: हाईकोर्ट के एक वकील ने किया खुलासा, कैसे चलता है आला न्यायाधीशों के भोजन का खर्चा : हर सिविल कोर्ट पर आये जमानत मामलों की जांच के नाम पर वसूली जाती है पांच हजार रूपयों तक की घूस : हाईकोर्ट के युवा अधिवक्ता के तौर पर पहचाने जाते हैं सत्येंद्रनाथ श्रीवास्तव :
मेरीबिटियाडॉटकॉम संवाददाता
लखनऊ : इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खण्डपीठ में प्रैक्टिस करने वाले एक युवा वकील ने एक नया शिगूफा छेड़ दिया है। ऐसा शिगूफा, जो इसके पहले भले ही खूब सुना और माना जा चुका हो, लेकिन उस पर कभी भी किसी कर्मचारी, वकील अथवा जज ने कोई भी ऐतराज नहीं किया। इस मसले को हमेशा से ही दस्तूर के तौर पर माना और अपनाया जाता रहा। लेकिन अब यह मसला बाकायदा एक मसले की तौर उछलने लगा है। चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं कि आखिरकार वादकारियों को न्याय उपलब्ध कराने की शीर्ष-कुर्सी पर न्याय के नाम पर लूट का धंधा कैसे और कौन कर रहा है।
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इस वकील का नाम है सत्येंद्र नाथ श्रीवास्तव। श्रीवास्तव ने आज न्यायपालिका में चल रहे अराजक लूट और उगाही के धंधे को पहली बार जग-जाहिर किया है। सत्येंद्र नाथ श्रीवास्तव का आरोप है कि सिविल कोर्ट मे बेल यानी जमानत का फैसला वादकारी के पक्ष में हो जाने के बाद परम्परा के तहत कोर्ट के सेक्शन आफिस में सिक्योरिटी को लेकर व्यक्तियों के वेरीफिकेशन का धंधा शुरू हो जाता है।
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श्रीवास्तव बताते हैं कि वेरीफिकेशन के नाम पर हर कोर्ट का बाबू 3500 से 5000 रूपया झटक लेता है। श्रीवास्तव के अनुयार हर कोर्ट ने लगभग दस बेल के मामे आते हैं, तो औसतन हर कोर्ट मे 35 से 50 हजार की घूस जमा होती है। ऐसी हालत में अगर घूस न दी जाये तो वेरीफिकेशन का मामला महीनों तक नहीं आयेगा, और जमानत के बाद मुवक्किल जेल मे सडता रहेगा।
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श्रीवास्तव बताते है न्यायमूर्ति महोदय हर समय वकीलो पर अगुली उठाते रहते है पर सत्तर सालो मे आप न्यायिक व्यवस्था को टाईम बाऊन्ड वेरीफिकेसन की व्यवस्था न दे सके़ जबकि आपके एक प्रशासनिक आदेश से ये हो सकता है। पर होगा नही, क्योकि माननीयो की किचन की सब्जी का खर्चा भी इसी से निकलना है।