: आइये, महान शेफ कुमार सौवीर से सीखिये भोजन बनाने की तमीज : बरसात में निमोना का स्वाद न मिला तो पैसा वसूल कर लेना : आज सीख लिया कि कैसी बनती है अनोखी दाल-मिक्सी : दलिया के साथ खूब दोस्ती गांठ लेगी यह दिव्य दाल-मिक्सी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अरे कब तक हम बेहाल होते रहते, कब तक हर एक के दरवाजे पर कुंकुंआते रहते, कब तक लोगों की भोजनशाला से गमकती गंध सूंघते रहते, कब तक सुदामा की तरह अकर्मण्य बने रहते। कब तक अपने शरीर पर अ-भोजन का ब्रह्मास्त्र बर्दाश्त करते। कब तक रात-रात भर करवटें बदलते रहते ( यहां रात-रात भर करवटें बदलने का आशय इश्क, मोहब्बत, प्रेम, लव से लबरेज और हरहराती भावनाओं के साथ ही साथ भूख के चलते आंतों में लांग-जम्प और हाई-जम्प करते चूहों से भी है।)
यह दुर्दान्त सवाल मुझे लम्बे समय से दही से मक्खन बिलोती यशोदा मइया की हांड़ी में चक्करघिन्नी करती मथानी की तरह मथ रहा था। लेकिन चूंकि मैं साक्षात कृष्ण जरूर हूं, लेकिन अब यहां यशोदा मइया कहां से खोज लाऊं, यह यक्ष-प्रश्न है। महा यक्ष-प्रश्न और भी है कि रूक्मणी और सत्यभामा के साथ ही साथ सोलह हजार रानियां कहां से ले आयीं। अपनी मित्र द्रौपदी को कहां से ले आऊं।
अरे जनाब। समस्याएं एक नहीं, अनगणित हैं। इतनी है कि आप उन्हें गिन ही नहीं सकते।
इसीलिए अब मैंने तय किया है कि मैं अब अपना हाथ जगन्नाथ की ईश्वरीय पद्यति अपना लूं। खुद समान लाऊं, खुद पकाऊं और खुद खाऊं, और खुद,,,,, खैर छोडि़ये। बाकी बातों का क्या। यह तो बातें हैं, बातों का क्या।
अब चूंकि मैं प्रयोग-शील हूं, इसलिए हमेशा प्रयोग ही करता रहता हूं। बहुत बचपन में एक बार सिर्फ चेक करने के लिए मैंने एक हथौड़ी अपने बायें हाथ के अंगूठे पर कस कर मार दिया था। दर्द अब तक रहता है।
तो, किस्सा-कोताह यह है कि कुमार सौवीर जब बाहर से वापस लौटे तो भूख बहुत लग रही थी। गैस खत्म थी, और बिजली न होने के चलते इन्डक्शन भी काम नहीं कर रहा था। लेकिन मैं संकटों से घबराता नहीं हूं। नये खोज में जुट जाता हूं। तो जब तक बिजली नहीं आयी, मैंने तय कर लिया कि मैं क्या-क्या करूंगा। अब ऐसा है कि मैं सिस्टमेटिक पाक-विधि बनाने बैठूंगा तो, बहुत लम्बा हो जाएगा। बस, किस्सा सुनिये।
दो मुट्ठी चने की दाल, दो मुट्ठी मूंग की दाल और दो मुट्ठी काली मसूर को भिगो दिया। आधे घंटे बाद उसे मिक्सी में पीस लिया। लेकिन इसके पहले मैंने साग धोया और काट लिया। यह मत समझियेगा कि मैं नारी-विरोधी या नारी-उत्पीडक हूं, लेकिन यह साग नारी का ही था, जिसे गांव में करमुआ का साग कहा जाता है। शहर में तो 40 रूपये के रेट के बजाय मैंने 20 रूपये किलो खरीदा। खोंटा, लाल दवा से धोया और उसे भी पीस लिया। दोनों को मिला लिया और कुकुर में चढ़ा दिया।
कहते हैं न कि कुत्ते की पूंछ जन्म-जन्मांतरों तक नहीं सीधी हो सकती। यही हुआ मेरे कूकुर का। ससुरे ने सीटी मारने के बजाय जलौंधी मारना शुरू कर दिया। घबरा कर मैंने कुकुर बंद किया। अब तक लहसुन के कतले, जीरा और काली मिर्च साबुत और का-जानी-का के साथ ही साथ हींग भी डाल दी। हां, हां हरी मिर्च भी। साबुत। जब यूपी सरकार के अंतिम वर्ष के चेहरे की तरह निकलता धुंआ भभुआने लगा तो उसे उतार कर उसमें आधी वह पेस्ट उड़ेल लिया।
अरे यार, मस्त सुगंधि भड़की। पूरा घर गमक गया।
दलिया भी बन चुका है। बस इस लाइव रिपोर्ट को खत्म कर लूं, स्नान कर लूं। उसके बाद श्री श्री श्री कुमार सौवीर जी भोजन के आसन पर विराजमान हो जाएंगे।
अब मेरी महिला मित्र अगर इस माहौल पर कोई मस्त गीत गाना चाहती हों, तो उनका स्वागत है। जब इतने बरस तक उनकी प्रतीक्षा की है, तो मैं कुछ देर और भी प्रतीक्षा कर सकता हूं।