, अन्तर्मन को टटोलता, गुनता, और खुद में खोने की प्रक्रिया में लीन हो जाता है। घोड़े, बकरी और गाय की तरह चबर-चबर पान चबाना बनारसी नहीं पसंद करता है। जहां-तहां थूक देना किसी भी बनारसी के अंतस और उसके संस्कार कभी भी नहीं रहा।

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बनारस

खांटी बनारसी आपको घाटों पर मटरगश्ती करता नहीं दिखेगा। वह सुबह-सुबह अपना लोटा में बेलपत्र आदि लेकर शिव-स्तु‍ति और गंगा-स्तुति करता हुआ तेजी कदमों से नदी की ओर बढ़ता दिखेगा। न किसी से कोई बातचीत और न कोई दिखावा-पाखण्ड। बनारसी के पास आपके किसी की बकवाद-बकवास के लिए तनिक भी समय नहीं होता है। उसका सारा ध्यान गंगा मइया में स्नान के बाद जल्दी से जल्दी महादेव भोलेनाथ का दर्शन करने में ही लगा रहता है।

मेरा दावा है कि कोई भी बनारसी आपके सामने गाली नहीं देगा। वह अपने मित्रों के साथ तो खूब गरियायेगा, लेकिन किसी अनजान के साथ या उसके सामने हर्गिज नहीं। और हां, अगर आप विख्यात साहित्यगकार और आलोचक नामवर सिंह के भाई काशीनाथ सिंह के उपन्यास काशी का अस्सी जैसे साहित्य में दर्ज की गयी मां-बहन की गालियों को बनारसी गाली समझ रहे हैं तो फिर भोलेनाथ भी आपको काशी नहीं समझा सकते।

दोस्तों, जिन गालियों को काशीनाथ सिंह ने अपने को बेचने के लिए अपनी उपन्यास में घुसेड़ा है, वह बनारसी गाली नहीं, बल्कि पूरे मध्य और उत्तर भारत के चौराहे-गली और घरों में भी रची-बसी हैं। फिर आप उन गालियों को बनारस की पहचान कैसे प्रमाणित कर सकते हैं। बनारस की गालियां बेहद जमीनी और बेमिसाल हैं। नयी और लाजवाब खोज की तरह। मसलन, मुतनी के, बुजरौ के, चश्ममुतनी के, आदि-इत्यादि। जिनमें आप लाख खोजेंगे, अश्लीलता या अभद्रता नहीं दिखेगी। आप किसी को भी ऐसी गालियां दे दीजिए, मेरा दावा है कि वह कभी भी उसका बुरा नहीं मानेगा।

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