बारिश में पकौडि़यां, द्रौपदी तुम बर्तन ठीक से मांजा करो

दोलत्ती

: विमर्श यह कि नहाने-धोने में कौन वाली क्रिया पहले और क्‍यों : कृष्‍ण की बांसुरी के सातों स्‍वर-द्वार बनाम दुर्वासा का मुख्‍य-द्वार : कोरोना के बहाने मोदी-योगी ने पूरे देश को पुलिस से सरेआम पिटवाया : आधी सड़क चांपे लोगों को पकड़ कर सैकड़ों जूते मारिये, हरामखोरों ने सड़क बर्बाद कर डाली :

कुमार सौवीर

लखनऊ : सुयोधन के षड्यंत्र के चलते महाभारत में दुर्वासा अपने भूखे दस हजार शिष्यों के साथ द्रोपदी के घर जा धमके। बोले कि स्नान करने जा रहा हूँ, उसके बाद लौट कर भोजन करूंगा।

द्रोपदी बेहाल, परेशान, बौखलायी। वजह यह कि दुर्वासा-टीम के ठीक पहले ही द्रोपदी ने पांडवों को अपने अक्षय-पात्र से पकौड़ी और कॉफी पिलाई थी। भरपेट। सारे पांडव भी छक कर आखेट करने निकल पड़े। हालांकि उस आखेट का नतीजा क्‍या निकला, इसका कोई भी तस्‍करा महाभारत में नहीं दर्ज हो पाया है। ठीक उसी तरह, जैसे आजकल के पत्रकार। खबर का कचूमर निकालते हैं यह आज के हरामखोर।

अरे हां तो, तब बारिश का मौसम था यार, चाय-पकौड़ी तो अनुष्ठान के तहत होता है ऐसे मौसम में। लेकिन द्रोपदी ने चाय-पकौड़ी के बाद अक्षय-पात्र को धो-मांज कर रख दिया था। अब कैसे खिलाया जाए दुर्वासा-मंडली को? बौखलायी द्रोपदी रो पड़ी। और सुबकते हुए उसने आर्त्त-स्वर में कृष्ण को पुकारा।

कृष्ण इसी चक्कर में रहते थे, कि द्रोपदी किसी संकट में फंसे और रोते हुए पुकारे, तो कृष्ण बांसुरी लेकर प्रकट हो जाएं। मामला समाधान के लिए। खैर, कृष्ण आये, मामला समझा। देखा, कि द्रोपदी ने बर्तन ठीक से नहीं धोया था, और नतीजा यह कि अक्षय-पात्र पर पकौड़ी का एक टुकड़ा चिपका था। कृष्ण ने लपक कर उस टुकड़े को खा लिया। खाते ही कृष्ण तृप्त हो गए।

लेकिन यह होते ही शिष्यों समेत दुर्वासा का पेट भी भर गया। कृष्‍ण ने अपनी बांसुरी के सातों स्‍वर-द्वारों को दुर्वासा के एकमात्र द्वार में समाहित कर दिया। माहौल शांत हो गया। वे सब भाग निकले।

तो भइया, यह तो सिर्फ एक कहानी ही है। भगवत-लीला से जनमानस को सराबोर करने के तानाबाना की पोलिटिकल रणनीति। ताकि साबित करते रहा जाए कि सब कुछ भगवान ही करता है, जबकि मानव निहायत निरुपाय, असमर्थ, अशक्त, मजलूम, महकूम और मुर्गों-माही की मानिंद है।

लेकिन, ऐसी कहानियों से ही कुछ कल्चर उगते हैं, लोक-संस्कृति को मजबूत करने के लिए। इसके अलावा कुछ जबरदस्त सबक भी मिलते हैं ऐसी कहानियों से।मसलन, बारिश के मौसम में कामधाम छोड़कर सड़क पर आकर झूमती बारिश का आनंद लेना चाहिए। साथ ही अनिवार्य अनुष्ठान-कर्मकांड के तहत चाय-पकौड़ी की जोरदार फुहारें निकलनी चाहिए। जो लोग अपना आनंद बोतल से निकालना चाहते हों, उन्हें घर के कोने या स्कूटर की डिग्गी में व्यवस्था पहले से ही कर लेनी चाहिए। और फिर पूरे शालीनता के साथ भोर से ही वर्षा का मजा लेना चाहिए। वरना मोहल्ले में हंगामा खड़ा हो सकता है।

और जबरदस्त सबक यह कि गृह-स्वामिनी को अपनी रसोई के बर्तन टोटल चित्त धर कर ही मांजना-धोना चाहिए। यह नहीं कि बर्तन पर जूठन चिपकी ही रह जाये, और फिर रोना-धोना स्टार्ट हो, फिर मोहल्ले कृष्ण-कन्हैया टाइप लौंडे-लफ़ाड़ियों की पौ-बारह हो जाये। नहाने-धोने की तरह कन्फ्यूजन नहीं होना चाहिए कि बाथरूम में पहले नहाना चाहिए अथवा धोना। या फिर सवाल यही धड़ाम पड़ा रहे कि जब नहाना था तो पहले ही धो लेते।

आज भोर से ही लखनऊ में बारिश चल रही है।

काश ! मोदी और योगी की नूराकुश्ती इसी चलती रहे। कोरोना की दर्दनाक विभीषिका के दौरान उमड़ी उस नई पोलिटिकल नौटंकी ने लोगों का माइंड डायवर्ट तो किया ही है। वरना डेढ़ साल तक तो आम आदमी सरेआम पुलिस की गलियां-डंडे ही खाता रहा है। असहाय जन-मानस के प्रति मोदी-योगी का यह अप्रतिम योगदान सदा-सर्वदा याद रखा जाएगा।

खैर, यह बताइये कि आज बारिश के मौसम में आपने पकौड़ी खाई या नहीं? अगर नहीं खायी है, तो जाइये इन या ऐसी सड़कों की नाली तक पर कब्‍जा करे बैठे नव-धनाढ्यों के घर जाकर उनको सौ जूते मारिये, और इस दौरान अगर गिनती भूल जाएं, तो फिर से गिनना शुरू कर दीजिए। इन हरामखोरों ने अपनी अपनी करतूतों ने गैर-कानूनी तरीके से सड़क का आधा हिस्‍सा तक हड़प रखा है। नाली ही ढंक गयी हैं, तो बारिश का पानी कैसे निकलेगा। जल-जमाव ही होगा, तो चंद दिनों में ही कोलतार की सड़क खड़ंजा में तब्‍दील हो जाएगी। और इसका खामियाजा भुगतेंगे हम और आप। तो, अगर आपने ऐसी करतूत कर रखी है, तो उसे हटा दीजिए और फिर बाकी को जुतियाने में जुट जाइये।


( प्रॉपर्टी डीलिंग करने वाले अमर सिंह यादव ने पकौडि़यों की याद दिला दी। याद दिलाने के लिए शुक्रिया अमर जी। अमर सिंह अभी जिन्‍दा हैं, बस उनका नाम ही अमर सिंह है। बाकी बहुत स्‍नेही हैं अमर सिंह, सरल भी। हां, प्रॉपर्टी डीलरों के बारे में मार्केट में चर्चाएं बेहिसाब पसरी हैं, मैं भी काफी कुछ सुन चुका हूं, लेकिन फिलहाल अमर सिंह जिन्‍दाबाद, जिन्‍दाबाद, जिन्‍दाबाद। )

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