: तो यह हैं ग्लोबल सिटीजनशिप की ओर हमारे बढ़ते कदम : भावी बुजुर्गों, वानप्रस्थ और सं-न्यास आश्रम के लिए क्या तैयारियां हैं? : अपरिचय की पराकाष्ठा तक पहुंच चुका है हमारा सामाजिक ढांचा : दिल धक्क-धक्क 1:
डॉ उपेंद्र पाण्डेय
चंडीगढ़ : आज सुबह बाल्कनी में बैठा अखबारों के बंडल में कोई काम की खबर खंगाल रहा था। चाय के दूसरे प्याले के साथ (बनियान पहने बैठा था न) फुलस्लीव शर्ट के लिए गुहार लगाई तो बाल्कनी को छूती आम के दोनो पेड़ों की डालियां मुस्कुराईं और बोलीं “एयरकंडीशन कमरों में बैठकर मौसम के मिजाज का पता नहीं चलता एडीटर साहब। क्या आपको पता है कि दो रातों से हमारी डालियों की चि़ड़ियां सेक्टर 30 की रामलीला के डायलाग दोहरा रही हैं। आपके अखबारों में तो रामलीला की दो लाइनें भी नहीं छपीं।“
मैंने झेंप कर सर झुकाया, तो दो घटनाएं एक साथ घटीं।
पहली घटना: अच्छी-सच्ची खबरों की प्यासी नजर एक खबर पर सहसा अटक गई। खबर यह थी कि 65 साल के एक करोड़पति ने 24 साल की एक लड़की से ब्याह रचा लिया। (…कोई बात नहीं चीनी कम फिल्म हम कब के देख चुके हैं)। अगली लाइनें थीं…एक दिन बुजुर्ग मियां अपनी युवा बीबी को घर का पुराना अलबम दिखाने बैठे तो दोनो के सर पर गाज गिर गई।
पता चला कि करोड़पति जी जिस पत्नी के डार्लिंग बने हैं वह तो उनकी अपनी ही डार्लिंग पोती है। उनके अपने बेटे की बेटी। पति (बाबा) को पता भी न चलता, अगर पत्नी (पोती) ने अलबम में अपने पिता के बचपन की तस्वीर को पहचान न लिया होता। दिल रो पड़ा.. और बोला..तो यह है पैसों की अंधी दौ़ड़ में घर-परिवार-रिश्ते-नाते-गांव-समाज सब से छिटक बिटक कर खो गया है। कहां खो गया है. इसका जवाब मिला दिया दूसरी घटना ने— (क्रमश:)
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मूलत: फैजाबाद निवासी डॉ उपेंद्र पाण्डेय देश के कई नामचीन अखबारों में ऊंचे पदों पर रह चुके हैं। इस वक्त दैनिक ट्रिब्यून के नेशनल ब्यूरो चीफ हैं। उनका सम्पर्क मोबाइल नम्बर 9876011650 है।