कई मौतों के बाद जन्‍मे झंझटी शिशु पर बवाल बनाम बारिश, मन-मयूर के आंसू

मेरा कोना

: अधिकांश जनता को पता ही नहीं है कि आखिर यह जीएसटी है क्‍या बला : जगमग संसद भवन की पिछली तीन ऐतिहासिक तारीखें तो स्‍पष्‍ट रहीं, लेकिन यह चौथा अंधेरे में : छूंछी चमकदार विचार-धाराओं पर आसक्‍त जनता की असफलता छिपी :

कुमार सौवीर

लखनऊ : बीती रात संसद भवन में चकाचौंध रौशनी थी, दिलकश नजारा था वह। देश के प्रसूति-कक्ष में जीएसटी के जन्‍म की किलकारियां बाकी टैक्‍सों की मौतों पर भारी पड़ गयी। पूरा देश मग्‍न और आत्‍मविभोर हो गया।

यह यह चौथा मौका है, जब देश की संसद को आधी रात जगमगा दिया गया। पहली बार तो तब, जब मुल्‍क आजाद हुआ। यानी सन-47 में 14-15 अगस्‍त की रात को।  फिर देश की पचीसवीं वर्षगांठ के मौके पर। फिर पचासवीं वर्षगांठ के मौके पर। और चौथी बात आज बीती रात।

लेकिन इसके पहले के तीन मौकों पर देश को पता था कि इस जश्‍न का सबब क्‍या है, जबकि इस चौथे मौके पर देश को पता ही नही चल पाया कि वे किस बात पर खुश हो रहे हैं। जनता को पता ही नहीं है, और मुख्‍य आर्थिक सलाहकार कहते हैं कि जीएसटी से जनता को लाभ होगा, बचत होगी।

खैर, बारिश के दौरान सड़क पर देर तक भीगना मेरा खास शगल रहता है। अचानक यह नजारा मुझे दिख गया, शायद इसका सबब आपको पता चल जाए, इसलिए फोटो खींच ली।

सच को खोजने के लिए खुद को टटोलिये

मोदी-मुखी माहौल की मौजूदा असफलताओं को अगर आप भाजपा-चिंतन की असफलताओं के तौर पर देखेंगे तो यकीन मानिये कि आप सिरे से ही गलत दिशा पर खड़े होंगे।

सच यही है कि यह एक हालत पिछले तीन दशक से पूरी तरह खदबदाती जा रही अराजक राजसत्‍ताओं के विरोध में चमत्‍कारिक जीत हासिल किये उस विचारहीन सत्‍ता की असफलता है, जिसमें छूंछी चमकदार विचार-धाराओं पर आसक्‍त जनता की असफलता छिपी थी। इसमें राज-सत्‍ताओं में मुसलमान तुष्टिकरण का अंदाज और बेहूदा सेक्‍युलरों की विधवा-रूदन को राजनीति के कैरम-बोर्ड में सबसे ज्‍यादा स्‍ट्राइक किया गया।

यह हालत राजनीति की उस नौटंकी का अहम क्षेपक होता है जिसमें सत्‍ता ढोंग करती है, और जनता पहले तो ढफली बजाती है, फिर अपने दोनों हाथों से अपना माथा दबोच लेती है।

यहां कालिदास वाली सशक्‍त और जानदार भूमिका भोली-भाली जनता ने जिस तरह अनजाने में निभा डाली है, वह स्‍तुत्‍य है। खुद के पैरों पर कुल्‍हाड़ी मारना बहुत जिगरे की बात होती है मेरे दोस्‍त

बारिश, मन-मयूर और मेरे आंसू पर गर्भधारण

बरसात की टप्‍प-टप्‍प गिरती बूंदें मुझे मेरे बचपन तक पहुंचा ले जाती हैं। हर बार। पसीने से तरबतर मैं जब बारिश में भींगने की कल्‍पना करता हूं तो मन-मयूर नाच उठता है।

आज भी यही हुआ। रंजीत और अपर-हाउस वाले प्रदीप दीक्षित के साथ मैं बाइक पर वर्षा को आत्‍मसात करने निकल पड़ा, झम्‍म-झम्‍म बारिश में लोअर-हाउस वाले दिव्‍यरंजन पाठक के घर।

और आपको एक जानकारी दे ही दूं। ऐसे मौसम में गनीमत यह होती है कि मेरा मन-मयूर ही नाचता है और मैं आह्लादित होता हूं।

वरना अगर मैं रो पडूं, और सामने कोई आग्रही मोरनी आ जाए, तो कसम जस्टिस शर्मा की, मेरे कदम मोरनी की सहायता के लिए मैटरनिटी होम की ओर पड़ जाएं।

हां नहीं तो

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