: दुर्वासा के सामने शिव की लीला सुनिये तो दंग रह जाएंगे आप : कोरोना-काल तो विपश्यना-काल है। इसमें पश्चाताप नहीं, प्रायश्चित कर निर्मल हुआ जाए : जीभ-लिंग 1 :
कुमार सौवीर
लखनऊ : पुराणों को हम गालियां तो खूब दे सकते हैं, लेकिन उनमें छिपे अन्तर्कथा को फेंक देते हैं। जब होना तो यह चाहिए कि हम पौराणिक गाथाओं के स्थूल भाव को चूस कर उसके रस को हासिल कर लेते। सच बात तो यही है कि ऐसे पौराणिक क्षेपकों को अगर समझ लिया जाए, तो वे हमारे जीवन के विकास में बेमिसाल तत्व बन सकते हैं। आइये, एक गाथा सुन लीजिए।
हुआ यह कि दुर्वासा ऋषि महादेव की किसी बात पर रूष्ट होकर उनसे मिलने जा रहे थे। तय किया था कि आज वे श्राप देकर ही मानेंगे। क्रोधित चाल, भयावह मुखाकृति। उधर तेज कदमों में आते दुर्वासा ऋषि को देख कर शिव मुस्कुराये। त्रिशूल और डमरू को कोने पर रख दिया और अपने बायें हाथ से अपनी जुबान, और दाहिने हाथ से अपना लिंग कस कर दबोच लिया और नाचते-कूदते हुए से सीधे ऋषि दुर्वासा के सामने नृत्य करने लगे। जाहिर है कि दुर्वासा के आसपास दर्शकों की भीड़ लग गयी।
हड़बड़ा गये दुर्वासा। अपना क्रोध ही भूल गये।
अचकचा कर बोले:- प्रभु यह कौन सी लीला है यह आपकी ? एक हाथ में अपनी जुबान दबोचे हुए हैं और दूसरे हाथ से अपना लिंग कस कर पकड़े हुए आप नाच रहे हैं। इसका क्या अभिप्राय है भगवन शम्भू ?
शिव ने अपना नाचना बंद कर दिया और मंद-मंद मुस्कुराते हुए बोले:- हे ऋषिवर। इस पूरी दुनिया में सारे झंझट-टंटे केवल इन्हीं दोनों के चलते हैं। इन पर नियंत्रण न होने के चलते सारे विवाद खड़े हो जाते हैं। इसलिए मैंने इन दोनों को ही साध लिया है। न रहेगा बांस, और न रहेगी बांसुरी। इसीलिए मैं अब सुखपूर्वक नाच रहा हूं।
कहने की जरूरत नहीं कि दुर्वासा ऋषि जी महादेव अड़भंगी के चरणों में लम्बलेट हो गये। साष्टांग।
अगर आप लोग मेरी बात समझ चुके हों तो मैं अपनी बात आगे बढ़ाऊं? (क्रमश:)
( यह पौराणिक गाथा सुनायी है सेवानिवृत्त अधिकारी और इलाहाबाद के पूर्व मंडलायुक्त देवेंद्र नाथ दुबे ने। लेकिन इसी के क्रम में आपके लिए हम एक नया प्रस्ताव लाये हैं। आप के जीवन में जो भी कोई खट्टी-कड़वी स्मृतियां आपको लगातार कचोटती जा रही हों, आप तत्काल उससे निजात हासिल कीजिए। खुद को कुरेदिये, उन घटनाओं को याद कीजिए और उनको सविस्तार लिख डालिये। उन घटनाओं को सीधे ईमेल पर भेज दीजिए या फिर वाट्सएप पर भेज दीजिए। आप अगर अपना नाम छपवाना नहीं चाहते हों, तो हमें बता दीजिए। हम आपकी हर याद को आपका जिक्र किये बिना ही प्रकाशित कर देंगे। और उसके साथ ही आपके दिल में छिपा गहरा अंधेरा अचानक समाप्त हो जाएगा, और पूरा दिल-दिमाग चमक पड़ेगा। यह लेख-श्रंखला अब रोजाना प्रकाशित होगी। कोशिश कीजिए कि आप भी इस श्रंखला का हिस्सा बन जाएं।
हमारा ईमेल है kumarsauvir@gmail.com, आप हमें 9453029126 पर वाट्सएप कर सकते हैं। संपादक: कुमार सौवीर)
गुरुवर।सादर साष्टांग दंडवत् प्रणाम्…..नंग धडंग है जिंदगी …कोरोना…काल में..अकाल सबंधो का…सारी चिंता भय से
ऊपर…एक मुक्तता…जीवन की…जैसे हाथों मे चिपट गयी जिंदगी…धो धो कर हाथ…पैसे और तकदीर की लकीरे भी मिट गयी है……
.. लेकिन जानना चाहूंगा कि पूर्व मंडल आयुक्त देवेंद्र नाथ दुबे कि यह कथित पौराणिक गाथा का स्रोत क्या है मेरे ख्याल से स्रोत की जानकारी के बिना बात कुछ अधूरी सी लगती है