वकीलों की गुलाटी: आये थे कपि बनने, बंदर बन गये

दोलत्ती

: कचेहरी में होने वाली हरकतें मानव से उलटे बंदर बनने की अवस्‍था : बार एसोसियेशंस में होने वाली हरकतें साबित करती हैं कि इंसान बनने में चूक हो गयी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : बंदर से इंसान तक का बौद्धिक परिवर्तन यूं ही अनायास नहीं हुआ था। बल्कि श्रम-बल ही उसका इकलौता माध्‍यम था, और छौंक लगायी समझदारी की। यानी समझ कर करने की शिद्दत, जिसने उसे खुद को इंसान के तौर पर तब्‍दील किया। इस बात को आप अदालतों में चलती बहस-मुबाहिसों में आसानी से देख सकते हैं। इस शर्त पर वकील को श्रम से बुद्धि के सफर का सफल-यात्री माना जा सकता है। लेकिन सारे के सारे वकील इस शर्त पर खरे उतर जाते हों, यह मानना मूर्खता ही मानी जाएगी। वकीलों की भीड़ में कुछ ऐसे भी वकीलनुमा लोग खूब हैं जो बंदर से इंसान की विकास-यात्रा में काफी पिछड़ गये। शक्‍ल, सूरत, और अभिव्‍यक्ति का अंदाज व भाषा तो इंसानी हो गयी, लेकिन मूल लहजा बाकायदा बंदरों जैसा ही रहा है।
यह किस्‍सा कुछ-कुछ ऐसा ही है, जैसा लखनऊ बार एसोसियेशन के पदाधिकारियों का ताजा झगड़ा जिसे लखनऊ बार एसासियेशन के बजाय सेंट्रल बार एसोसियेशन की यु‍द्ध-भूमि में लड़ना शुरू हुआ था। मोटी-मोटा कुछ यूं समझिये कि पानीपत का युद्ध-क्षेत्र था सेंट्रल बार एसोसियेशन, जबकि उसके योद्धा था लखनऊ बार एसोसियेशन के।
आग लगाने वाले तो मजा लेने पर आमादा ही थे। अभी कुछ दिन पहले ही फेसबुक पर एक वकील ने एक पोस्‍ट डाल दी थी, कि:- अब तो पक्‍का है कि वह बंदर शर्तिया गुलाटियां मारेगा।
फिर क्‍या था, बंदर को ताव आ गया। गुस्‍से में लगा खौखियाने। खोजने कि कौन है जो उसका कुलांचों पर चिढ़ाने पर आमादा है। चूंकि यह बंदर अपने बंदरत्‍व से इंसान की राह में थोड़ा आगे बढ़ चुका था, इसलिए पहचान जरूर ही गया कि कौन उसे खौखियाने पर चिढ़ रहा है। भूल गया था कि उसे बंदर नहीं, बल्कि कपि से इंसान बनने की शुरूआत करनी है। इसलिए उसने बंदराना जवाब देने का फैसला कर लिया। मूल बंदर चरित्र में ही रहता तो एकाध को नकोट-बकोट लेता, दांत गड़ा देता, दौड़ा लेता, लेकिन चूंकि उसके भीतर थोड़ा-बहुत ही सही लेकिन हल्‍का-सा इंसानी भाव आना शुरू हो गया था। बदले के स्‍तर तक। इसलिए उसने आनन-फानन साजिशें बुनीं, अपने स्‍वयं जैसे इंसानों की तरह दिखते बंदरों को एकजुट किया, जिनमें बदले का भाव जोर मार रहा था। फिर क्‍या था, पटाखे वाली सुतली बम लेकर उसने अपने प्रतिद्धंद्धियों पर दगा डाला। गनीमत थी कि इस फोड़ा-फाड़ी के दौरान उन बंदरों ने बाहरी हमलावर बंदरों को वकालत वाली ड्रेस पहना दी, ताकि हमलावर की पहचान जग-जाहिर न हो पाये। और सुतली-बम दगाने के बाद वह इस डाल से डाल तक की ओर उछलता-कूदता भाग निकला।
इस सुतली-बम के बाद जब हंगामा खड़ा हो गया। कचेहरी में बवाल खड़ा हो गया। गालियां बकी जाने लगीं, तो इन बंदरों के होश आ गया। बदले हालातों में सकपका चुके इन बंदरों ने अब पैंतरा बदलने का फैसला किया। तय किया कि चूंकि यह सारा झगड़ा चूंकि वकीलों और कचेहरी को लेकर ही शुरू हुआ था, इसलिए उसे वकीलों तक की निपटा दिया जाए। बात बाहर निकलने से वकालत के चेहरे पर तमाचे पड़ेंगे, यह सोचा इन बंदरों ने। एक बंदर ने बार एसोसियेशन के नेताओं से सम्‍पर्क किया, और समझौतों की गुंजाइशों को खोजने का प्रस्‍ताव रखा। नेताओं में से कुछ लोग तो पिछले चुनावों को लेकर इस बंदर से काफी नाराज हुए थे, इसलिए उन्‍होंने इस प्रस्‍ताव को तत्‍काल मंजूर कर लिया। तय हुआ कि चूंकि बार का ही मामला है, इसलिए पुलिस-फुलिस को खबर देने के बजाय खुद ही निपट लिया जाए।
मात तय हुई, तो मुलाकात का वक्‍त मुकर्रर हो गया।
ऐन वक्‍त पर बंदर अपने हथियारबंद बंदरों के साथ मौके पर पहुंच गया। कड़ी चाक-चौबंद सुरक्षा की गयी थी। बंदरों के भीतर जाते ही बार का दफ्तर बंद कर दिया गया, ताकि किसी को कानो-कान खबर न हो पाये। और दरवाजा बंद होते ही इस बंदर पर एक के मुकाबले सौ के समीकरण पर कूटना-पीटना शुरू कर दिया वहां मौजूद बाकी लोगों ने।

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