चिढ़ के पैगोडा में कई वजह जुड़ती हैं, जबकि गुस्‍सा क्षणिक

: गुस्‍सा क्षणिक, जबकि चिढ़ दीर्घकालिक। उन सब को जल्‍दी निपटाओ यार : चिढ़ और गुस्‍सा को दूर करना जरूरी, लेकिन समस्‍या यह कि लसोढ़ा लगाया जाए तो कहां : अक्‍सर तो तय ही नहीं हो पाता कि समाधान किस समस्‍या का हो : दिलों को जोड़ने के लिए भावुक लसलसे लसोढ़ा-पन की जरूरत सख्‍त […]

आगे पढ़ें

“आओ, रिश्‍तों की खाद बनाया जाए”

“आओ, रिश्‍तों की खाद बनाया जाए” रिश्‍ते चाहे वह जैविक हों, या फिर भावनाएं औपचारिक हों, अथवा आत्‍मीय या घनिष्‍ठ थोपे हुए हों, या फिर जबरन चिपकाये गये हों। उन्‍हें तोड़ कर फेंकना अक्‍लमंदी नहीं। बेहतर होगा कि उनको बटोर कर अपने से दूर कर दें। किसी गड्ढे में उन्‍हें दफ्न कर दिया जाए। सिलसिलेवार […]

आगे पढ़ें

एसी में मौसम के मिजाज का पता कहां चलता एडीटर साहब

: सोसायटी में सीना तान जाता है, घर में बैठो तो दिल धक्‍क से डूबता है : बचपन में धूल में खेलते थे हम, अब सारे सम्‍बन्‍ध धूल-धूसरित हो चुके : सवाल यह है कि अब अपनी सं‍ततियों को मैं पहचानूंगा कैसे : दिल धक्‍क-धक्‍क 3: डॉ उपेंद्र पाण्‍डेय चंडीगढ़ : दोनो घटनाओं के संयोग […]

आगे पढ़ें

बनियागिरी की चालाकी तो देखिये, सारे रिश्‍ते तुड़वा दिये

: बेहिसाब भौतिक सुविधाएं मिल जाएंगी, तो फिर आत्‍मीयता के तार कैसे जोड़ेगा : काम में बेहिसाब रगड़ाई, बाकी वक्‍त में मौज-मस्‍ती, सोचने का वक्‍त किसके पास रहेगा : किंतु अब वह कहां, और हम कहां? : दिल धक्‍क-धक्‍क 2: डॉ उपेंद्र पाण्‍डेय चंडीगढ़ : अब दूसरी घटना सुनिये। आज सुबह ही बेंगलुरू से एक […]

आगे पढ़ें

पोती से शादी ! अरे यह कहां आ गए हम

: तो यह हैं ग्लोबल सिटीजनशिप की ओर हमारे बढ़ते कदम : भावी बुजुर्गों, वानप्रस्थ और सं-न्यास आश्रम के लिए क्या तैयारियां हैं? : अपरिचय की पराकाष्‍ठा तक पहुंच चुका है हमारा सामाजिक ढांचा : दिल धक्‍क-धक्‍क 1: डॉ उपेंद्र पाण्‍डेय चंडीगढ़ : आज सुबह बाल्कनी में बैठा अखबारों के बंडल में कोई काम की […]

आगे पढ़ें