हा हा हा। ऐसी अर्जी लिखता है बार कौंसिल अध्यक्ष ?

दोलत्ती
: यूपी बार कौंसिल के दफ्तर में हरिशंकर सिंह ने दी गंदी-गंदी गालियां, बोले शट-अप : यह कौंसिल का दफ्तर है या आगरा का ताजमहल जहां अफसरों को टहलाने ले गये : यूपी बार कौंसिल में झंझट, शिकायत पर ठहाके :
कुमार सौवीर
लखनऊ : अब तक तो अधीनस्थ अदालतों में ही वकीलों की चलती थी। न्याय-परिसरों में कभी किसी को पीट देना, उसका कपडा फाड कर उसे सडक पर नंगा कर देना, घेराबंदी कर लेना आदि जैसी घटनाएं यदा-कदा होती ही रहती हैं। इतना ही नहीं, हाईकोर्ट में भी मारपीट जैसे पर्व-अनुष्ठान और त्योहार तो अब धीरे-धीरे सार्वजनिक और अक्सर होने लगे हैं। लेकिन अब पिछले बरस यह अनुष्ठान सांगठनिक आकार लेने लगा, जब लखनऊ हाईकोर्ट वाले अवध बार एसोसियेशन के कार्यालय में ही एक वकील को पदाधिकारियों ने जमकर गजक समझ कर खूब कूटा-पीटा।
लेकिन अब लगता है कि वकीलों का ऐसा सांगठनिक त्योहार अब अदालतों वाले वकीलों के शीर्ष संगठन में भी अब खूब उत्साह और जोश के साथ मनाये जाने की परम्परा पड गयी है। मामला है उप्र बार कौंसिल के दफ़तर में पिछले छह जून-20 का। हालांकि यहां अनुष्ठान अभी पूरा नहीं हो पाया है, लेकिन “मंत्रोच्चार” खूब हुआ और पूरे जोश-खरोश के साथ सम्पन्न होने की परम्परा का “चौरा पूजना” शुरू हो गया।
बार कौंसिल उप्र के दफ्तर में छह जून को जो कुछ भी हुआ, वह वाकई हुआ था या नहीं, इस पर अभीभारी संशय है। वजह यह फिलहाल तक एक प्राथमिक शिकायत भर ही है। हालांकि प्राथमिक सूचना-पत्र भी किसी घटना का मजबूत आधार हो सकता है, लेकिन जिस तरह की राजनीति पिछले कुछ महीनों से यूपी बार कौंसिल में चल रही हैं, उससे यह मामला विवादों में घिसट गया है। लेकिन इस घटना के बाद से यह तो तय हो ही गया है कि खुद को बहुत पढा-लिखा समुदाय होने का अर्थ यह नहीं होता है कि वहां के सारे के सारे लोग वाकई पढे-लिखे ही हों, और विवादों का समाधान मारपीट के बजाय तर्क और बातचीत से किया जा सके।यूपी बार कौंसिल में हुई उपरोक्त कथित घटना का खुलासा करने वाले पत्र को भेजने वाले कौंसिल के अध्यक्ष के पत्र से ही स्पष्ट हो जाता है, कि यह पत्र अपने आप में एक हास्य-व्यंग्य का एक अनुपम आलेख का प्रमाण है।
दरअसल, बार कौंसिल यूपी के ताजा घटनाक्रमों से साफ दिख रहा है कि यह सारा कुछ विवाद राष्ट्रीय विधिज्ञ परिषद यानी बार कौंसिल आफ इंडिया द्वारा पैदा किया गया है। यूपी बार कौंसिल के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने दोलत्ती संवाददाता को बताया कि केवल नाक बचाने का सवाल उठा कर यूपी बार कौंसिल के निर्वाचित अध्यक्ष हरिशंकर सिंह को अवैधानिक रूप से बर्खास्त किया गया। इस बर्खास्तगी के पहले शो-काज नोटिस जैसी कोई भी कार्रवाई नहीं की गयी। इंडियन बार कौंसिल ने हरिशंकर सिंह को किस आधार पर देवेंद्र मिश्र नागरहा के तौर पर एक नया अध्यक्ष थोप दिया गया, वह विवाद का विषय है। जाहिर है कि इस तरह इंडियन बार कौंसिल ने यूपी बार कौंसिल के अधिकारों और उसकी स्वायत्तता पर हमला किया है। ऐसे में ऐसे अनाधिकार हस्तक्षेप पर तो कड़ी कार्रवाई होनी ही चाहिए।
आप भी बांच लीजिए। दोलत्ती टीम को तो इसमें अपराध जैसा कुछ दिख ही नहीं रहा है। फिर इत्ती कवायद का मकसद क्या था, अल्ला जाने।
बहरहाल, आइये हम आपको वह पत्र दिखाते हैं जो देवेंद्र मिश्र नागरहा ने कथित घटना के एक दिन बाद बार कौंसिल आफ इंडिया को भेजा है। यकीन मानिये, बडा दिलचस्प पत्र है यह। लिखा है कि हरिशंकर सिंह चैम्बर में पहुंचते ही अब्दुल रज्जाक समेत वहां मौजूद लोगों को भद्दी-भद्दी गालियां देने लगे, बोले शटअप। हालांकि कौन सी गालियां दी गयीं, इसका खुलासा इस पत्र में नहीं किया गया है, सिवाय शटअप के। श्रीनाथ त्रिपाठी को भी गालियां दी गयीं, लेकिन कौन सी गालियां दी गईं तथा उसका कारण क्या था, नहीं पता। हैरत की बात है कि यह पूरा मामला क्यों भडका, इसके कारण का कोई भी जिक्र नहीं किया गया है इस पत्र में।
लिखा गया है कि अध्यक्षीय सेवाकाल के बोर्ड पर से महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह, श्रीनाथ त्रिपाठी, प्रवीण कुमार सिंह, जय नारायण सिंह और शंकर लाल वर्मा का नाम हटा दिया गया। लेकिन यह करतूत किसकी है, इसका कोई भी जिक्र इस पत्र में नहीं किया गया है।
पत्र में दर्ज है कि कौंसिल के अतिथि गृह के कमरे का ताला टूटा गया मिला। लेकिन किसने यह किया, इसका पता लगाने की जरूरत देवेंद्र मिश्र नगरहा ने नहीं समझी। हां, उन्होंने शिकायत पुलिस की और फिर कार्यालय में पुलिस के सीओ, इंस्पेक्टर और अन्य पुलिसवालों को बुलवा कर पूरे कार्यालय में टहलाया। टहलाया ? यह औचित्य समझ में नहीं आया। बार कौंसिल का दफ्तर कोई आगरा का ताजमहल तो है नहीं, और पुलिसवाले डोनॉल्ड ट्रम्प जैसी भी हैसियत नहीं रखते। एक पदाधिकारी ने बताया कि देवेंद्र मिश्र नगरहा अगर अपने पत्र में सीओ के बजाय सहायक पुलिस आयुक्त लिख देते तो उससे उनका सामान्य ज्ञान अप-टू-डेट साबित हो जाता।
इसी पत्र में लिखा गया है कि कौंसिल कार्यालय में नवनिर्मित अधिवक्ता भवन के लॉन की सफाई में जुटे मजदूरों के काम में विघ्न डालने का प्रयास भी किया गया। लेकिन यह हरकत किसने की, इसका कोई भी जिक्र इस पत्र में नहीं किया गया है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि काउंसिल भवन में बाहरी अराजकतत्वों ने ऐसी करतूत की हो? लेकिन अगर ऐसा भी हुआ हो तो भी कई घटनाओं को अलग-अलग दर्ज करने के बजाय एकसाथ लिपिबद्ध कर लेने का औचित्य क्या है? ऐसा तो नहीं कि इस पत्र की मंशा इन सारे हादसों का ठीकरा हरिशंकर सिंह पर ही थोप कर उनकी छवि धूमिल करना चाहते हों।
इस मामले पर दोलत्ती संवाददाता ने देवेन्द्र मिश्र नगरहा से संपर्क किया। लेकिन उनका एक नम्बर नहीं उठा, जबकि दूसरा नम्बर इस नश्वर-जगत से कूच कर चुका बता रहा है।

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