: गैरकानूनी ट्रेन रूकवाने पर दबाव डाल रहे थे प्रशासनिक जस्टिस : मैजिस्ट्रेट की ईमानदारी अखरी जस्टिस को : एक जज की आत्मकथा- दो
राजेंद्र सिंह
बाँदा : (गतांक से आगे) धुंवाधार से कुतुब टू हज़रत निज़ामुद्दीन वाया बाँदा । धुंवाधार जबलपुर का वो स्पॉट है जहां नर्मदा नदी काफी ऊंचाई से सैकड़ों फ़ीट नीचे गिरती है जिससे नीचे से ऊपर धुवां उठता दिखाई देता है ,रमणीक स्थल , दर्शनीय । कुतुब एक्सप्रेस जबलपुर से चलती है ।
उस समय एक जस्टिस आरआर मिश्रा थे जो मम्फोर्डगंज , इलाहाबाद में मेरे रिश्तेदार अनुग्रह नारायण सिंह ( पूर्व एम0एल0ए )के घर के पास रहते थे । उस समय शायद इलाहाबाद के प्रशासनिक जज भी थे । मुझसे कहा गया कि मैं मानिकपुर से कुतुब एक्सप्रेस में उनके 4 लोगों के लिए हज़रत निज़ामुद्दीन तक यात्रा की व्यवस्था करू । यह ट्रेन जबलपुर से चलती है और इसमें अक्सर सेना के अधिकारी यात्रा करते थे । मात्र एक डब्बा ए0सी0 II का लगता था । कोई जगह नहीं थी । मेरे लिए यह आश्चर्यजनक था कि इलाहाबाद से दिल्ली के लिए तो कई ट्रेन है फिर वाया बाँदा क्यों जा रहें हैं । मालूम हुआ कि इलाहाबाद रेलवे मजिस्ट्रेट ने ओब्लाइज करने से मना कर दिया ।सेंट्रल रेलवे सबसे सख्त थी और विजिलेंस रेड अक्सर हुआ करती थी । मैंने भी ओब्लाइज करने से मना कर दिया और लखनऊ अपनी सिस्टर के यहां चला गया । मेरा स्टाफ उनका मुरीद था । उनके बाँदा से गुज़र जाने के बाद मैं लौटा और वास्तविकता से मेरा आमना सामना हुआ ।
जज साहब ने बुलाया और बताया कि मानिकपुर में तुम्हें पूछ रहे थे ।बाँदा में जलेबी दही और तरह तरह के सामग्री परोसी गई थी तब भी पूछा कि आर0एम0 ( ये शार्ट फॉर्म विवेक दुबे , अश्विनी कुमार का दिया था) कहाँ है , जज साहब ने कहा कि लखनऊ गया है । वे बोले कि जब मैं आ रहा हूँ तब वो लखनऊ क्यों गया और मैं उसे देख लूंगा।
और उसकी एंट्री मैं दूंगा । जज साहब बोले कि जाकर इलाहाबाद में मिल लो ।मुझे बहुत क्रोध आया कि ओब्लाइज न करो तो धमकी मिलती है ।
जज साहब का आदेश , मैं ,अश्विनी, मेरा पेशकार ,अहलमद गोपाल बाबू और एक चपरासी गए । इलाहाबाद में एक एक्का किया गया जो इलाहाबादी शान का प्रतीक था और सुबह 9.00 पर उनके घर मम्फोर्डगंज पहुंचे ।नीचे ड्राइंग रूम में हम लोगों को बैठाया गया ।10 मिनट , 20 मिनट समय बीतता रहा , कभी कोई झांकता था कभी कोई जैसे हम लोग अजूबे हों । अंत मे 10 बजे जज साहब नीचे आये। मेरा स्टाफ लपक कर पैरों पर गिर गया ।मैंने नमस्कार किया तो बोले , “सुबह का वक़्त ख़ामख़ा बर्बाद करते हो ” और अपनी गाड़ी में बैठकर हाई कोर्ट चले गए । मैंने अश्विनी और अपने स्टाफ से कहा कि इसीलिए मैं किसी से मिलना पसंद नही करता । फिर मैं अपने ए0जे0 जस्टिस अंशुमान सिंह से मिला । वे बोले ए0जे0 मैं हूँ , एंट्री मैं दूंगा और तुम जाकर अपना काम करो , कुछ नही होगा । फिर पूछा उन्होंने टिकट लिया था । नहीं, मैंने बताया ।बाद में मुझे मालूम हुआ कि उन्होंने रजिस्ट्रार से मेरे ट्रांसफर के लिए पूरा जोर लगाया लेकिन ए0जे0 साहब ने मना कर दिया । ये था मेरा पहला एनकाउंटर ।
समय पंख लगा कर उड़ रहा था ।ससुराल में मेरी आवभगत हो ही रही थी । एडवोकेट्स भी खूब सम्मान देते थे ।फिर जज साहब विजय विक्रम सिंह जी का ट्रांसफर हुआ और सेवक सरन गुप्तजी आ गए । सी0जे0एम तिवारी जी और ओ0सी0 एकाउंट्स खरे साहेब नेक्स्ट डोर पड़ोसी थे । रेलवे मजिस्ट्रेट का टूर प्रोग्राम मुख्य टिकट परीक्षक के अंतर्गत बनता है और जिला जज आमतौर पर उसे अनुमोदित कर देते हैं अगर रेलवे मजिस्ट्रेट से कोई खुंदक न हो तो ।मैंने अपना टी0ए0बिल भुगतान हेतु कुछ महीनों का दे रखा था जो दबा हुआ था ।
रेलवे मजिस्ट्रेट को चार दिन टूर या स्पॉट ट्रायल करना था और दो दिन कोर्ट में बैठकर 3 आर0पी0यू0पी0 एक्ट व रेलवे एक्ट के केसेस करना था । मेरी एक कैम्प कोर्ट मानिकपुर में थी जिसमे कोर्ट साहेब जबलपुर से आते थे । मैं एक दिन बाँदा स्टेशन रेलवे कोर्ट में मैं बैठता था । (क्रमश:)
राजेंद्र सिंह यूपी के उच्च न्यायिक सेवा के वरिष्ठ न्यायाधीश रह चुके हैं। वे लखनऊ हाईकोर्ट के महानिबंधक और लखनऊ के जिला एवं सत्र न्यायाधीश समेत कई जिलों में प्रमुख पदों पर काम कर चुके हैं। हालांकि अपने दायित्वों और अपनी जुनूनी सेवा के दौरान उन्हें कई बार वरिष्ठ अधिकारियों का कोपभाजन भी बनना पड़ा। इतना ही नहीं, राजेंद्र सिंह को इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रोन्नत करने के लिए कोलोजियम में क्लियरेंस भी दी गयी थी। लेकिन विभागीय तानाबाना उनके खिलाफ चला गया। और वे हाईकोर्ट के जज नहीं बन पाये। अपने साथ हुए ऐसे व्यवहार से राजेंद्र सिंह का गुस्सा अब आत्मकथा लिखने के तौर पर फूट पड़ा। उनके इस लेखन को हम धारावाहिक रूप से प्रकाशित करने जा रहे हैं। उनकी इस आत्मकथा के आगामी अंक पढ़ने के लिए कृपया क्लिक कीजिए:-
एक जज की आत्मकथा