अब गायन नहीं, एकाकी उपासना में जुटी हैं अनुराधा पौडवाल

मेरा कोना

: काठमाण्‍डौ के पशुपतिनाथ मंदिर में हो गयी अनुराधा से भेंट : बोलीं कि यहां गीत गाने नहीं, उपासना के लिए आयी हूं : अब यह उम्र का तकाजा है, या फिर गायन की रेस में पिछड़ने का दर्द, बात-बात पर झुंझला जाती हैं पौडवाल :

कुमार सौवीर

काठमाण्‍डौ : यह पांच मार्च की दोपहर का कोई तीन बजा हुआ होगा। विश्‍वविख्‍यात पशुनाथ में दर्शन करने वालों की तादात बढ़ने को ही है। हालांकि आज भीड़ कुछ कम है। इसकी कोई भी सटीक वजह कोई नहीं बता पा रहा है। मगर बताने वाले बता ही देते हैं कि चार बजे के बाद से यहां खासी भीड़ जुट जाती है।
मैं शिव को खोजने और देखने में जुट जाता हूं। सामने नंदी दिख गया। सभी उसी ओर देख रहे हैं, लेकिन नंदी केवल शिव की ओर देख रहा है। बिना किसी हिल-डुल के। समाधि अवस्‍था में। लोग उसे छू रहे हैं, लेकिन कोई भी धक्‍का, स्‍पर्श, या चिल्‍ल-पों नंदी की समाधि को भंग नहीं कर पा रहा है। उसमें कोई भी विकार नहीं। निर्विकार है नंदी। उसे केवल शिव से बात करनी है, बाकी भक्‍त लोगों की तरह नहीं, कि शिव के पहले और शिव के सामने और शिव के बाद भी शिव के अलावा सारी गतिविधियां निपटा लेते हैं।
करीब छह फीट लम्‍बा और भीमकाय नन्‍दी। उसके विशालकाय आकार-प्रकार वाली देह-यष्टि में खुद शिव ही लुप्‍त-प्राय होते जा रहे हैं। इसमें कोई खास बात नहीं। भक्‍त से ही भगवान की उत्‍पत्ति है, यह सभी जानते हैं। भक्त की भक्ति के सामने भगवान ही बेहद बौने हो जाते हैं। काठमाण्‍डौ में भी अगर पशुपति नाथ दूसरे भक्‍तों की नजर से कहीं छिप गये, तो यह हर्ष का विषय है, खेद या विषाद का नहीं।
लेकिन अनुराधा पौडवाल शायद ऐसे नंदियों में शामिल नहीं है। वे भी सहज भक्‍तों में शामिल हैं। खुद को शिव की उपासना करने के बजाय अपने चिंटू-पिंटुओं की भीड़ में शरीक हो गयी हैं। उनके दोस्‍त-पुजारी जहां भी कहते हैं, हाथ पकड़ कर या इशारे से उपासनी की लौकिक प्रक्रिया सम्‍पन्‍न करने को कहते हैं, अनुराधा यंत्रवत चलती-फिरती दिख जाती हैं। लेकिन उनके चेहरे पर झुंझलाहट भी खूब है। वे शिव के बजाय, अपने आसपास जमे लोगों पर झुंझलाती हैं, झिड़क पड़ती हैं। हालांकि कभी-कभी अपने चेहरे पर जबरियन मुस्‍कुराहट की सूखी सड़क खोदने की कोशिश कर देती हैं, लेकिन उसके कुछ ही देर बाद वे फिर लौकिक हो जाती हैं।
अब यह उनकी उम्र का तकाजा है, या फिर लम्‍बे से बेरोजगारी का दंश। कुल 63 साल की उम्र हासिल कर चुकीं अनुराधा पौडवाल अब गायन के राजमार्ग से कई कोस-योजन दूर पिछड़ कर किसी बियावान पगडंडी में भटक रही हैं करीब दस बरस से। डाई ने सिर के बालों को काला कर तो दिया है, लेकिन मांग और कनपटी के आसपास बर्फ-बारी स्‍पष्‍ट दिख जाती है।
मैंने पूछा:- अचानक पशुपति नाथ आने का मकसद
पौडवाल बोली:- मैं तो अक्‍सर ही यहां आ जाती हूं। सकून मिल जाता है यहां
पिछली बार कब आयी थीं आप
एकदम से तो कुछ याद नहीं आ रहा है, लेकिन हां काफी वक्‍त तो हो ही गया।
लोग आपकी आवाज कई दशकों से सुन पा रहे हैं
अब फिर सक्रिय होने जा रही हूं
लेकिन तब तक कहां रहीं आप। बिलकुल सन्‍नाटा ही रहा

अनुराधा को यह सवाल परेशान कर देता है। वे खामोश हो जाती हैं। मगर मेरे सवाल का जवाब देने के बजाय वे अपने आसपास खड़े लोगों पर हल्‍की झाड़ पिला देती हैं और उसी चक्‍कर में मेरे सवालों से बच कर अलग खिसक जाती हैं। मेरे पास भी उनसे पूछने को कुछ भी नहीं बचा है। राह ही अलग-अलग हो है। मैं अपनी डगर पर निकल पड़ता हूं।

अुनुराधा पौडवाल अपने प्रशंसकों-पुजारियों में व्‍यस्‍त हो जाती हैं, उन्‍हें अभी भगवान को भोग भी लगाना है। कई लोगोें से बातचीत भी करनी होगी उन्‍हें। लेकिन चूंकि मैं केवल शिव-संधान में ही जुटा हूं, इसलिए शिव को ही खोजने निकल पड़ा। एक शिव का स्‍वांग रचाये एक नेपाली विकलांग बाबा से मुलाकात हो गयी। वह भी मस्‍त बाबा निकला। दिल खुश हो गया। लेकिन ताज्‍जुब, कि इस शिव बाबा ने चलते-चलते धन मांग लिया। अब मैं इस शिव का आग्रह कैसे टाल पाता, सो जेब में जितना भी था, इस शिव के फैले हाथों में थमा दिया। और फिर उस ध्‍यानस्‍थ शिव के पास पहुंच कर खुद को ही ध्‍यानस्‍थ कर दिया।

मगर लौटने से पहले शिव को करीब 10 मिनट तक बाकायदा आंखों में आंखें डालकर बतियाता हूं। चलते-चलते नंदी को उत्‍साहित भी कर देता हूं कि:- बेटा, चंपे रहना। लक्ष्‍य प्रतीक्षा की घडि़यां बस खात्‍मे को ही है। नेपाल की निहायत बेईमान राजनीति के कर्णधार और हद तक की मूर्ख जनता की करतूतें इन दोनों वर्गों को विष-पान करा ही देंगे। फिर तुम और शिव एककार ही होते जाओगे।

मैं आभारी हूं काठमांडौ की रहने वाली मंजू शर्मा मधुबरी का, उनके पति विनय राय का, डिजिटल बाबा राम शंकर का, जनार्दन यादव का, और भैरहवा के विनोद यादव का, जिन्‍होंने मुझे नेपाल को समझने में मदद की।

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