नशेड़ी पत्रकारों का कोविड-अस्‍पताल में दंगा

दोलत्ती

 

: अमृत-विचार अखबार की नाक कटवा दी रिपोर्टर और संपादक ने : हंगामे की खबर मालिक को संपादक नहीं, प्रशासन से मिली :

कुमार सौवीर

लखनऊ : झुमका बरेलीवाला, कानों में ऐसा डाला, झुमके ने लेली मेरी जान, हाय रे मैं तेरे कुर्बान।
जी हां, झुमका और सुरमा को लेकर पूरी दुनिया में पचासों बरस से मस्‍त माहौल बना हुआ है, लेकिन विचार और कल्‍पनाओं के धरातल पर बने ऐसे गीतों के बजाय ऐसी शोहरत की ऐसी की तैसी कर डालने वालों की पीढ़ी अब कमर कस कर तैयार हो चुकी है। यह जिम्‍मा सम्‍भाला है यहां के स्‍वनामधन्‍य अखबार, उसके संपादक और पत्रकारों ने, और शुरूआत हुई है कलमकारों की करतूतों ने।
जाहिर है कि अब इसका असर गीतों पर भी पड़ना शुरू होगा। मसलन:- पत्रकार है दारू वाला, अस्‍पताल में हंगामा करने वाला, संपादक ने भी कटवा ली अखबार की नाक, हाय रे मालिक का सत्‍यानास।
बरेली में यहां के कोरोना संक्रमित पत्रकारों ने कोविड-अस्‍पताल में पिछले दिनों जो कुछ हादसा किया है, वह अखबार के संपादक, अखबार के बड़े दिग्‍गज मालिक और जिला प्रशासन की कलई को उतारने के लिए पर्याप्‍त है। सच बात तो यही है कि कोरोना-काल में यह हादसा सिर्फ बरेली ही नहीं, बल्कि पूरे पत्रकारिता जगत के लिए किसी घटिया घटना के तौर पर हमेशा-हमेशा के लिए दर्ज हो जाएगा।
घटनाक्रम कुछ यूं है। यहां निजी क्षेत्र में रुहेलखंड के नाम से यूनिवर्सिटी और मेडिकल कालेज के मालिक हैं डॉ केशव अग्रवाल। करीब एक बरस पहले डॉक्‍टर केशव ने अमृत-विचार के नाम से एक अखबार शुरू किया। संपादक बनाये गये शम्‍भूदयाल बाजपेई। हमीरपुर से आकर बरेली बसे शम्‍भूदयाल ने कोरोना-काल में उन चेतावनियों को दरकिनार कर दिया था कि यहां के पत्रकारों और दीगर कर्मचारियों को वर्क-फ्राम-होम की व्‍यवस्‍था की जाए। बताते हैं कि संपादक ने अपने मुख्‍यालय में न तो सेनेटरी की व्‍यवस्‍था की और न ही किसी अन्‍य जरूरी प्राविधान की। सिवाय इसके दफ्तर के बाहर पानी की टोंटी और साबुन के। सारे दफ्तर में न मास्‍क की जरूरत समझी गयी और न ही सोशल डिस्‍टेंस की। बताते हैं कि कोरोना का भय दिल-दिमाग से भगाया जाना चाहिए। यह भी कि मैं तो 65 बरस का बुड्ढा हूं, मुझे तो कोरोना नहीं हुआ, फिर तुम लोग क्‍यों डरते हो कोरोना से।
सच बात है कि शम्‍भू को कोरोना नहीं हुआ, क्‍योंकि उनका केबिन अलग है। लेकिन शम्‍भू के प्रवचन से कोरोना का भय तो कर्मचारियों के दिल-दिमाग से तो निकल गया, मगर कोरोना आ गया। एक किसी भयावह बज्रपात की तरह कोरोना ने अपने प्रगाढ़ आलिंगन में एकसाथ 7 पत्रकारों को, दो दिन बाद तीन अन्‍य को और उसके बाद फिर दो अन्‍य लोगों को भी चूमना शुरू कर दिया। अखबार के एक सूत्र ने दोलत्‍ती को बताया कि इतना बड़ा हादसा होने के बावजूद संपादक की नींद नहीं टूटी, वे लगातार अराजक व्‍यवहार करते ही रहे। नतीजा यह कि यहां तादात 17 के आसपास हो गयी।
उधर प्रशासन ने यहां के करीब आधा दर्जन संक्रमित पत्रकारों को कोविड-अस्‍पताल भेजा, तो वहां भी हंगामा खड़ा हो गया। अस्‍पताल में भर्ती और अखबार के वरिष्‍ठ रिपोर्टर उज्‍ज्‍वल झा ने फेसबुक लाइव किया कि इस अस्‍पताल में भयावह हालत है। डॉक्‍टर और कर्मचारी आते नहीं हैं, गंदगी का अम्‍बार है, खाना के नाम पर पूड़ी-खस्‍ता भेजा जा रहा है, लेकिन वह भी बेहद अपमानजनक ढंग से जमीन पर ठेल कर। झा समेत अस्‍पताल में भर्ती पत्रकारों द्वारा लगातार दो दिनों तक यही हंगामा चलता रहा। चूंकि यह मामला पत्रकारों का था, इसलिए प्रशासन इस मामले को दबाये ही रखा। लेकिन अखबार के संपादक को बता दिया गया कि उनके यहां क्‍या-क्‍या चल रहा है चाहे वह अस्‍पताल का मामला हो या फिर अखबार में खुल चुकी कोरोना-फैक्‍ट्री।
बताते हैं कि आजिज आकर प्रशासन ने इन पत्रकारों की वीडियोग्राफी करा ली। इसके बाद ही यह पता चला कि यह पत्रकार अस्‍पतालवालों पर दबाव डाल रहे थे कि पत्रकारों को दारू और मुर्गा समेत मनचाहा भोजन मुहैया कराया जाए। अस्‍पतालवालों ने जब ऐसी व्‍यवस्‍था कर पाने में असमर्थता जतायी, तो पत्रकारों ने मुर्गा और हीटर मंगवा कर अस्‍पताल के वार्ड में उसे पकाया और बाहर से शराब मंगवा कर पीकर टल्‍ली होना शुरू कर दिया। दोलत्‍ती संवाददाता को कई पत्रकारों और स्‍थानीय लोगों ने भी बताया कि उज्‍ज्‍वल झा और उसके साथ शराब-प्रिय लोग हैं, जिनका शगल कभी भी टल्‍ली हो जाना सामान्‍य बात है। कुछ भी हो, इन पत्रकारों की इस हरकत से अस्‍पताल की व्‍यवस्‍था ही चकनाचूर और छिन्‍न-भिन्‍न होने लगी।
बताते हैं कि जिलाधिकारी ने संपादक से कहा कि कोविड अस्‍पताल में भर्ती वे अपने पत्रकारों को अपने अखबार के निजी मेडिकल कालेज में ले जा कर भर्ती करायें, क्‍योंकि तब वहां मालिक के सामने वे पत्रकार चूं भी नहीं कर पायेंगे। लेकिन प्रशासन के एक बड़े अधिकारी ने दोलत्‍ती को बताया कि संपादक शम्‍भूदयाल बाजपेई को यह असलियत अपने मालिक डॉ केशव अग्रवाल से बयान करने की हिम्‍मत ही नहीं पड़ी। हालांकि बताते हैं कि शम्‍भूदयाल ने प्रशासन से कह दिया कि उन्‍होंने इस बारे में कई बार अखबार के मालिक को असलियत बयान कर दी है। लेकिन सूत्र बताते हैं कि शम्‍भूदयाल बाजपेई लगातार सफेद झूठ ही बोलते रहे। अस्‍पताल में दिनरात लगातार यही हंगामा चल रहा था, शम्‍भूदयाल को यह खबर लगातार भेजी जा रही थी, लेकिन कोई फर्क नहीं पडा।
बेहाल होकर डीएम ने अखबार के मालिक और रुहेलखंड मेडिकल कालेज के मालिक डॉ केशव अग्रवाल को फोन करके इस असलियत से अवगत करा दिया। एक विश्‍वस्‍त सूत्र ने दोलत्‍ती संवाददाता को बताया कि इस बातचीत के दौरान डॉ केशव अग्रवाल ने साफ कहा कि उन्‍हें यह जानकारी नहीं मिल सकी है। हैरत की बात है, और जाहिर है कि शम्‍भूदयाल बाजपेई न केवल झूठ बोल रहे थे, बल्कि अपने मालिक की आंखों में धूल भी झोंक रहे थे। बहरहाल, इस शिकायत के बाद इन पत्रकारों को सरकारी कोविड-अस्‍पताल के बजाय डॉ केशव अग्रवाल के मेडिकल कालेज तक लाद कर पहुंचाया गया।
लेकिन तब तक बरेली में पत्रकारिता, यह अखबार और उसके मालिक की नाक तो कट ही गयी।

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