एक जज की आत्‍मकथा: सिस्‍टम से झंझट

दोलत्ती

: जजों में भी होते हैं एक से बढ़ कर एक नायाब लोग : एक जज में भी धड़कता है जोश और जुनून: बाँदा का मिला : एक जज की आत्‍मकथा-एक :
राजेंद्र सिंह
बाँदा: यह कहानी है सन 1990-92 की। इसका शीर्षक रखा है मैंने :- आर0एम0 साहेब…Encounter with the system.
तो साहब। पहली पोस्टिंग 5.08.85 नैनीताल में प्रशिक्षण के दौरान जहां से अधकचरे ज्ञान के साथ 5,.12.85 को अपने बैचमेट मेहरोत्रा राजीव लोचन के साथ जनपद न्यायालय इलाहाबाद में अपनी आमद कराई ।
1989 में मुझे मिर्ज़ापुर स्थानांतरित किया गया । एक साल बाद जस्टिस अंशुमान सिंह ने मुझे बुलाया और कहा कि बाँदा रेलवे मजिस्ट्रेट ने काफी गड़बड़िया कर रखी है और तुम रेलवे मजिस्ट्रेट बाँदा बन जाओ । वे उस समय कानपुर ज़ोन के प्रशासनिक जज थे और बाँदा उनके क्षेत्राधिकार में था । मैंने दो बातें बताई ..पहला की बाँदा मेरी ससुराल है और दूसरा कि मैं स्वयं वहाँ जाने के लिए प्रार्थना पत्र नहीं दूंगा ( अगर मैं ट्रांसफर के लिए खुद लिखता तब मुझे टी0ए0 , डी0ए0 नहीं मिलता ) । उन्होंने कहा ठीक है । वे पापा के बहुत अच्छे मित्र थे । मैं लौट आया और कुछ दिन बाद मुझे रेलवे मजिस्ट्रेट बाँदा बना दिया गया ।
बाँदा न्यायिक आवास में बटलर क्लब गेट की ओर से प्रवेश करने पर पहला बी टाइप मकान मुझे मिला जिसपर कालांतर में मैंने आवास रेलवे मजिस्ट्रेट का पत्थर लगवाया था । उस समय विजय विक्रम सिंह जिला जज थे उनका पुत्र इस समय अपर जिला जज है । उनके समय मेरा काम काफी अच्छा रहा और उनका पूरा सहयोग रहा ।उन्होंने कभी भी मुझे अपने साथ चलने या अपने बच्चों को लाने के लिए नहीं कहा ।
बाँदा मध्य रेल का स्टेशन , जिसका हेड क्वार्टर बॉम्बे था और नैनी से जबलपुर तथा बाँदा से हज़रत निज़ामुद्दीन तक का क्षेत्र आता था ।
बाँदा जनपद के अंतर्गत विचारण करने का अधिकार रेलवे एक्ट और रेलवे प्रॉपर्टी प्रोटेक्शन एक्ट में था । रेलवे पास , ड्यूटी पास फर्स्ट क्लास का मिला केवल झांसी डिवीज़न का जिसे मैंने बॉम्बे जाकर इलाहाबाद, झांसी, जबलपुर और बॉम्बे तक का कराया था लेकिन मेरे बाद यह फिर से झांसी डिवीज़न का कर दिया गया । चलते ए0सी0 सेकंड क्लास में थे ।
बाँदा में रेलवे कोर्ट स्टेशन पर ही था । वहां के अधिवक्ता वहीं पर प्रैक्टिस करते थे । मेरे अधिवक्ता साले ने जिसके पास रेलवे के भी केस थे, मेरे कोर्ट में आना छोड़ दिया और अपने सारे केसेस वहां के अधिवक्ता को दे दिया ।बाँदा में प्रचार हो गया कि कुँवर आनंद देव सिंह के दामाद यहां आ गए है और मुझे सब अत्यधिक इज्जत देने लगे ।उस समय बाँदा के एक और दामाद एस0सी0चौरसिया सर् भी वहां पर अपर जिला जज थे । हम लोगों की खूब अच्छी बनती थी । कॉलोनी में अश्विनी कुमार , पी0के0सिंह , चंदेल साहेब, खान साहब, आदि कई लोग थे ।
जिला जज विक्रम सिंह के स्थानांतरण के बाद नए जिला जज सेवक सरन गुप्ता आये , काफ़ी लंबे लेकिन मुझसे 3,4 इंच छोटे थे और उनका निक नेम “सड़ा सर गुप्ता ” था । उनके आने के बाद मेरे
सुख भरे दिन बीते रे भैया हो गया । हाँ उसी दौरान एक नए मुंसिफ विवेक दुबे का पदार्पण बाँदा में हुआ जो इस समय जिला जज हो गया है ।मुझे अपना गुरु बनाया । जिला जज दतिया , मध्य प्रदेश के रहने वाले थे । हाँ एक खास बात ये होती थी कि अगर रेलवे मजिस्ट्रेट का चपरासी अपना चपरास लगा कर किसी के भी साथ कहीं चला जाये तब उस व्यक्ति / अधिकारी को टिकट लेने की जरूरत नहीं होती ।बाँदा के जज साहब ने रेलवे मजिस्ट्रेट के तीन बेल्ट बनवाये थे । दो रेलवे कोर्ट के लिए और एक अपने चपरासी के लिए ।उनको या उनके बच्चों, रिश्तेदार को लाने छोड़ने का काम वही रेलवे मजिस्ट्रेट का चपरासी बन कर करता था । मुझे तो मालूम ही नहीं हुआ कि ये समांतर सरकार चल रही थी ।
मेरे साथ सारे वाकये , घटनाएं इनके सड़ा सर कद समय हुई केवल एक को छोड़कर जो विक्रम सिंह जज साहब के समय हुई । चलिये मज़ेदार वाकया प्रथम सोपान …..जस्टिस अंशुमान सिंह ने मुझसे कहा था कि तुम ईमानदारी से काम करना और किसी के साथ आना जाना मत ।अपने लिए उन्होंने कहा कि वे कार से यात्रा करते है इसलिए उन्हें मेरी जरूरत नहीं । (क्रमश:)

राजेंद्र सिंह यूपी के उच्‍च न्‍यायिक सेवा के वरिष्‍ठ न्‍यायाधीश रह चुके हैं। वे लखनऊ हाईकोर्ट के महानिबंधक और लखनऊ के जिला एवं सत्र न्‍यायाधीश समेत कई जिलों में प्रमुख पदों पर काम कर चुके हैं। हालांकि अपने दायित्‍वों और अपनी जुनूनी सेवा के दौरान उन्‍हें कई बार वरिष्‍ठ अधिकारियों का कोपभाजन भी बनना पड़ा। इतना ही नहीं, राजेंद्र सिंह को इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रोन्‍नत करने के लिए कोलोजियम में क्लियरेंस भी दी गयी थी। लेकिन विभागीय तानाबाना उनके खिलाफ चला गया। और वे हाईकोर्ट के जज नहीं बन पाये। अपने साथ हुए ऐसे व्‍यवहार से राजेंद्र सिंह का गुस्‍सा अब आत्‍मकथा लिखने के तौर पर फूट पड़ा। उनके इस लेखन को हम धारावाहिक रूप से प्रकाशित करने जा रहे हैं। उनकी इस आत्‍मकथा के आगामी अंक पढ़ने के लिए कृपया क्लिक कीजिए:-
एक जज की आत्‍मकथा

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