सीमा जी ! असल समस्‍या तो परशुराम के मिशन में फैल्‍योर का है

मेरा कोना

: तीन ज्‍वलंत सवाल मौजूद हैं परशुराम को लेकर, आइये इस पर बातचीत की जाए न : बावजूद इसके कि यह पौराणिक गाथा है, और पुराण का सत्‍यता से कोई ज्‍यादा लेना-देना नहीं होता : ऐसे तो असफल क्षत्रिय-संहार की संख्‍या लगातार बढ़ती ही जाएगी : क्षत्रिय साहस के प्रतीक हैं और परशुराम संकल्‍प के प्रतीक :

कुमार सौवीर

लखनऊ : सीमा जी, मेरा आपसे परिचय नहीं है, लेकिन चूंकि जब आपने मेरी खबर पर अपनी शालीन प्रतिक्रिया दी है, इसलिए मैं आपका आभारी हूं और आपकी टिप्‍पणी पर मैं पूरा सम्‍मान करूंगा। जैसे कि मैंने पहले ही कह दिया है कि परशुराम पर मैंने खूब अध्‍ययन किया है। उसी के आधार पर मेरा मानना है कि परशुराम ने अपने पूरे जीवन में केवल तीन ही काम किये। लेकिन उनमें से एक भी दायित्‍व वे पूरा नहीं कर पाये। इसके बावजूद परशुराम कोई व्‍यक्ति नहीं, एक परम्‍परा का नाम है और क्षत्रिय-वध का क्षेपक केवल कपोल-कल्‍पना। आप विदुषी हैं, इसलिए आसानी से समझ सकती हैं कि यह सारा कर्मकाण्‍ड केवल पौराणिक कथाओं का मर्म है। उम्‍मीद है कि मैं जिन तथ्‍यों को जिक्र कर रहा हूं, उन्‍हें पढ़ कर आपकी सारी शंकाएं-जिज्ञासाएं तुष्‍ट-संतुष्‍ट हो जाएंगी।

पहला, उन्‍होंने महादेव औघड़दानी शिव-शंकर का पिनाकी नामक धनुष को तोड़ने पर हंगामा किया, जब मर्यादा पुरूषोत्‍तम राम ने सीता स्‍वयंवर के मौके पर उसे शर्त के तहत किसी तिनके की तरह तोड़ डाला था। तब उसके टूटने की टंकार सुन कर परशुराम भागे-भागे आये और पिनाकी की हालत देख कर नाराज हो गये। बोले कि जिसने भी पिनाकी-धनुष को तोड़ा है, मैं उसका सजा दूंगा। बहुत देर तक मान-मनौव्‍वल चलती रही, लेकिन भगवान परशुराम नहीं माने। इस पर लक्ष्‍मण ने साफ कह दिया कि यहां कोई कद्दू की बतिया नहीं है जो तर्जनी देख कर सड़ जाएगा। यह सुनते ही परशुराम जी को समझ में आ गया और वे श्रीराम के चरणों में अपनी शक्तियां अर्पित कर गये।

दूसरा, ऋषि जमदग्नि ने अपने सबसे छोटे बेटे परशुराम को आदेश दिया कि वह अपनी माता, यानी जमदग्नि की पत्‍नी का वध कर दे। यह सुनते ही परशुराम ने उनके आदेश का पालन कर दिया और रेणुका की हत्‍या कर दी। मेरी समझ में ही नहीं, किसी भी सहज बुद्धि वाले व्‍यक्ति की समझ में यह बात नहीं आयेगी। सवाल यह कि परशुराम अगर अपने  पिता-भक्‍त थे, लेकिन रेणुका भी तो उनकी ही माता थीं। बिना असली बात सुने-समझे परशुराम ने ऐसा क्‍यों किया, आप के पास इसका जवाब खोजने भर के लिए पर्याप्‍त समय है। खोजिेए न।

तीसरा, आदरणीय सुश्री सीमा सिंह जी ने बताया है कि परशुराम ने 36 बार इस धरती को क्षत्रिय से विहीन कर दिया था। जबकि मेरी जानकारी के अनुसार पौराणिक कथाओं के तहत परशुराम ने 21 बार क्षत्रियों का समूल संहार किया था। खैर, यहां विवाद संख्‍या का नहीं है, जो भी तथ्‍य हैं उनके सटीक विश्‍लेषण का है।

ऐसी हालत में असल सवाल यह है कि परशुराम ने धरती पर से क्षत्रियों का 21 बार समूल संहार क्‍यों किया। यह काम तो एक बार में ही हो सकता था। फिर उसके लिए 21 बार, या फिर आदरणीय सीमा सिंह जी के अनुसार 36 बार प्रयास  क्‍यों किये गये। और फिर जब एक बार यह संहार का समूल अभियान एक  बार में सम्‍पन्‍न हो चुका था, तो फिर उसे 21 या उससे भी ज्‍यादा संख्‍या तक क्‍यों फैलाया गया। लेकिन असल बात तो यह उठ रहा है कि जब क्षत्रियों का समूल संहार हो चुका था, तो फिर यह क्षत्रिय कहां आ गये, जिन्‍हें बार-बार समूल संहार के लिए खोजने की जरूरत परशुराम को पड़ गयी।

यानी मामला साफ है, कि परशुराम में अपनी परफामेंस ही नहीं दिखायी। या फिर वे इसके लिए सक्षम ही नहीं थे। तभी तो परशुराम जी बार-बार असफल प्रयास करते रहे और क्षत्रियों की भीड़ जुटती ही रही।

यानी मामला अब शीशे की तरह साफ हो चुका है कि आज जो क्षत्रिय दिख रहे हैं, वे अपनी काबिलियत की वजह से नहीं, बल्कि परशुराम में परफेक्‍शन के फैल्‍योर के चलते हैं। बहरहाल, यह बात तो हुई पौराणिक गाथा-कथा की, हर कथानक में एकाधिक पहलू होते हैं। ऊपरी लाइनों में मैंने जो भी लिखा है, वह उसेे केवल हास्‍य के स्‍तर पर लिया है, बावजूद इसके कि मेरे उन सवालों को एकदम से ही खारिज नहीं किया जा सकता है।

लेकिन परशुराम केवल एक केवल किंवदंती मात्र नहीं हैं। वे हास्‍य के पात्र नहीं हैं। वे एक चेतस मस्तिष्‍क का प्रतीक हैं। परशुराम सक्रियता का प्रतीक हैं, त्‍याग का मार्ग हैं। दिक्‍कत यह है कि हम उन लोगाें-बिम्‍बों को खारिज करने की आदत सी पड़ चुकी है, जो हमारे मन-मुताबिक नहीं होते। चाहे वह परशुराम हों या फिर हमारे करीबी सम्‍बनधी-रिश्‍तेदार और मित्र। जरा सा भी मन-भेद हुआ कि हम किसी को भी पूरी तरह खारिज करनें में तनिक भी देरी नहीं करते। भले ही उसके लिए हमें विश्‍वासाें की किसी अट्टालिका को भी मटियामेट तक क्‍यों ने पड़े।

इस श्रंखला की तीसरी और अंतिम कड़ी भगवान परशुराम के उन्‍हीं केे यशोगीत पर केंद्रित होगा। (क्रमश:)

यह लेख तीन अंकों में था। यह दूसरा अंक आपने पढ लिया है।

अब इसका तीसरा अंक पढने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए :- क्षत्रिय-संहार वाला मिशन-परशुराम

(मेरे इस उपन्‍यास का शीर्षक है:- खण्‍ड-पुरूष। मैं इस उपन्यास को प्रकाशित कराने का सतत प्रयास कर रहा हूं। जाहिर है कि भारी आर्थिक संकट है। लेकिन जब और जैसे भी मुमकिन हुआ, यह किताब प्रकाशित कराके आपके हाथों सौंप दूंगा। और हां, आप लोगों से भी अनुरोध है कि यदि आप इस संकट से मुझे उबारने के लिए सहायता करना चाहें तो मेरे ईमेल meribitiyakhabar@gmail.com या kumarsauvir@gmail.com अथवा फोन 09415302520 पर सम्पर्क कर लें। )

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