सफलता तो छलिया है। आज मेरी, कल किसी और की

दोलत्ती

: मशहूर फिल्‍म अभिनेत्री ने विख्‍यात पत्रकार त्रिलोक दीप को बताया : फिल्‍म इंडस्‍टी में हरेक की अपनी जगह है, कोई किसी की जगह नहीं लेता : मेरा साया, आरज़ू, मेरे महबूब, वक़्त, असली नकली, वह कौन थी जैसी फिल्‍में यादगार हैं :
त्रिलोक दीप
नई दिल्‍ली : एक दिन आकस्मिक किसी का फोन आया कि एक बजे दोपहर को ओबेरॉय होटल में आपको साधना और उनके पति आरके नैयर ने लंच पर बुलाया है। मैंने कहा कि फ़िल्म मेरी बीट नहीं है, मुझे क्यों बुलाया गया है। उस व्यक्ति का जवाब था, यह तो मुझे पता नहीं लेकिन मुझे आपका फोन नंबर और नाम दिया गया है। उन दिनों मैं ‘दिनमान’ में काम करता था। अपने संपादक रघुवीर सहाय के कक्ष में जाकर हक़ीक़ बयां की। उन्होंने कहा हो आईये। फील्ड में रहने वालों को ऐसे अचानक न्यौते मिलते रहते हैं। रघुवीर सहाय ‘नवभारत टाइम्स ‘ में रहते हुए ऐसे और इस तरह के निमंत्रणों से परिचित थे। उन्होंने एक दो टिप्स भी दे दिये। मुस्करा कर कहा, हो आईये। इस संदर्भ में वात्स्यायन जी की याद आनी भी स्वाभाविक थी। वह अक्सर कहा करते थे कोई अपरिहार्य नहीं होता, इस बात को गांठ बांध लें। हर पत्रकार को उसके प्रोफेशन से जुड़े हर विषय की इतनी बुनियादी जानकारी तो होनी ही चाहिए कि अचानक कहीं जाना पड़ जाए तो वह अपने आपको वहां के लिए अनफिट महसूस न करे।
रघुवीर सहाय से इज़ाज़त लेकर समय पर ओबेरॉय होटल पहुंच गया। लॉबी से ही एक व्यक्ति मेज़बान से मिलवाने के लिए ऊपर ले गया। पता चला थोड़े लोगों को ही आमंत्रित किया गया है और सभी फ़िल्म समीक्षक नहीं हैं। आरके नैयर ने हाथ मिलाकर अपनी पत्नी और उस दौर की सबसे मशहूर अभिनेत्री साधना से परिचय कराया। उन्होंने मेरा इस तरह से विस्तृत परिचय दिया मानो उन्हें किसी ने मेरे और मेरे काम के बारे में अच्छी तरह से ब्रीफ कर दिया हो। आरके नैयर तो मुझसे पंजाबी में बात कर रहे थे, सिंधी होने के नाते साधना भी कुछ कुछ समझ रही थीं।
अभी लोगों का आना शुरू हुआ ही था, मौका देखकर मैंने साधना जी से अलग से बातें करनी शुरू कर दीं। साधना साठ और सत्तर दशक की सब से लोकप्रिय और सर्वाधिक पारिश्रमिक हासिल करने वाली अभिनेत्री थीं। उनकी फिल्में जैसे मेरा साया, आरज़ू, मेरे महबूब, वक़्त, असली नकली, वह कौन थी आदि बहुत चर्चित थीं। उनसे पूछा कि विवाहित अभिनेत्रियों को काम मिलने में क्या कोई दिक्कत पेश आती है, उन्होंने हंसकर कहा, मुझे तो कभी नहीं आयी। मेरे पति फ़िल्म निर्माता हैं और फ़िल्म उद्योग के कायदे कानूनों से परिचित हैं। हम लोग फिल्मों में अभिनय करती हैं, यह हमारी रोज़ी रोटी है। इतनी सफलता को आप कैसे लेती हैं, हंसकर बोली, ‘यह बड़ी छलिया होती है, इसे उसी रूप में मैं लेती हूं, आज यह मेरे पास है, कल किसी औऱ के पास होगी।’ आपकी भूमिका तय करने में आपके पति का क्या रोल रहता है, जवाब मिला,’ नहीं जैसा ,मैं उन्हें सूचित कर देती हूं। वह खुले दिमाग के व्यक्ति हैं, इसलिए उन्हें कोई किसी किस्म की दिक्कत नहीं होती।’आपकी प्रतियोगिता किस अभिनेत्री से आप पाती हैं, ‘देखिये हरेक की इंडस्ट्री में अपनी जगह है, कोई किसी की जगह नहीं लेता। फ़िल्म निर्माता अपनी फिल्म की सफलता को ध्यान में रखकर ही किसी अभिनेता या अभिनेत्री को साइन करता है। ‘ बबिता आपकी रिश्ते में क्या लगती हैं,साधना हंसकर बोलीं, मेरी चचेरी बहन है, उससे मेरी कोई प्रतियोगिता नहीं है।
प्रश्नों का दौर चल ही रहा था कि आरके नैयर आकर बोले,’बस करो दीप साहब, होर वी लोकी मिलन दी इंतज़ार कर रहे ने। ‘ साधना जी और मेहमानों से मिलने में व्यस्त हो गयीं। लंच करने के बाद साधना जी और आरके नैयर का धन्यवाद कर मैं वहां से निकल गया। अगले दिन रघुवीर सहाय को साधना से बातचीत का निचोड़ बताया और एक छोटा सा आइटम लिखकर उनके विचारार्थ सौंप आया। उसके छपने के बाद ‘दिनमान’ की एक प्रति आरके नैयर को भेज दी। इसके बाद भी उनसे संपर्क जारी रहा। 1995 में आरके नैयर का निधन हो गया और साधना का 2015 में।

प्रख्‍यात पत्रकार हैं त्रिलोक दीप। आज उन्‍होंने अपने संस्‍करणों में उनके साथ दिल्‍ली में फिल्‍म अभिनेत्री साधना से हुई भेंट का जिक्र किया है।
सन-2015 को साधना की मृत्‍यु कैंसर से हो गयी थी। उसके अगले ही दिन मैंने साधना जी पर एक लेख लिखा था। यह लेख लखनऊ के दैनिक डेली न्‍यूज एक्टिविस्‍ट और उसके बाद जनसंदेश टाइम्‍स और दैनिक तरुणमित्र में भी प्रकाशित हुआ।
आज त्रिलोक दीप के संस्‍मरण के साथ मैं साधना जी पर अपना लिखा वह अनुभव भी प्रकाशित कर रहा हूं।
अगर आप कुमार सौवीर द्वारा साधना जी के बारे में लिखा गया अनुभव संबंधी लेख पढ़ना चाहें, तो कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

साधना मेरी नहीं, पापा के सपनों की रानियों में से थीं

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