धीरे-धीरे मचल ऐ दिले-बेकरार कोई आता है। यूं तड़प के न तड़पा मुझे बार-बार कोई आता है

दोलत्ती

: मोहब्बत से जुड़ी यादों की टीस का दर्द मर्मान्तक होता है, तकिए यूं ही नहीं भींग जाती थीं : बस, कोई अपने आप में भी अपने मनोभावों और टूटी स्मृतियों की याद में अपने दिल को सरेआम याद कर पाने का साहस नहीं कर पाता : 

कुमार सौवीर

लखनऊ : “धीरे-धीरे मचल,
ऐ दिले-बेकरार
कोई आता है।
यूं तड़प के
न तड़पा मुझे बार-बार
कोई आता है “

बात-बात की बात होती है, वक्त-वक्त की बात होती है। कोई आपकी मोहब्बत चकनाचूर कर चला गया होता है,कोई वक्त के सामने अपने घुटने टेक कर आपकी जिंदगी से दूर चला जाता है, किसी को गरीबी तोड़ देती है, तो कोई अट्टालिकाओं की मीनार तक नहीं छू पाता है,

कोई संबंधों से मजबूर हो जाता है, कोई इंतज़ार करा देता है, तो कोई इंतज़ार बर्दाश्त नहीं कर पाता। और अधिकतर की तो उम्र ही निकल जाती है। लेकिन चाहे कुछ भी हो, छटपटाहट तो हर एक में उगती है, होती है और हमेशा उबलती ही रहती है।

मेरे दोस्त ! मोहब्बत से जुड़ी यादों की टीस का दर्द मर्मान्तक होता है। तकिए यूं ही नहीं भींग जाती थीं। बस, कोई अपने आप में भी अपने मनोभावों और टूटी स्मृतियों की याद में अपने दिल को सरेआम याद कर पाने का साहस नहीं कर पाता।

आइए, मैं उन्हीं यादों से आपको रु-ब-रु कराने जा रहा हूँ, जिनके लिए आपका दिल आहें भरता है और आपकी आंखें बरबस बरस पड़ती हैं।

गीत के बोल हैं:- धीरे-धीरे मचल ऐ दिल-ए-बेकरार, कोई आता है

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