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ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: सोसायटी में सीना तान जाता है, घर में बैठो तो दिल धक्‍क से डूबता है : बचपन में धूल में खेलते थे हम, अब सारे सम्‍बन्‍ध धूल-धूसरित हो चुके : सवाल यह है कि अब अपनी सं‍ततियों को मैं पहचानूंगा कैसे : दिल धक्‍क-धक्‍क 3:

डॉ उपेंद्र पाण्‍डेय

चंडीगढ़ : दोनो घटनाओं के संयोग ने मुझे भूत-भविष्य के बीच पेंडुलम बना दिया है। बचपन में हम 9 भाई-बहन थे। सबसे बड़ी सुमन दीदी शादी के बाद हमारे लिए मेहमान बन गईं, तब हम छठीं कक्षा में थे। बची रीता, रवींद्र, मीरा, उपेंद्र चार मिडिल से ऊपर वाले। रंजना, नलिनी, अर्चना, अंजू और सत्येंद्र प्राइमरी व नर्सरी वाले। चारो बड़े ही ज्यादा साथ खेले-लड़े-झगड़े और बाहरी मोर्चों पर एक गोल रहे।

इनमें से आज रीता दीदी के दोनो पुत्र पत्नियों समेत अमेरिका वासी  हो चुके हैं। रवींद्र भैया की दोनो पुत्रियां भी अमेरिका वासी हैं, मीरा दीदी के बड़े पुत्र भी अमेरिका पहुंच चुके हैं। दूसरे पुत्र अमेरिका यूरोप की तैयारी में हैं। मेरे दोनो पुत्रों के भी परदेसी पंख लगने की “आशंका” घर के भीतर रहो तो दिल बैठा देती है, सोसायटी में जाओ तो कई बार सीना फुला देती है।

अब यह सोच मैं रीता दीदी, मीरा दीदी, पर छोड़ता हूं कि वे  कैसा फील कर रही हैं। रवींद्र भैया भाग्यशाली हैं कि उनका पुत्र उनकी कंपनी को कारपोरेट दिशा में ले जाने के लिए संग-संग कंधा लगाए है। लेकिन जहां तक मेरी बात है तो आज अगर योगेश के बच्चे किसी एयरपोर्ट पर अचानक मेरे सामने खड़े हों तो भाई मैं तो किसी को नहीं पहचान सकूंगा। जबकि योगेश को मैंने बचपन में कंधे पर बिठाया है, चेस खेलना सिखाया है। इंटरमीडियट के लिए लखनऊ आए तो मेरे साथ काफी दिन रहे और बाद में भी लखनऊ प्रवास के दौरान योगेश विवेक का लोकल गार्जियन मैं ही रहा। मुझे तो एक झटके में यह भी याद नहीं आ रहा है कि योगेश विवेक के कुल मिलाकर कितने बच्चे हैं और उनके नाम क्या-क्या हैं। बस एक यज्ञ नाम याद है, वह भी रीता दीदी की यज्ञ डेयरी चर्चा के कारण।

तो यह हैं ग्लोबल सिटीजनशिप की ओर हमारे बढ़ते कदम।

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यह लेख-श्रंखलाबद्ध है। इसकी अन्‍य कडि़यों को पढ़ने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:- दिल धक्‍क-धक्‍क

मूलत: फैजाबाद निवासी डॉ उपेंद्र पाण्‍डेय देश के कई नामचीन अखबारों में ऊंचे पदों पर रह चुके हैं। इस वक्‍त दैनिक ट्रिब्‍यून के नेशनल ब्‍यूरो चीफ हैं। उनका सम्‍पर्क मोबाइल नम्‍बर 9876011650 है।

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