यह है पत्रकारिता का असली तेवर। सम्मान तो ठीक, पर धनराशि क्या करें

बिटिया खबर

: दैनिक जागरण के कार्यकारी संपादक विष्णु प्रकाश त्रिपाठी को राष्ट्रीय उत्कृष्टता पुरस्कार : डॉ मंगलम स्वामीनाथन फाउंडेशन पुरस्कार सम्मान दिल्ली को 29 को : खबर कि सम्मान का सम्मान, पर शायद राशि न लेंगे :

कुमार सौवीर

लखनऊ : परिवार का कोई सदस्य जब राष्ट्रीय स्तर पर न केवल अपनी एक उत्कृष्ट पहचान बना चुका हो, बल्कि उसे बाकायदा सरेआम सम्मानित किया जाता हो, तो पूरा का पूरा परिवार ही उल्लास और हर्ष में झूम पड़ना स्वाभाविक ही होता है। मेरे साथ भी यही हुआ है, जहां पत्रकारिता का एक नामचीन विष्णु प्रकाश त्रिपाठी को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा रहा है। विष्णु प्रकाश त्रिपाठी इस समय दैनिक जागरण समूह में कार्यकारी संपादक के तौर पर दिल्ली में एक बड़ा स्तंभ बन चुके हैं, और आने वाले 29 नवंबर को विष्णु त्रिपाठी को राष्ट्रीय उत्कृष्टता पुरस्कार-2022 के लिए चुना गया है।
विष्णु प्रकाश हमारे रक्त संबंधी भले न हों, लेकिन हमारा व्यावसायिक परिवार एक ही है। मुझे याद है लखनऊ जागरण के स्थानीय संपादक और प्रबंधक विनोद शुक्ला ने मुझे बुलाने का जिम्मा जागरण के बड़े पत्रकार अमर सिंह को मार्च सन-1986 में सौंपा था। अमर सिंह मुझे लेकर दिलकुशा कालोनी में रहने वाले विनोद शुक्ला के घर ले गए। हालांकि मैं विनोद शुक्ला का विरोधी माना जाता था और सहारा साप्ताहिक की नौकरी से ही ट्रेड यूनियन के साथ जुड़ा था। जाहिर है कि तब सुब्रत राय और विनोद शुक्ला भी अपनी करतूतों और हरकतों के चलते मेरे निशाने पर हुआ करते थे। लेकिन विनोद शुक्ला ने मेरी रिपोर्टिंग स्किल का सम्मान किया और अगले ही दिन उन्होंने मुझे लखनऊ दैनिक जागरण रिपोर्टर के तौर पर ज्वाइन करा दिया।
उसी दौर में कुछ दिन बाद कानपुर जागरण से विष्णु त्रिपाठी को भी लखनऊ दैनिक जागरण में शामिल किया गया। मैं रिपोर्टर के तौर पर दर-दर धूल छाना करता था जबकि विष्णु त्रिपाठी रिपोर्टरों की कॉपी के भाषा और तेवर को कोने-कोने तक में छानकर डेस्क संभालते थे।
लखनऊ की पत्रकारिता में मैं काफी ऊंचाई तक पहुंच गया। इसी बीच विष्णु प्रकाश त्रिपाठी के साथ हमने, ब्रजेश शुक्ला, शेखर त्रिपाठी, हेमंत तिवारी, सरिता सिंह, सुदेश कुमार, सुदेश गौड़ और कुछ अन्य सहयोगियों ने कई लोगों के चरित-गाथाएं ही नहीं, बल्कि कई पत्र, लेख और कविताएं भी लिखीं, जिनमें “चौड़े दांत वाली लड़की” शीर्षक वाली कविता जागरण में काफी चर्चित रही। मैं लगातार मनोयोग के साथ जागरण में काम करता रहा।
हमारा यह रिश्ता जुलाई-1992 तक बना रहा। लेकिन कान के कच्चे रहे विनोद शुक्ला ने मुझे बरेली जागरण ट्रांसफर कर दिया। मेरे लिए मेरा यह तबादला चूंकि अपमानजनक था, इसलिए मैंने बरेली जागरण को ज्वाइन करने के बजाए दैनिक जागरण ही छोड़ देने का फैसला कर दिया। मगर विष्णु त्रिपाठी लगातार संस्थान में जुड़े रहे।
लेकिन ऐसा नहीं है कि हमारा संबंध दैनिक जागरण के साथ ही साथ छूट गया, बल्कि हम लगातार एक-दूसरे के साथ जुड़े ही रहे। चूंकि मेरा तेवर विद्रोही भाव में जाना-पहचाना जाता था और जिसको मैं लगातार पाला पोसा और दुलराता-पुचकारता ही रहता था इसलिए मैं बेरोजगार हो कर दुश्वारियों की गोद में पहुंच गया, जबकि विष्णु त्रिपाठी का दैनिक जागरण से रिश्ता सात जन्मों की तरह बना ही रहा। सच बात तो यही है कि दैनिक जागरण में ही विष्णु त्रिपाठी का पत्रकारीय जन्म हुआ और आज तक विष्णु त्रिपाठी जागरण में ही न केवल जीवंत हैं, बल्कि मालिकों के बाद विष्णु त्रिपाठी का स्थान दैनिक जागरण में पहला नंबर है। कहा तो यही माना जाता है कि विष्णु प्रकाश त्रिपाठी दैनिक जागरण मालिक परिवार में ही है, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
ताजा खबर तो यह है मंगलम स्वामीनाथन फाउंडेशन की विशेषज्ञ जूरी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान को देखते हुए विष्णु त्रिपाठी को पुरस्कृत करने का फैसला किया है। यह पुरस्कार नई दिल्ली नगर पालिका परिषद के कन्वेंशन सेंटर में 29 नवंबर को दिया जाएगा। इस दौरान विष्णु त्रिपाठी को राष्ट्रीय उत्कृष्टता पुरस्कार 2022 पुरस्कार के साथ ही साथ एक लाख रुपयों की राशि, स्मृति चिन्ह और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाएगा।
विष्णु प्रकाश त्रिपाठी ने इस पुरस्कार के लिए सभागार पहुंचने की सहमति दे दी है

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