भगोड़ों-लुटेरों का 67 हजार करोड़ का कर्जा गुपचुप माफ

दोलत्ती

: रामदेव-बालकृष्‍ण के भी सवा दो हजार करोड़ माफ : मेहुल-माल्‍या ही नहीं, रामदेव-बालकृष्‍ण को भी मिला मलाई का दोना :
विनोद पांडेय
इलाहाबाद : एक आरटीआई के दिए गए जवाब में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने स्वीकार किया है कि उसने 50 टॉप विलफुल डिफाल्टर्स के 68,607 करोड़ रुपये के कर्ज माफ किए हैं। जिन प्रमुख डिफाल्टरों के कर्ज माफ किए गए हैं उनमें फरार हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी तथा किंगफिशर के मालिक विजय माल्या ही नहीं, बल्कि योग-प्रशिक्षक के बहाने धंधेबाज बने बाबा रामदेव-बालकृष्‍ण की कम्‍पनी को भी सवा दो हजार करोड़ रूपयों की माफी दे दी गयी है।
आरबीआई ने यह जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता साकेत गोखले द्वारा मांगे गए सूचना अधिकार के जवाब में दी है। गोखले का कहना कि जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाले (विलफुल) डिफाल्टरों की की और उनकी माफ की गई धनराशि की जानकारी आरबीआई के केंद्रीय सार्वजनिक सूचना अधिकारी अभय कुमार ने 24 अप्रैल को उपलब्ध करवाई।,
आरबीआई का कहना है शीर्ष 50 विलफुल डिफाल्टरों पर कुल 68,607 करोड़ रुपये बकाया है और तकनीकी रूप से तथा विवेकपूर्ण तरीके से इस पूरी राशि को 30 सितंबर, 2019 तक माफ कर दिया गया है.
गोखले ने कहा, “शीर्ष बैंक ने उच्चतम न्यायालय के 16 दिसंबर, 2015 के एक निर्णय का हवाला देकर विदेशी ऋणदाताओं के संबंध में मांगी गई जानकारी उपलब्ध कराने से इंकार कर दिया.”
आरबीआई ने 50 शीर्ष विलफुल डिफाल्टर्स की जो सूची दी है उसमें मेहुल चोकसी की भ्रष्टाचार में फंसी कंपनी गीतांजलि जेम्स लिमिटेड पहले नंबर पर है, जिसके ऊपर 5,492 करोड़ रुपये का बकाया है. इसके अतिरिक्त समूह की अन्य कंपनियां, गिली इंडिया लिमिटेड और नक्षत्र ब्रांड्स लिमिटेड हैं, जिन्होंने क्रमश: 1,447 करोड़ रुपये और 1,109 करोड़ रुपये लोन लिए थे. इस प्रकार अकेले चोकसी से जुड़ी सभी कंपनियों की ही माफ की गई कुल धनराशि 8049 करोड़ रुपए है।
चोकसी को इस समय फरार घोषित किया जा चुका है और प्रवर्तन निदेशालय जैसी कई जांच एजेंसियों को उनकी तलाश है ।वह इस समय एंटीगुआ एंड बारबाडोस आईसलैंड का नागरिक है, जबकि उसका भतीजा और एक अन्य भगोड़ा हीरा कारोबाारी नीरव मोदी लंदन में है.इस सूची में दूसरे स्थान पर आरईआई एग्रो लिमिटेड है, जिसने 4,314 करोड़ रुपये के कर्ज लिए थे. इसके निदेशक संदीप झुनझुनवाला और संजय झुनझुनवाला हैं ,ये भी एक साल से अधिक समय से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच के दायरे में हैं.
सूची में तीसरा सबसे बड़ा नाम भगोड़े हीरा कारोबारी जतिन मेहता की विनसम डायमंड्स एंड ज्वेलरी का है, जिसपर 4076 करोड़ रुपये का बकाया था,इस कंपनी की भी केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा विभिन्न बैंक धोखाधड़ी के लिए इसकी जांच की जा रही है. इसी प्रकार दो हजार करोड़ रुपये की श्रेणी में कानपुर स्थित रोटमैक ग्लोबल प्रा.लि. है, जो प्रसिद्ध कोठारी समूह का हिस्सा है, और इस पर भी2,850 करोड़ रुपये का बैंकों का कर्ज हैं. इस श्रेणी के अन्य नामों की बात की जाए तो इसमें कुदोस केमी, पंजाब (2,326 करोड़ रुपये), बाबा रामदेव और बालकृष्ण के समूह की कंपनी रुचि सोया इंडस्ट्रीज लिमिटेड, इंदौर (2,212 करोड़ रुपये), और जूम डेवलपर्स प्रा.लि., ग्वालियर (2,012 करोड़ रुपये) शामिल हैं।.
इस सूची में एक हजार करोड़ रुपए कर्ज वाली श्रेणी में कुल 18 कंपनियां शामिल हैं। इससे शामिल कुछ प्रमुख नाम और उनपर बकाया राशि इस प्रकार हैं – हरीश आर. मेहता की अहमदाबाद स्थित फॉरएवर प्रीसियस ज्वेलरी एंड डायमंड्स प्रा.लि. (1962 करोड़ रुपये), और भगोड़े शराब कारोबारी विजय माल्या की बंद हो चुकी कंपनी किंगफिशर एयरलाइंस लिमिटेड (1,943 करोड़ रुपये) शामिल हैं.
दी गई सूचना में 25 ऐसी कंपनियां भी शामिल हैं जिनके ऊपर एक हजार करोड़ से कम का बकाया हैं. ये बकाया राशि605 करोड़ से लेकर 984 करोड़ रुपये तक है । ये कर्ज या तो व्यक्तिगत तौर पर लिए गए हैं, या समूह की कंपनियों के रूप में । यहां गौर करने वाली बात ये भी ये सभी बकायादार व्यक्ति या कंपनियां एवं समूह प्रवर्तन निदेशालय समेत कई सरकारी एजेंसियों के जांच के दायरे में हैं। इनमें से कई देश छोड़कर फरार हैं और उनके प्रत्यर्पण की भी प्रक्रिया चल रही है जबकि अन्य कई कंपनियां अदालती कार्यवाही का भी सामना कर रही हैं।
ये 50 शीर्ष विलफुल डिफाल्टर्स आईटी, इंफ्रास्ट्रक्चर, बिजली, स्वर्ण-डायमंड ज्वेलरी, फार्मा आदि सहित अर्थव्यवस्था के विविध सेक्टरों से जुड़े हुए हैं और ये तथ्य अब पूरी तरह से बेनकाब हो चुका है कि इन्होंने देश की अर्थव्यवस्था और बैंकिंग प्रणाली के साथ बड़ी धोखाधड़ी की है फिर भी इन आर्थिक अपराधियों पर आरबीआई जैसी नियामक संस्था द्वारा इस तरह के रहमोकरम के पीछे वजह क्या थी ?
माफ की गई धनराशि कोई मामूली रकम नहीं है बल्कि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसी सरकार के पूरे बजट से भी अधिक है। ऐसे में ये सवाल उठना लाजिमी है कि देश के आम आदमी की गाढ़ी कमाई को इस तरह से गुपचुप ढंग से खैरात में लुटाने का अधिकार आखिर सरकार को दिया किसने ?
क्या इस प्रकार के निर्णय सरकार और सरकारी एजेंसियों द्वारा प्राप्त अपने विवेकाधिकार का दुरुपयोग नहीं है ? इस तरह के बहुत से सवाल आप लोगों के दिमाग में भी उठने चाहिए जिसका जवाब देश की सरकार को देना चाहिए।

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