विकास दुबे की मुखबिरी की, पुलिस ने नाम-पता बेपर्दा कर डाला

दोलत्ती

: मदद के नाम पर बदमाशों की गोलियां खाने का शौक है, तो शौक से कीजिए पुलिस की मुखिबिरी : जनता से मदद के लिए पुलिस गिड़गिड़ाती रहती है :

कुमार सौवीर एवं सुनील यादव

लखनऊ : सवाल यह है कि कोई किसी बदमाश की मौजूदगी की खबर पुलिस को क्‍यों दे। वजह यह पुलिस का रवैया ही दूसरों के प्रति निहायत बदतीजाना होता है, वे आम आदमी को अपने बराबर की हैसियत तक देने को तैयार ही नहीं होते हैं, और जनता को हमेशा दोयम यानी दर्जे के दास-चाकर की तरह पेश आते हैं। ऐसी हालत में पुलिस की मदद आम आदमी क्‍यों करे। वह भी तब, जब पुलिस की मदद करने का मतलब अपनी जान जोखिम में डालना हो जाए। कभी जानबूझ कर, तो अक्‍सर अपनी बेवकूफियों के चलते पुलिसवाले उन सारी सूचनाओं को भी जगजाहिर कर देते हैं, जिससे सूचना देने वाले की जान ही जोखिम में पड़ जाए।

आठ पुलिस वालों को मौत के घाट उतारने वाला कानपुर का दुर्दान्‍त हत्‍यारा और पिछले एक हफ्ते से रहस्‍यमय ढंग से फरार विवेक दुबे वाले मामले में तो यही हालत है। यह हालत है उसे खोजने के लिए देश के कई राज्‍यों की पुलिस लगायी गयी है। यूपी पुलिस ने भी डेढ़ हजार से ज्‍यादा पुलिसवालों को उसे खोजने के लिए लगा दिये हैं। कई राज्‍यों की पुलिस ने भी विवेक दुबे की तलाशी में कमर कस ली है। यूपी पुलिस ने तो अपनी हार मानते हुए विवेक दुबे को खोजने या उसे खोजने में मदद करने वाले को ढाई लाख रुपयों के ईनाम की घोषणा कर दी है। और कई राज्‍यों में उसकी फोटो लगे पोस्‍टर भी चिपका दिये गये हैं। सभी टोल प्‍लाजा में भी पोस्‍टर लगाये गये हैं।

कहने की जरूरत नहीं कि पोस्‍टर लगाने और वांछित को पकड़ने की मदद करने वाली कोशिश करने वालों को भारी-भरकम नकद ईनाम देने की घोषणा का खास मकसद यह होता है कि अब उसे खोजने में आम आदमी भी सामने आये। पुलिस का दावा होता है कि वांछित के बारे में खबर देने वाले की पहचान गुप्‍त ही रखी जाएगी। यह इसलिए ताकि कोई भी व्‍यक्ति उसे खोजने में जुट जाए। और इस प्रयास में वह उसे कोई हिचक न हो, किसी भी तरह का डर-भय भी न हो, कि वांछित उस तक पहुंच कर उसे कोई नुकसान पहुंचा सकेगा।

लेकिन इस नियम की चिंदिया उड़ा दी नोएडा पुलिस ने। एक व्‍यक्ति ने विवेक दुबे की कदकाठी और शक्‍ल-सूरत को भांप कर महसूस किया था कि उसके सामने गाड़ी पर बैठा वाकई विवेक दुबे ही है। इस व्‍यक्ति ने गैंगस्टर विकास दुबे को नोएडा में देखे जाने की सूचना आठ जुलाई को ही दे दी थी। पुलिस को मिली जानकारी के अनुसार फलाने जिला के ढमकाने मोहल्‍ले का मूल निवासी युवक नोएडा के फलां इलाके में रह कर ढमकाने स्‍थान पर स्थित एक निजी कंपनी में जॉब करता है। उस व्‍यक्ति ने पुलिस को बताया कि ग्रेनो वेस्ट के एक मूर्ति चौराहे से वो अपने दोस्त के साथ फलाने इलाके में जा रहा था, तभी विकास दुबे जैसी शक्‍ल-सूरत और कदकाठी वाला उसकी टैक्सी में बैठ गया। उसके हाथ में बैग था और उसने शराब पी रखी थी। सुनील से उसने फोन मांगा लेकिन उसने मना कर दिया। फिर सेक्टर-ढमकाना स्थित चौक पर वह ऑटो से उतर गया। उसके बाद उसने पुलिस को सूचना दी।

विकास दुबे के नोएडा आने का इनपुट उस युवक से मिलने के बाद पुलिस ने अपनी चौकसी बढ़ाई दी। फिल्म सिटी के जितने भी एंट्री पॉइंट हैं वहां पुलिस चेकिंग कर रही है। जितनी भी गाड़ियां फिल्म सिटी में दाखिल हो रही है उनकी तलाशी ली जा रही है। बताया जा रहा है कि पुलिस को इनपुट मिला है कि आरोपी विकास दुबे नोएडा में हो सकता है।

लेकिन इसी बीच पुलिस ने कुछ पत्रकारों को उस युवक की पहचान जाहिर कर दी। पुलिस तो मूर्ख और जाहिल थी ही, लेकिन वे पत्रकार भी इतने मूर्ख निकले कि उन्‍होंने अपने संस्‍थान में उस युवक का नाम पता भी छाप दिया। इसमें उस युवक का नाम, पता औरउसका मूल पता भी प्रकाशित कर दिया।

अयोध्‍या में गोसाईंगंज के रहने वाले प्रखर पत्रकार और जिज्ञासु सुनील यादव पुलिस की कार्यशैली और पत्रकारिता में कलंक बनती जा रही खबरों पर भरसक कोशिशें करते रहते हैं। विकास दुबे को नोएडा में देखे जाने की खबर को उन्‍होंने तत्‍काल पुलिस को पहुंचा दी थी। उस पर पुलिस ने उनसे लम्‍बी चर्चा और पड़ताल भी की। लेकिन अचानक यह गोपनीय खबर पुलिस के मार्फत जिस तरह मीडिया तक पहुंची और उसे मीडिया ने भी उस मुखबिर की गोपनीयता को भंग कर खबर को उसका नाम और पता भी प्रकाशित कर डाला है। यह निंदनीय कृत्‍य है।

पुलिस की ऐसी हरकत के बाद भविष्‍य में कौन ऐसा व्‍यक्ति होगा, जो पुलिस की अपील पर अपनी जान जोखिम देने का साहस दिखा पायेगा।

 

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