स्‍वतंत्रता दिवस में राजनीतिक बंदरों की उछलकूद, लगाइये ठहाके

बिटिया खबर मेरा कोना
: झण्‍डारोहण के दौरान अपने ही नेता को सैंडलों से कूट दिया एक महिला ने : भाजपा के झण्‍डे को राष्‍ट्रध्‍वज समझ कर सम्‍मेलन में राष्‍ट्रगीत गा गये भाजपाई : मंत्री ने झंडा फहराया, लेकिन पहले नीचे, फिर ऊपर गया झंडा :

कुमार सौवीर
लखनऊ : अब यह तो पता नहीं है कि यह बिगड़ते हालात की नजीर है, या फिर खुदा ने ही देशवासियों की आंखें खोल देने के लिए स्‍वतंत्रता-दिवस के मौके को नागपंचमी की तिथि-तारीख से जोड़ लिया। यकीन मानिये कि मुझे इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं है। लेकिन इतना जरूर है कि स्‍वतंत्रतादिवस के मौके पर इस बार संपोले अचानक भरभरा कर मुल्‍क के फलक पर छा गये। अगर आप चाहें, तो हम आपको ऐसे जहरीले संपोलों का दूर से ही दर्शन करा सकते हैं।
वीओ:-1 राष्‍ट्रभक्ति और जहरीले सांप-संपोल। पहले तो यह बिलकुल उल्‍टी दिशा में देखे, सुने जाते थे। राष्‍ट्रभक्‍त समाज को नियंत्रित करते थे, जबकि सांप-संपोलों की जगह जमीन के भीतर हुआ करती थी। लेकिन अब हालात बदल गये हैं।जी हां, संपोले। मगर बहुत जहरीले। कहने की जरूरत नहीं कि इन सांप-संपोलों की करतूतों की कलई खुलती जा रही है, जिनकी जड़ें बहुत गहरी तक धंसी हुई हैं। डरावने फन, भयावह दांत, और उनमें भरा तेज जहर। तुर्रा यह कि यह मूर्ख-सांप-संपोले हैं। भयावह और खतरनाक तो हैं ही, लेकिन मूर्ख भी हैं। उन्‍हें पता भी नही है कि आखिरकार वे क्‍या कर रहे है। यह हालत तो सबसे खतरनाक है। और उससे भी ज्‍यादा खतरनाक यह है कि यह जहरीले सांप हमारे आपके बीच में ही अपनी कुण्‍डली मारे बैठ चुके हैं।
वीओ:-2 आपको तो खूब पता है कि स्‍वतंत्र‍ता दिवस का मतलब होता है देश की आजादी का मुकद्दस यानी पवित्र दिन। और नागपंचमी का मतलब यही माना जाता है कि हम समाज में सर्वधर्म सम्‍भाव और सह-अस्तित्‍व के मतलब को ठीक से समझ लें। ऐसे अवसर-पर्व हर देश या समाज वालों के दिमाग में पूरी तरह धंसा दिये जाने के लिए ही बुने-गढ़े जाते हैं ताकि वे एक-दूसरे के साथ ही साथ हमारे आसपास के प्राणियों के प्रति भी बहुत सजग रहें और सम्मानजनक नजरिया रखा करें।
वीओ:-3 यह तस्‍वीर है बाराबंकी के नगर पालिका में मेयर पद को लेकर उठापटक में जुटे लोगों की। समाजवादी पार्टी के इन निष्‍ठावान कार्यकर्ताओं ने स्‍वतंत्रतादिवस के मौके को अपनी औंधी बुद्धि का इस्‍तेमाल करते हुए उसे गणतंत्रदिवस में तब्‍दील कर दिया, जो 26 जनवरी को मनाया जाता है। यह हालत तो उस राज्‍य की है, जहां राष्‍ट्रभक्ति की टॉनिक पी-पी कर गोरक्षकों ने आम लोगों का जीना हराम कर रखा है। जबकि अधिकांश पूर्वोत्‍तर राज्‍यों और उत्‍तर में कश्‍मीर में स्‍वतंत्रता का कोई मतलब भी नहीं है। कश्‍मीर, मणिपुर और नगालैंड में सेना न हो तो छावनी में झंडा ही फाड कर फूंक डाला जाए। भले ही आप कितनी भी डींग मारिये। लदाख में तो स्‍वतंत्रता दिवस और गणतंत्र का कोई नामलेवा तक नहीं। वे तो बाकी देशवासियों को इंडियन कहते हैं।
तमिलनाडु व कर्णाटक में देश के झंडे और राष्‍ट्र गान का क्‍या सम्‍मान है, आइये हम आपको दिखाते हैं। यहां जनगण मन अधिनायक जय हो जैसे विख्‍यात गीत को लोग जैसे-तैसे गाया और सुना भी लेते हैं। लेकिन इस दौरान में उनका रवैया क्‍या होना चाहिए, उन्‍हें पता नहीं। या फिर वे खड़े होना भी नहीं चाहते। और जिन लोगों को इतनी तमीज है कि राष्‍ट्रगान के समय सावधान मुद्रा में खड़ा हो जाना चाहिए। वे इस नियम का पालन तो खूब करते हैं, लेकिन उसी दौरान क्‍या-क्‍या नहीं कर बैठते हैं, यह देखिये। झंडा तो फहरा दिया जाता है, लेकिन उसी दौरान चप्‍पल से चटाक की आवाजें और मुंह से मां-बहन-बेटी को लेकर भयावह स्‍तुतिगान भी चलता रहता है।
लेकिन केवल तमिलनाडु ही क्‍यों। खुद को राष्‍ट्रभक्‍त होने का दावा तो करती ही है भारतीय जनता पार्टी। और उसी बीजेपी की सरकार छत्‍तीसगढ़ में भाजपा और राष्‍ट्र-ध्‍वज फहरा रही है। यहां के एक मंत्री महेश गडगा ने रायपुर के बीजापुर विधानसभा क्षेत्र में एक समारोह के दौरान स्‍वतंत्रता दिवस पर जिस तरह झण्‍डारोहण किया है, उससे किसी भी राष्‍ट्रभक्‍त का खून खौल जाएगा।
तो यह हालत है हमारे मुल्‍क की, हमारी पहचान की, हमारे राष्‍ट्रगीत और हमारे राष्‍ट्रध्‍वज की। ज्‍यादा बात क्‍या करूं। सिर्फ दो लाइनें में अपनी बात खत्‍म करना चाहता हूं। जो करीब 45 बरस पहले कानपुर के सेंट्रल रेलवे स्‍टेशन पर एक शिक्षक ने सुनाया था। यह शिक्षक बस्‍ती के किसी मदरसे में तैनात था। तो शेर कुछ इस तरह है।
वह अंधेरा ही भला था, जो कदम राह पे थे
रौशनी लायी है मंजिल से बहुत दूर हमे

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