अखबारों की कारस्‍तानी: किसी ने ट्रेन, किसी ने दरगाह, तो किसी ने सीधे इंडिया ही उड़ा डाला

सैड सांग

: निहायत गैर-जिम्‍मेदार पत्रकारिता का स्‍वाद चखना हो तो यूपी के अखबारों का नाड़ा खींचिये : बे-पर के उल्‍लू उड़ाने में महारत है जागरण, हिन्‍दुस्‍तान और अमर उजाला में : हैरत यह कि यही अखबार खुद को सर्वाधिक विश्‍वसनीय होने का दम भरते हैं :

कुमार सौवीर

लखनऊ : मध्‍य प्रदेश और यूपी में पिछले दो दिनों तक आतंकवाद ही सुर्खियों में रहा है। कहीं धांय-धांय, तो कहीं उसका खण्‍डन। इन राज्‍यों की पुलिस ने यहां हुई ऐसी घटनाओं को आईएसआईएस से जोड़ कर बता दिया था। मगर केंद्र सरकार ने ऐसे बयानों पर सख्‍त ऐतराज करते हुए जैसे ही इन सरकारों पर चेतावनी जारी की, इन राज्‍यों ने अपनी जुबान तराश डालीं।

लेकिन इस सरकारी कवायद का तनिक भी असर हिन्‍दी पत्रकारों पर नहीं पड़ा है। आप यूपी के अखबारों के पन्‍ने पलटिये, आपको साफ पता चल जाएगा कि इन अखबारों के पत्रकारों के अहमक पत्रकारों के मन में जो भी आया है, उसने अखबार में उगल दिया। यह सारे के सारे अखबार केवल साम्‍प्रदायिक और गैरजिम्‍मेदार पत्रकारिता के मजबूत पहरूआ बन कर सामने आये हैं।

कम से कम लखनऊ के ठाकुरगंज इलाके में बसी हाजी कालोनी के एक मकान में आतंकी के तौर पर पहचाने गये सैफुल्‍लाह के साथ पुलिस की हुई मुठभेड़ में अखबारों में छपी खबरें निहायत शर्मनाक और गैर-जिम्‍मेदार ही कही जाएंगी। इन अखबारों अपनी खबरों में जो कुछ छापा है, वह बेहद आपराधिक लापरवाही, अज्ञानता और इस बेहद संवेदनशील हादसे को केवल माखौल बनाने की साजिश की है। बिना यह सोचे-समझे कि इनकी ऐसी हरकतों का क्‍या-क्‍या हश्र-अंजाम हो सकता है।
इन अखबारों के पन्‍नों की इबारतों पर नजर डालिये। हिन्‍दुस्‍तान अखबार ने ऐलान कर दिया है कि सैफुल्‍लाह ट्रेनें उड़ा देना चाहता था।

उधर दैनिक जागरण तो सीधे आईएसआईएस के विशेष प्रवक्‍ता के विशेष बयान को छापा है कि:- अब हम भारत में

इतना ही नहीं, अमर उजाला को न जाने कैसे पता चल गया कि सैफुल्‍लाह और उसके साथी लोग विश्‍वविख्‍यात देवां शरीफ की दरगाह  और भूल-भुलैया वाली इमामबाड़ा समेत राजधानी की कई प्रमुख इमारतों को दहला देने की साजिश कर रहे थे। हैरत की बात है कि अमर उजाला ने यह खुलासा नहीं किया है कि उसे यह सारी संवेदनशील खबरों का स्रोत क्‍या रहा है। यहां यह कहने की जरूरत नहीं कि देवां शरीफ दरगाह भारतीय मुसलमानों की बरेलवी विचारधारा के करीब है, जबकि इमामबाड़ा शिया समुदाय का गढ़ माना जाता है।

अब आप लोग खुद ही इन अखबारों से पूछिये कि पत्रकार साहब, आपको यह सारी सनसनीखेज खबरों का इलहाम कहां, कैसे और कितना हुआ।

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