: पीलीभीत में जागरण का मतलब भाजपा का चरण-चुम्बन : लोकेश का एकसूत्रीय संकल्प, बीजेपी औऱ मेनका राग अलापना : किस क्लास तक पढाई हुई, यह सवाल उठते ही भड़क गये लोकेश :
कुमार सौवीर
पीलीभीत : यहां दैनिक जागरण में ब्यूरो प्रमुख हैं लोकेश प्रताप सिंह। गजब पत्रकारिता करते हैं लोकेश। और केवल पत्रकारिता ही नहीं, वे गीत-संगीत, डिजाइनिंग, लाइजनिंग वगैरह सभी 84 कलाओं में निपुण हैं। उनका पसंदीदा राग है मेनका-राग, दैनिक जागरण में जब-तब इस मेनका-राग की राग-रागनियों वाले सुर सुनाये पड़ सकते हैं। इतना ही नहीं, लोकेश की पहचान क्षत्रिय-राग के खास गवैया की भी बन चुकी है। भाजपाइयों को तेल लगाना कोई लोकेश से सीखे। मगर लोकेश के विरोधी लोग उन्हें पीलीभीत में पीत-पत्रकारिता का सिरमौर, और कुछ लोग उन्हें श्रेष्ठ दलाल भी बताते हैं।
ऐसे वक्त में जागरण जैसे अखबार के ब्यूरो चीफ को छींकने और हवा खोलने तक की फुरसत नहीं मिलती है, लोकेश कई-कई सरकारी विभागों-समितियों में उपाध्यक्ष तक जैसी कुर्सियों पर काबिज हैं। मेनका गांधी पर उनकी खास कृपा है। मेनका गांधी की कैसी भी खबर चाहे कहीं की भी हो, पीलीभीत दैनिक जागरण में नियमित रूप से प्रकाशित होती है। वह भी फोटो समेत, डबल कॉलम में। इतना ही नहीं, लोकेश खुद को भाजपा के नेताओं के साथ अपनी करीबियों का बाकायदा डंका जैसा बजाते घूमते हैं।
पीलीभीत में लोकेश की गतिविधियों से आहत एक पत्रकार का कहना है कि लोकेश ने दैनिक जागरण ही नहीं, पत्रकारिता जगत के चेहरे पर ही कालिख पोत डाली है। इस पत्रकार का सवाल है कि क्या दैनिक जागरण जैसे प्रमुख अखबार के ब्यूरो चीफ को ये शोभा देता है कि वो किसी पार्टी विशेष के गुणगान करे।
और इतना ही नहीं, बीजेपी के नेताओं के चरण-चुम्बन से मंत्री की कृपा लोकेश पर लगातार सरकारी कृपाएं बरस रही हैं। इस सूत्र का सवाल है कि मान लिया कि लोकेश की इस-उस तरह की पत्रकारिता की बिक्री से उनकी झोली में सरकारी पदों की बारिश हो रही है, तो यह मामला लोकेश का है कि इसमें उसका निजी स्वार्थ होगा, परंतु दैनिक जागरण जैसे बड़े संस्थान ने अपनी आंखें क्यों मूद रखी हैं। क्यों पत्रकारिता को पीलीभीत में बेचा जा रहा है। सवाल तो यह भी है कि लोकेश और उनका अखबार किस तरह की पत्रकारिता करते होंगे। जाहिर है कि वे चाहे जो भी करते हों, लेकिन कम से कम उनकी करतूतों को निष्पक्ष रिपोर्टिंग तो नहीं ही माना जा सकता है।
लोकेश के बारे में आप पीलीभीत में किसी से भी बातचीत कीजिए। जिन भी लोगों से हमारी टीम ने सम्पर्क किया, उन सब ने सिरे से ही लोकेश को स्वस्थ पत्रकारिता की परम्परा का एक काला धब्बा ही माना है। एक पत्रकार ने तो बताया कि पीलीभीत की पत्रकारिता शुरू से ही गौरवशाली रही है, लेकिन लोकेश के आते ही यहां की पत्रकारिता का गला ही घोंट दिया गया। वजह है लोकेश प्रताप सिंह। लोकेश के बारे में बातचीत के दौरान एक स्थानीय नागरिक ने उल्टा सवाल पूछ लिया:- ये जागरण का ब्यूरो चीफ है या कोई भाजपाई।
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एक अन्य पत्रकार ने प्रमुख न्यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम को बताया कि मेनका के संसदीय क्षेत्र पीलीभीत मे सालों से जागरण में ब्यूरो चीफ बने बैठे हैं ये भगवाधारी। मेनका की कृपा इतनी की दो-दो पदों से सुसज्जित कर दिया है जनाब को। जी हां आप सही पकड़े हैं बात लोकेश प्रताप सिंह की है जागरण में वर्षों से पीलीभीत में ब्यूरो चीफ के पद पर आसीन इस व्यक्ति ने जमकर भाजपा के वाहवाही बिखेरी है। अपनी इसी दास-कलम के इनाम में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री ने ऐसी कृपा की है कि चीफ साहब अब निप्सिड में वाईस चेयरमैन और केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय में राजभाषा समिति के सलाहकार भी हैं। बताते चले इस से पहले भी जब केंद्र में भाजपा की सरकार थी, तो ये जनाब पदासीन थे। इस से पहले स्वास्थ्य मंत्रालय में भी सलाहकार रह चुके हैं लोकेश।
लोकेश को मेनका गांधी ने ओहदों से रसाबोर कर दिया। करते भी क्यों न ? आखिर एक दलित के मुकदमे में जब मेनका गांधी लपेटे में आ गयीं थीं, तो लोकेश ने अपनी पत्रकारिता को ताक पर रख कर खबरें लिखीं। मेनका गांधी ने उस दलित को सरेआम हरामजादा कह दिया तो लोकेश ने उस दलित की कब्र खोदना शुरू कर दिया। पूरी गेटिंग-सेटिंग की थी लोकेश ने मेनका के लिए। ऐसे कई मामले रहे हैं, जब लोकेश ने बिसात बिछा डालीं। दिल्ली की खबर पीलीभीत में बाकायदा फोटो के साथ छपवाने का साहस भी तो उठाया है लोकेश ने। बताते हैं कि दैनिक जागरण वाले तो लोकेश की इसी अदा पर मुग्ध रहते हैं।
मूलत: फैजाबाद के रहने वाले हैं लोकेश प्रताप सिंह। बदायूं समेत कई जिलों में रह चुके हैं। लोकेश बताते हैं कि सन-10 में पत्रकारिता का डिप्लोमा किया था। लेकिन सन-2000 में ही पत्रकारिता में पदार्पण कर चुके थे। माखनलाल यूनिवर्सिर्टी से। क्या भोपाल से? नहीं, कुमार इंस्टीच्यूट से, कानपुर में है न वह कुमार इंस्टीच्यूट, वहीं से। मतलब फिर माखनलाल यूनिवर्सिटी कैसे? वह यह कि कुमार इंस्टीच्यूट माखनलाल यूनिवर्सिटी की फ्रेंचाइजी लिए है न, इसलिए। मेरी बिटिया डॉट कॉम संवाददाता ने जब उनकी शैक्षिक इतिहास की जानकारी चाही, तो वे भड़क गये। बोले:- यह सब निजी बातें आप हमसे क्यों पूछ रहे हैं? निजी जानकारी का खुलासा हम आपसे नहीं कर सकते हैं। आपको ज्यादा बातचीत करनी हो तो आइये, आमने-सामने बात किया जाएगा।
इस सवाल पर कि भाजपा की खबरों पर प्रमुखता से प्रकाशित होती है, उन्होंने उस आरोप को खारिज किया और कहा कि वे सभी राजनीतिक दलों की खबरों पर बराबर का ध्यान देते हैं। सरकारी पदों पर काबिज होने के मामले में लोकेश का कहना था कि अगर सरकार उन्हें इस योग्य समझती है, तो उसमें हर्ज क्या है। मैं जनता और सरकार की ही तो सेवा कर रहा हूं।
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अब आखिरी बात लोकेश प्रताप सिंह की पत्रकारिता पर। सच तो यही है कि उनकी बोली और उनकी भाषा को सिवाय लोकेश के कोई समझ ही नहीं सकता है कि वे क्या कहना चाहते हैं। इस बात को समझने के लिए किसान मेला वाली फोटो पर जो कैप्शन लोकेश ने दर्ज किया है, उसे बांच लीजिए। समझ में आये तो हमें भी बता दीजिएगा। लेकिन हैरत की बात है कि लोकेश ने यह शीर्षक इंग्लिश में क्यों लिखा? क्या उन्हें वाकई हिन्दी लिखना नहीं आता है?