: सदरी के रंग से पता चलता है कि पत्रकार जी आज किस राह पर जाएंगे : एक भी पत्रकार नेता नहीं बोल रहा है कि मकानों की बेदखली का हुक्मनामा क्यों जारी हुआ : तो फिर साफ बोलो तो कि तुम में तनिक भी आवाज देने का दमखम तक नहीं : कई चूहे तो इतना खा-पी चुके कि बाकायदा लोढ़ा-मूस हो गये- दो :
कुमार सौवीर
लखनऊ : लेकिन पिछले दिनों इस बिल्ली को समझ में आ गया कि इन चूहों को सिर्फ पालने से ही फर्क नहीं पड़ेगा। यह ससुरे हल्ला-दंगा करते हैं और हर रोज अपनी नीली-लाल-हरी सदरी पहन का लेंड़ी गिराते रहते हैं। अखिलेश ने भी इन मूसों की दुरूस्त पहचान की। एक शिष्टाचार भेंट में उन्होंने एक मोटे मूस पर तंज कसा कि उसकी सदरी के रंग से ही पता चल जाता है कि वह हेमन्त ऋतु की निजी वासंती रंगीनी का माहौल है या फिर आम पत्रकारों के पतझड़ का मौसम। साफ पता चल जाता है कि किस माहौल में दलाली होगी, और किस मौसम में खुशमदी।
लेकिन इस शिष्टाचार-भेंट की शुरूआत में ही कुछ चूहों ने बिल्ली के गले में घण्टी बांधने की कोशिश की, वजह यह कि यह पहली बार हुआ जब मुख्यमंत्री के कार्यक्रम में पत्रकारों के कैमरे ही नहीं, मोबाइल तक बाहर जमा करा लिये गये। लेकिन इसके पहले कि कोई कुछ समझ पाता, बिल्ली ने सारे चूहों की पूंछ पर तान कर एक जोरदार हथौड़ा-घन रसीद कर दिया। छनछना गये मूस, बिलबिला उठे। क्या करें और क्या न करें, समझ में ही नहीं आ रहा था। आपस में खुसुर-पुसुर शुरू हो गयी कि यह तो बेइज्जती हो गयी। इससे ज्यादा अपमान क्या हो सकता है। सब एक-दूसरे से अपने विरोध-भाव पर समर्थन जुटा रहे थे, लेकिन एकजुट होने की हिम्मत किसी में भी नहीं थी। नतीजा, पूरे हॉल में सन्नाटा ही पसर गया।
कुछ देर तक बिल्ली ने सब को निहारा, बड़े-मोटे मूसों के चेहरों पर नजरों गड़ायीं और उसके बाद मुस्कुराते हुए अपनी मूंछें मरोड़ीं और बोली:- हमने आप लोगों के बिल में पानी भर दिया गया है। हुकुम था सुप्रीम कोर्ट का। सबसी बड़ी अदालत का हुकुम सिर-माथे पर। हम क्या करें। हम भी बेघर-बार कर दिये गये हैं। इस दर्द में जितना आप डूबे हैं, उतना हम भी हैं। हमदर्द बनिये हमारे। हम जी-जान से जुटे हैं। अपने ही नहीं, हम तो आप लोगों के बिल को भी बचाने के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं। यह भी कोशिश की जा रही है कि उप्र आवास एवं विकास परिषद से कह कर आप बाकी चूहों-मूसों के लिए एक नये बिल-नुमा कालोनी बसायी जाए।
अब चूंकि कुछ सरकारी मुंहलगे बड़े बिल्ली-सेवकों ने इन चूहों-मूसों के नेताओं को पहले ही साध लिया था, इसलिए मुख्यमंत्री के इस ऐलान पर गड़गड़ा कर तालियां बजाने लगे। बाकी चूहों की कुछ समझ में ही नहीं आया कि वे आखिर अब क्या करें। ऐसे में चूंकि बड़े मूस तालियां बजा रहे थे, इसलिए अचकचाये हुए बाकी चूहों ने भी तालियां बजाने का अभिनय शुरू कर दिया। (क्रमश:)
आइये, लखनऊ में लोढ़ा-मूस बन चुके पत्रकारों की वास्तविकता और उनके मिशन-क्षमता को परखिये। ऐसे पत्रकार-चूहों की तादात अच्छी-खासी है, जो सरकारी बिल में घुसे हैं। लेकिन हाल ही अखिलेश यादव सरकार ने इन मूसों का उनके बिलों से निकाल बाहर करने के लिए हुक्मनामा जारी कर दिया है। लेकिन इन मूस-चूहों ने अपनी पूंछ न जाने कहां छिपा ली है। अब हम इसी मसले पर रिपोर्ट की श्रंखला शुरू कर रहे हैं। इसकी बाकी सीरीज को देखने के लिए निम्न लिंक पर क्लिक कीजिए:- पत्रकार लोढ़ा-मूस हो गये