बेटी के सामने हाथ जोड़े। और क्या कहता ?

दोलत्ती

: अम्बेदकरनगर के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ एसपी गौतम के निधन पर डीएम की पोस्ट, एक बहादुर योद्धा के लिए : कल हम सभी उस लड़ाई को आगे बढ़ाएँगे, जिसे डॉक्टर गौतम ने जी-जान से लड़ा :
राकेश मिश्र
अम्बेदकर नगर : हाँ सर, हाँ सर,
मोबाइल कॉल को रिसीव करने की आवाज़ होती। कभी रात के 2 बजे और कभी भोर के 5 बजे भी।
देखिए लाइन बहुत लम्बी हो रही है। लोग घंटों से खड़े हैं।
अभी स्क्रीनिंग पटल बढ़वाता हूँ सर। ज़बाब होता। मेरे पहुँचने से पहले ही वह उपस्थित मिलते डॉक्टर सन्त प्रसाद गौतम। मुख्य चिकित्सा अधीक्षक। काम विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम के मुखिया। ३० लाख आबादी के ज़िले के हज़ारों मरीज़ों, सैंकड़ों गर्भवती महिलाओं को चौबीसों घंटों तक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाना। कभी भी कोई पहुँचे, वह उपस्थित मिले। एक आदर्श चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध करायी। जिसके लिए उन्हें व जनपद को प्रशंसा मिलती।
फिर करोना का दौर आया। दिन रात प्रवासी मज़दूरों का आगमन, पैदल, साइकिल, बस, ट्रक, श्रमिक ट्रेनें। चौबीसों घंटे करोना की जाँच चलती रहती। सबके लिए भोजन, विश्राम, परिवहन की ज़िम्मेदारी में जिले का हर अधिकारी और कर्मचारी लगा हुआ था। डॉक्टर गौतम के ज़िम्मे कोविड अस्पताल की भी ज़िम्मेदारी थी, जहां संक्रमित मरीज़ भर्ती हैं। उन्ही में से एक मरीज़ के कमरे में दौरा करने के दौरान डॉक्टर गौतम संक्रमित होते है। पर सेवा के भाव में साथी डॉक्टर जान नहीं पाते हैं कि वह लगातार असहज हो रहे। बात जब मालूम हुई, संक्रमण फेफड़े में था। तुरंत विशेषज्ञों की टीम लगती है। परन्तु अंग एक के बाद एक साथ देना छोड़ रहे है।
हम सभी रो रहे हैं। पर हर कोई काम में लगा है।
आज हर उम्मीद को तोड़ती ख़बर आयी। हम सब लखनऊ भागे। अंतिम विदाई। पूरा परिवार था, पर डॉ गौतम का पार्थिव शरीर सील्ड था। अंतिम दर्शन, मुख देखना नहीं हो सका। बिजली शवदाह गृह के कर्मचारी अपने विशेष वस्त्र पहनने लगे। हमें भी अपने पाँव, सर, हाथ, मुँह, सब ढंकना था।
वहाँ सबकी पहचान खो गयी सहसा।
आपस में गुथमगुत्था होकर विलाप करता परिवार। सड़क के इस पार ही खड़ा रहा। बेटी ने रोते हुए मुझसे कहा। बहुत बिज़ी रखा आप लोगों ने। पिता की सेहत ख़राब होती रही।
मैंने हाथ जोड़े, और क्या कहता !
समय का यह दौर। मै सोचता था कि निकल जाएगा एक दिन। भूल जाऊँगा सब कुछ। डॉक्टर गौतम का यूँ जाना इसे अब भूलने भी नहीं देगा।
मै लखनऊ से वापस मुख्यालय लौट रहा हूँ।
कल हम सभी उस लड़ाई को आगे बढ़ाएँगे, जिसे डॉक्टर गौतम ने जी जान से लड़ा।
अलविदा डॉक्टर सन्त प्रसाद गौतम ! आप को हम भूल नहीं पाएँगे।

 

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