चंदन जैसे अस्‍पतालों में मरीज तबाह हो जाता है

दोलत्ती

: चीन के कोरोना वायरस से थरथर कांप रहे हमारे युवा कायर समाज में तब्दील : साहस, क्षमता, दायित्‍व और संकल्‍प से दूर लुटेरा-हत्यारा समाज :
कुमार सौवीर
लखनऊ : पिछले हफ्ते ही मेरे एक मित्र प्रभात त्रिपाठी को पैर में हल्की मोच की शिकायत हुई। वे 1090 चौराहे से अपनी बुलेट बाइक से गुजर रहे थे, कि अचानक तेज रफ्तार स्‍कूटी चला रही एक महिला अनियंत्रित होकर उनसे भिड़ गयी। दर्द से बिलबिलाते प्रभात त्रिपाठी अपनी बाइट चलाते हुए गोमती नगर के फैजाबाद रोड स्थित चंदन हॉस्पिटल पहुंचे।
सबसे पहले तो उनसे रजिस्‍ट्रेशन के नाम पर 450 रूपया वसूल कर एक पर्चा बनवाया गया। उसके बाद एक्‍सरे, फिर बैंडेज आदि। डॉक्‍टर ने बताया कि फिलहाल उन्‍हें पक्‍का प्‍लास्‍टर लगाने की जरूरत नहीं है। लेकिन उन्‍हें कुछ दिन तक कच्‍चा प्‍लास्‍टर लगाना होगा। डॉक्‍टर ने बताया था कि यह भी हो सकता है कि कच्‍चा प्‍लास्‍टर लगाने से ही काम हो जाए। हैरत की बात है कि यह डॉक्‍टर कितना धंधेबाज है, औश्र 34 सौ रूपयों का खर्चा कराने के बाद भी बहुत सहज और सामान्‍य भाव में खड़ा हुआ है।
अब सुनिये इस चंदन हॉस्पिटल का हालचाल। खुद को पांच सितारे वाले होटल जैसा माहौल है इस अस्‍पताल में। मेन गेट पर गुब्‍बारों का झुंड कुछ इस तरह सजाया गया है, मानो यहां मरीज नहीं आता है, बल्कि कोई बारात आने की तैयारी चल रही है। इस हास्पिटल में बाकायदा में होने वाले खर्च, आपके होश उड़ जाएंगे। प्रभात त्रिपाठी को कच्चा प्लास्टर लगाने आदि कामों के लिए कुल 34 सौ रूपयों की मोटी रकम उगाही गयी। इसमें दवा आदि का खर्चा शामिल नहीं है। हां, अतिरिक्‍त सेवाओं के नाम पर अस्‍पताल वालों ने प्रभात त्रिपाठी को एक ह्वील-चेयर और उसे धकेलने के लिए एक वार्ड-ब्‍वाय मुहैया करा दिया था।
ऐसी हालत में विदेश से या चंदा देकर अपने आपको धनवंतरी का अत्‍याधु‍निक मुखौटा ओढ़ डॉक्टरों-लुटेरे की कारगुजारी कैसी होगी, इसका अंदाजा बहुत आसान से ही लगाया जा सकता है। खासतौर पर समझ लीजिए कि एक मेडिकल छात्र का दायित्व क्या है। किसी भी मेडिकल छात्र को सबसे पहले अपने डर को जीतना होता है। इसके लिए उसे किसी मानव शरीर को गहराई से पढ़ना होता है। जिसे कहा जाता है कि उसके बाद हर मेडिकल छात्र हर किस्म की मरीज मर्ज वाले बीमारी से बचाने की कोशिश करता है। चाहे वह कटा-कटा अंग हो या घिनौना गांव या फोड़ा उसे इन हालातों में इमरजेंसी यानी आपात-कालीन ड्यूटी भी करनी होती है। भले वह कोई लाश हो, या लाश बनने जा रहा कोई मरीज। मसलन चीन में कोरोना वायरस की चपेट में मारे गये सैकड़ों लोग, या फिर वहां मौत की आगोश में जाने की तैयारी कर रहे निवासी। किसी भी मरीज को ऐसी चुनौतियों का जवाब उनको मुंहतोड़ जवाब देकर ही सीखा जा सकता है।
लेकिन यह दायित्व चीन में पढ़ रहे साढ़े इक्‍कीस हजार मेडिकल छात्रों के दिमाग में आया ही नहीं। न उनके सामने, और न ही चीन के मेडिकल कालेजों ने इन भारतीय छात्रों को इस दायित्‍व की जरूरत ही समझायी गयी। सरकारें भी खामोश ही रहीं। ऐसी हालत में बाकी कहर वाले दिनों की तस्‍वीरें साबित करती हैं, कि चीन के लोगों के दिल दिमाग पर क्‍या-क्‍या फर्क आया। और केवल वे छात्र ही क्यों, बल्कि उनके परिवारीजन और भारत सरकार की भी समझ में नहीं आया कि पढ़ने गए बच्‍चों पर किस तरह की शिक्षा देने के पक्षधर हैं।
चीन में अचानक ऐसे किसी खतरे को देखते हुए भारतीय छात्रों ने पहली घंटी पर ही भारत की ओर पलायन करना ही उचित समझा। कुछ भी हो इन छात्रों का यह रवैया और उनके परिवारी जनों का व्‍यवहारबेहद दुखद दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक भी है। जो इन शब्दों में इंसान के बजाय, साक्षात शैतान का चरित्र छुपाए रहे हैं।
लेकिन कम से कम हम इतना जरूर कह सकते हैं कि हम अब लगातार एक कायर समाज में तब्दील होते जा रहे हैं जहां साहस, क्षमता, इंसानी दायित्‍व और संकल्‍पहीनता का प्रशिक्षण से दूर, एक लुटेरे और हत्यारे इंसान के तौर पर पनप रहा है। और कहने की जरूरत नहीं कि ऐसे डरे, निर्बल युवाओं की पनाहगाह चंदन अस्‍पताल जैसे संस्‍थान ही होंगे। (क्रमश:)

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