और तुम औरत को केवल उसके स्‍तन और जांघों से आंकते हो। है न ?

बिटिया खबर

: देह-यष्टि में ऊंचाई और गहराई से भी योजनों-कोसों आगे होती है महिला की आन्‍तरिक सुन्‍दरता : महिला को देखते ही सबसे पहले उसे सूक्ष्‍म एक्‍स-रे की तरह छानबीन करना शुरू कर देता है पुरूष : बहुत जरूरी है सोच में बदलाव लाना, लेकिन मंजिल अभी बहुत दूर है :

डॉ राज दुलारी

बोकारो : स्त्री की सुंदरता का मापदंड क्या है ? उसके चेहरे और शरीर की खूबसूरती या उसका पूरा शरीर या फ़िर शरीर के कुछ खास हिस्से ?

बात कुछ अटपटी सी है लेकिन है यही सच. ज्यादातर पुरुषों की बातचीत स्त्री की छाती और कमर से शुरू होने के बाद ही कहीँ और केंद्रित होती है. उनके हिसाब से स्त्री की सुंदरता उसके शरीर के ऊपरी और निचले हिस्से के दो-ढाई इंच में सीमित होती है. कितने ही लोगों से सुना कि “औरत जात का शरीर बहुत खूबसूरत होता है. चाहे वह काली हो,गोरी हो, मोटी हो, पतली हो, सिर्फ़ उसमें वह चीज़ होनी चाहिये”.इस वाक्य को इस तरह के लोग अलग-2 तरह से बोलते दिखाई देते हैं. अब “वह चीज़” क्या है हम सभी जानते हैं. कई लोग ये भी कहते हैं कि “हमारा ध्यान सबसे पहले उसी हिस्से पर जाता है जिसे ये अपने दुपट्टे या आंचल से ढंकती हैं”.

खैर ये तो हो गयी पुरुषों की बातें,अब ज़रा महिलाओं की भी चर्चा कर ली जाये.

महिलाएँ सर्वप्रथम पुरुषों के चेहरे और शरीर सौष्ठवता की सुंदरता की चर्चा करती हैं भले उनकी बातचीत का तरीका और शब्द प्रयोग जो भी हो. मैंने आजतक किसी महिला को नही देखा जो पहली बार किसी मर्द को देखने पर ये कहती हो कि “अगर ये अपनी पैंट या धोती उतारे तो क्या बवाल लगेगा” या फ़िर ये कहे कि “उसकी वो चीज़ क्या गजब की होगी”.

स्त्री और पुरुष दोनों की मानसिकताओँ और मापदंडों में ज़मीन-आसमान का फ़र्क होताहै. ये फ़र्क ही कहीँ न कहीँ हमारे यहाँ की लिंगभेदी विषमताओं के कारण हैं और स्त्रियों के प्रति होने वाले अपराधों की एक बड़ी वजह भी. यदि सोच की गंदगी कम हो तो कुछ बदलाव हो लेकिन यहाँ तो पूरे कपडों में भी शरीर का एक्स-रे होता रहता है. ये सब हमारी परवरिश का नतीजा है. हम अपने बच्चों को छुटपन से स्त्री और पुरुष बनाकर पालते हैं. शुरू से उनके बीच अंतर रखते हैं,अंतर दर्शाते हैं. एक बढ़ती उम्र की बच्ची जो सिर से लेकर पाँव तक कपड़े से ढँक़ी होती है उसे हम दुपट्टा ओढ़ने को कहकर ये जताते हैं कि तुम्हारे ढंके उभारों को अलग से इस कपड़े की ज़रूरत है. उसकी सहजता पर असहजता का अतिरिक्त भार डालते हैं. लेकिन क्या फायदा होताहै जब कपडों से ढंके होने के बावजूद उसके स्तनों और गुप्तांगों का एक्स-रे होता रहता हो.

इस समाज को बहुत जल्दी अपनी सोच विस्तृत करनी होगी, तभी आने वाली पीढियों की सोच में कुछ बदलाव होगा. मगर अभी तो जो हालात बदस्तूर जारी हैं उनमें निकट भविष्य में जल्दी परिवर्तन की गुंजाइश भी नहीँ दीखती ।

(बोकारो में शिक्षा-कर्म से जुड़ी डॉ राज दुलारी सोशल व वेब दुनिया में बहुत पसन्‍द की जाती हैं। उनकी शोहरत उनकी प्रगतिकामी लेखन से है।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *